: बैठने का अंदाज और उंगलियों की नाराजगी अगर आपने नहीं समझी, तो भविष्य भयावह होगा : नयी सदी में उभरी नयी शारीरिक दिक्कतों से बेहाल होता जा रहा इंसान : कुर्सी-तोड़ परिश्रम और मस्ती से पैदा लापरवाहियों ने जिन्दगी में सुविधा के साथ शारीरिक दुश्वारियां भी बढ़ी :
कुमार सौवीर
लखनऊ : नये माहौल में घुसने में कई-कई घनघोर मस्तियों का दौर शुरू हो जाता है। और उनके साथ ही अलग-अलग तरह की चुनौतियां भी हमेशा सामने आ जाती हैं। शुरूआत में ही तो बदन को इशारा मिल जाता है कि मामला गड़बड़ होने को है। लेकिन ऐसे लोग भी होते हैं जो बदन को बेहाल-बर्बाद कर देने वाले तूफानों वाले इशारों को इग्नोर कर देते हैं। संकट इसके बाद ही शुरू होता है। सच बात तो यही है कि इन चेतावनियों के बावजूद अगर लोग अपने शरीर को लेकर अगर संतुलन नहीं बनाये रखा जाएं, तो उनका जीना दुश्वार हो जाता है।
आज विश्व फिजियोथेरेपी दिवस है। यानी आपकी भौतिक सक्रियता को जांचने का अभियान नुमा दिन। जहां से आप शुरूआत कर सकते हैं उन शारीरिक संकेतों को समझने और सुधारने की, जो आपके आपकी अब तक की लापरवाहियों-मजबूरियों के चलते भविष्य में हो सकने वाले अराजक गीतों-सुरों को और भी ज्यादा बदहाल करने पर आमादा है। कहने की जरूरत नहीं है कि यह बदहाली किसी भी अच्छे-खासे शख्स को गम्भीर शारीरिक संकट में डाल सकता है।
लखनऊ के टीएसएम मेडिकल कालेज में फिजियोथेरेपी विभाग के प्रमुख डॉ गौरव श्रीवास्तव और हिन्द मेडिकल कालेज में फिजियोथेरेपी के प्रमुख डॉ जैनेंद्र श्रीवास्तव मानव के आधुनिक जीवन शैली में किसी तूफान की तरह आये बदलावों पर विस्तार से बात करते हैं। डॉ गौरव और डॉ जैनेंद्र बताते हैं कि सच बात यह है कि पिछली सदी में यांत्रिकीय-करण ने औद्योगिकीकरण को काफी समृद्ध किया और इसका समाज के विकास पर विस्तृत सुखद प्रभाव आज भी देखा जा सकता है। हर क्षेत्र में यह विकास बहुत तेजी से दिखाया पड़ा, जिसने पूरे मानव समाज को ही बुरी तरह खदबदा दिया। भोजन से लेकर पेयजल, सड़क से हवाईजहाज या फिर घर से लेकर होटल तक। नयी फैक्ट्रियां, नये अवसर, नयी जीवन-शैली और उसके नये-नये अनुभव और उसे भोगने को तैयार और तत्पर समाज। बदलावों का आनंद लेने के लिए लोगों में एक होड़ सी लग गयी थी उस पिछली सदी में। चाहे वह भोजन का मामला हो, या फिर रहन-सहन का विषय।
कहने की जरूरत नहीं कि उस सदी में हुए विकास ने आम आदमी की दिनचर्या को बुरी तरह प्रभावित किया था। लेकिन इस नयी सदी ने तो उससे भी कई गुना चुनौतियां और दुश्वारियां आम आदमी के सामने खड़ी कर दी हैं। सच बात तो है कि कम से कम शहर में रहने वाले लोगों में अधिकांश इस वक्त अपने शरीर पर होने वाले अनजान से दिक्कतों और दर्दों से बेहाल हैं। चाहे वह गर्दन या पीठ में दर्द वाली टीस का मामला हो, या फिर दोहरी होती जा रही कमर। चाहे वह ऊंगलियां का संकट है, या फिर जोड़ों का भयावह दर्द। लेकिन सबसे दर्दनाक पहलू तो यह है कि हमारा समाज ऐसी टीस या दर्द को सामान्य पीड़ा के तौर पर देखता है और उसके निदान के लिए किसी सामान्य दर्दशामक दवाई का सेवन कर लेता है। बिना यह जाने-समझे कि यह वाकई दर्द है, अथवा किसी गम्भीर शारीरिक संकट का पूर्व-संकेत।
गनीमत है कि स्वास्थ्य को लेकर मिलने वाली ऐसी चुनौतियों से निपटने के लिए चिकित्सा जगत खुद को वाकई बहुत गम्भीरता के साथ सजग और मुस्तैद है। अब बस सिर्फ यह समझने की जरूरत है कि ऐसी शारीरिक शिकायतों का निदान कराने के लिए वह शख्स किससे सम्पर्क करे। जाहिर है कि ऐसी अधिकांश दिक्कतें फिजियोथेरेपी की ही होती हैं, इसलिए मरीजों को यह समझना होगा कि वे सीधे आसपास के किसी फिजियोथेरेपी सेंटर या किसी कुशल फिजियोथेरेपिस्ट से सम्पर्क करें। डॉ गौरव और डॉ जैनेंद्र चेतावनी देते हैं कि किसी क्वेक या झोलाछाप डॉक्टर से सलाह लेना किसी आत्मघाती कदम से कम नहीं होगा।
तो बस आखिर में सिर्फ इतना ही कहना है कि:- हैप्पी वर्ल्ड फिजियोथेरेपी डे। खुश भी रहिये, और अपने शरीर को भी खुश रखिये। यह दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं।