: अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च पर विशेष लेख श्रंखला- चार : जो 17 वें पायदान में है, असल टॉपर तो वही था : औरतें अगर अपना पल्लू कस लें, तो कांख पड़ेंगे लड़के : लड़की के हौसलों से दुम दुबा के भागे यूनिवर्सिटी के लोग : आसपास ऐसी कोई महिला दिखे तो हमें तक भेजिएगा खबर :
कुमार सौवीर
लखनऊ : जरा इस लड़की का किस्सा सुन लीजिए, तो आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे। ईमानदारी, संकल्प, क्षमता, अधिकार संघर्ष, समानता और समभाव के तहत अपने से जुड़े लोगों के सहानुभूति वगैरह भले ही लड़कों में इकाइयों के तौर जहां-तहां दिख सकते हैं। लेकिन उनका समवेत और सामूहिक प्रदर्शन इस लड़की ने जब किया तो लोग दांतों तले उंगलियां चबाने लगे। हल्ला इतना मचा कि पूरी यूनिवर्सिटी के कुलपति व रजिस्ट्रार समेत सारे कालेज के शिक्षक तक सहम गये। ज्यादा खुलासा कर पाना उचित नहीं होगा, लेकिन यह बता दूं आपको, कि करीब 13 साल पहले जब मैं अपने आफिस में बैठा था, करीब तीस-चालीस लड़कियां और लड़के मेरे पास आये। नेतृत्व कर रही थी एक लड़की। उम्र रही होगी वही कोई 20-21 साल। परिचय के बाद उसने मुझे एक अर्जी दी, जिस पर उन सारे बच्चों ने अपने दस्तखत किये थे। मैंने अर्जी को पढ़ना शुरू कर दिया। जैसे ही मैंने उसे पढ़ना शुरू किया, मेरे चेहरे की रंगत तक बदलने लगी। पूरा पढ़ लिया तो दिमाग घूम गया।
अब उस छात्रा का नाम मत पूछिये। आप उसका कोई भी नाम रख सकते हैं, मसलन पल्लवी नाम रख दीजिए न अपनी तसल्ली के लिए। तो यह पल्लवी वाले काल्पानिक नाम की युवती प्रदेश के एक बड़े खासे नामचीन कालेज की छात्रा थी। विषय था भूगोल। इस अर्जी के मुताबिक उस युवती ने अपनी यूनिवर्सिटी में टॉप किया है। लेकिन उसकी अर्जी में लिखा था कि वह युवती टॉप करने की योग्यता नहीं रखती है, और यह योग्यता केवल उसी लड़के में है जो इस परीक्षा में सबसे से नीचे सत्रहवें पायदान पर आया है। लेकिन मेरे आफिस में आये उन बच्चों में वह युवक मौजूद नहीं था।
यहां तक भी कोई दिक्कत नहीं थी। इस अर्जी में उस छात्रा ने आरोप लगाया था कि जिस छात्र को पल्लवी के बाद का सर्वाच्च नम्बर दिये गये हैं, उसे न पढने की तमीज है और न ही लिखने, बोलने, चलने और सामान्य शिष्टाचार तक की। पल्लवी का कहना था कि उसने इस बात की शिकायत कालेज से लेकर यूनिवर्सिटी तक से की, लेकिन उसकी बात दबायी जा रही है। उसकी मांग थी कि यूनिवर्सिटी वाले इस परीक्षा में 17 वें तक के सारे छात्रों की कॉपियों का पुनर्मूल्यांकन करायें, तो सारी हालत स्प्ष्ट हो सकती है। पल्लवी का आरोप था कि इस परीक्षा में उसे टॉप इसलिए कराया गया है ताकि कोई भी शख्स उस निकम्मे, छात्र को मिले इतने भारी नम्बर पर सवाल न उठा सके। और इसी साजिश के तहत उस मेधावी छात्र की हैसियत 17 वें पायदान पर रख दिया गया है।
अब समझ लीजिए कि यह टॉपर छात्रा कौन थी, और टॉप के दूसरे पायदान पर आया युवक कौन था। उस पल्लवी उस कालेज में उसी विषय के विभागाध्यक्ष थे, जबकि जो दूसरे पायदान पर आया, वह बिलकुल लफंगा था, लेकिन उस जिले के एक बड़े नेता और एक बड़े शिक्षक का बेटा था। खबर तो यहां तक थी कि उस लड़के को इस तरह पास कराने के लिए यूनिवर्सिटी के परीक्षा प्रभाग के लोगों में भारी रकम भी लुटायी गयी थी।
मैंने उस बच्चों को आश्वस्त किया कि मैं इस पर काम करूंगा। यह शुक्रवार की बात थी, लेकिन सोमवार को शहर के चंद पत्रकार-कलंकों के इशारे पर डॉक्टरों की एक बड़ी भीड़ ने मेरे आफिस हंगामा किया। नतीजा, मुझे उस शहर से हटा दिया गया। हालांकि मैंने अपने नये भेजे गये ब्यूरो चीफ को पूरी जानकारी दे दी, लेकिन शायद उनके लिए यह खबर प्रकाशन योग्यं नहीं थी।
लेकिन गजब देखिये कि यह युवती न्याय के लिए किस तरह भिड़ी। उसका हौसला देख कर मेरी आंखें भर गयी थीं। अब दिल पर हाथ रख कर बताइये कि आपने अपने आसपास कोई ऐसा युवक देखा है जो न्याय के लिए इतना त्याग कर सके, बेईमानों से भिड़ने का हौसला रख सके। अगर ऐसा कोई शख्स आपकी नजर में है, तो हमें फौरन बताइये। ऐसे लोगों पर रिपोर्ट-श्रंखला छाप कर हमें हर्ष होगा। हमारा पता है:- kumarsauvir@gmail.com, meribitiyakhabar@gmail.com