चर्चाएं खूब उड़ीं, कि वरना इस्तीफा दे देंगी सुजाता

सक्सेस सांग

 

पिता की पार्टी में सोनिया की मौजूदगी पर चर्चाएं खूब

: चोकिला अय्यर और निरूपमा राय के बाद तीसरी महिला : टीवी राजेश्वर की बेटी हैं सुजाता सिंह : आईबी मुखिया और राज्यपाल भी रहे हैं राजेश्वर :

कुमार सौवीर

विदेश सचिव जैसे पद के लिए तो किसी भी सचिवालयों के आला अधिकारियों के बीच होड़ चलती रहना सामान्य बात है। खुसफुस शुरू हुई थी कि चीन में भारत के राजदूत जयशंकर को अगले विदेश सचिव की कुर्सी थमाने की कोशिशें चल रही हैं। खासतौर पर चीन के ताजा माहौल और पिछले कुछ वक्त के चलते भारत के साथ हल्के रिश्तों में जयशंकर सिंह की भूमिका शुरू से ही सकारात्मक रही है। चीन में राजदूत के तौर पर उनका शानदार रिकॉर्ड होने की वजह से विदेश सचिव के पद के लिए उनके नाम की चर्चा थी।

मगर इस खेमे की मुखालिफ जुटे लोगों का तर्क था कि जयशंकर का वरिष्ठता दर्जा सुजाता सिंह से एक बैच नीचे है। विदेश मंत्रालय के अन्य आला राजनयिक एस जयशंकर के बारे में होने वाले फैसले का विरोध कर रहे थे। मनमोहन खेमा चाहता था कि चीन के मसले पर जयशंकर नाम की गोटी सफल हो सकती है, जबकि सोनिया खेमा चाहता था कि वरिष्ठता और श्रेष्ठता को कभी ठेस नहीं लगनी चाहिए। वैसे भी दूसरे मामलों का भी छोड़ भी दिया जाए, तो सुजाता सिंह का नाम कभी भी किसी छोटे से भी विवाद में नहीं आया। वे सख्ती और नियमानुसार काम करने वाली अधिकारी हैं। साथ ही उनकी छवि चमत्कारिक और विजनरी ब्यूरोक्रेट के तौर पर भी है। इसीलिए उन्हें इस पद पर जमे रखने के लिए एक साल का एक्सटेंशन भी दे दिया है। ऐसा कहा जा रहा है कि विदेश कार्यालय के इस सर्वोच्च पद के लिए अन्य उम्मीदवारों में चीन में भारतीय राजदूत एस. जयशंकर, इंग्लैंड में भारत के उच्चायुक्त जैमिनी भागवती, सचिव (पश्चिम) सुधीर व्यास तथा सचिव (आर्थिक संबंध) पिनाक रंजन चक्रवर्ती शामिल हैं।

सीनियर को नजरअंदाज कर के जूनियरों को आला पदों पर बिठाने का शौक भारत की सत्ता में काफी पुरानी है। सन-06 में इसी तरह शिवशंकर मेनन को कई वरिष्ठ अधिकारियों की वरिष्ठता को धता बता कर विदेश सचिव बना दिया गया था। नतीजा, खूब दंगल हुआ और मंत्रालय में बगावत की हालत बन गयी। अब सुजाता सिंह के लेकर यह विवाद नहीं उठा है, लेकिन यह भी तो हकीकत है कि शिवशंकर मेनन आज भी मौजूदा सरकार की आंखों का तारा बने हुए हैं और फिलहाल राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं। ऐसे दर्जनों प्रकरण मौजूद हैं। अब अफवाहों पर अगर देखा जाए तो वरिष्ठता के झगड़े पर सुजाता ने धमकी भरा पत्र लिखा और कहा कि अगर वरिष्ठता पर ध्यान नहीं दिया गया तो वह जर्मनी के राजदूत के पद से इस्तीफा दे देंगी।

लेडी श्री राम कॉलेज और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पढ़ीं सुजाता हालांकि भारत के किसी भी पड़ोसी देश में राजनयिक नहीं रही हैं लेकिन यूरोप, इटली और फ्रांस में अपनी पदस्थापना से पहले वह वर्ष 1982 से 1985 के बीच नेपाल के लिए अवर सचिव रह चुकी हैं। देश के विदेश सचिव की कुर्सी पर इससे पहले चोकिला अय्यर और निरूपमा राव भी बैठ चुकी हैं। और कहने की जरूरत नहीं कि इन दोनों ही महिला सचिवों ने अपना-अपना पूरा कार्यकाल शानदार और बेदाग रखा। अब सुजाता सिंह की बारी है। बाकी इंशा अल्ला

 

विदेश सचिव सुजाता सिंह पर रिपोर्ट का पिछला अंक पढ़ने के लिए कृपया क्लिक करें:- श्रेष्‍ठता के बावजूद जोड़तोड़ से जीतीं सुजाता सिंह

कुमार सौवीर की यह रिपोर्ट लखनऊ और इलाहाबाद से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र डेली न्यूज एक्टिविस्ट के 3 जुलाई-13 के अंक में प्रकाशित हो चुकी है।

 

 

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