रायफल शूटिंग में सासाराम की बेटी कर रही कमाल
सासाराम : ‘जरा मौका तो दो, फिर आसमान देखना, खोल लूं अगर पंख तो फिर उड़ान देखना’। मौका मिले तो बेटियां बेटों से किसी मायने में कम नहीं हैं। ऐसा ही एक उदाहरण सासाराम शहर से सटे बेदा गांव के एक अनुसूचित जनजाति परिवार की बिटिया ने पेश किया है। सीमित संसाधन व आर्थिक तंगी के बावजूद तकिया कालेज की स्नातक द्वितीय पार्ट की छात्रा स्मृति कुमारी रायफल शूटिंग में लगातार बेहतरीन प्रदर्शन करती जा रही है। फिर भी राज्य सरकार, जिला प्रशासन या कोई सक्षम जनप्रतिनिधि अब तक निशानेबाज बिटिया के प्रोत्साहन को आगे नहीं आए हैं। हालांकि इस बीच एनसीसी ने स्मृति की प्रतिभा को सम्मानित किया है। राष्ट्रीय स्तर पर बेहतरीन प्रदर्शन करने को ले उसे बीते 1 मई को एनसीसी की ओर से दस हजार नगद राशि प्रोत्साहन के रूप में दी गयी है।
वर्ष 2009 में एनसीसी की 42वीं बटालियन से जुड़कर निशानेबाजी में हाथ आजमा रही स्मृति की उपलब्धियों की फेहरिस्त लम्बी हो चुकी है। उसके ट्रेनर तक स्वीकारते हैं कि अगर मौका मिले तो वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश के लिए पदक ला सकती है। परंतु निम्न मध्यमवर्गीय अनुसूचित जन जाति परिवार की होने के कारण उसके लिए नियमित ट्रेनिंग ले पाना संभव नहीं हो रहा। स्थानीय स्तर पर भी कोई ऐसा शूटिंग रेंज नहीं, जहां स्मृति अपने निशाने को धार दे सके। राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बेहतर करने के लिए उन्नत किस्म की रायफलें भी चाहिए, जो अभी तक स्मृति के लिए सपना है।
उपलब्धियों पर एक नजर
1. वर्ष 2012 में 19 दिसम्बर से लेकर 30 दिसम्बर तक नई दिल्ली में सम्पन्न 56वें नेशनल शूटिंग चैम्पियनशिप में 20वां स्थान
2. नेशनल शूटिंग चैम्पियनशिप में बिहार से चयनित दो प्रतिभागियों में शामिल
3. वर्ष 2012-13 में पश्चिम बंगाल के आसनसोल में हुए जीबी मावलंकर आल इंडिया इंटर स्टेट शूटिंग चैम्पियनशिप में 5वां स्थान
4. एनसीसी के गया ग्रुप में वर्ष 2010-11 व 2012 में उत्कृष्ट निशानेबाज का खिताब
5. रांची में वर्ष 2011 में हुए 22वें बिहार-झारखंड रायफल्स शूटिंग प्रतिस्पर्धा में प्रथम स्थान
मां-बाप की टीस
इस होनहार बिटिया के पिता कामेश्वर राम गोंड व मां चिंता देवी के अनुसार रायफल शूटिंग के अलावा स्मृति सांस्कृतिक गतिविधियों में स्मृति सक्रिय रहती है। रोहतास में शूटिंग रेंज नहीं रहने से उसे अभ्यास करने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। अभ्यास लिए रांची में शूटिंग रेंज है परंतु वहां भेजने में आर्थिक तंगी आडे़ आ रही है। फिर भी स्मृति की ख्वाहिश आकाश छूने और कुछ कर गुजरने की है।
प्रोत्साहन की दरकार
रोहतास महिला महाविद्यालय की व्याख्याता डा. सावित्री सिंह कहती हैं कि सशक्तिकरण के दौर में महिलाएं न सिर्फ समाज की कुरीतियों से लड़ रही हैं बल्कि पुरुषों के कंधे से कंधा मिला रही है। निश्चित रूप से बेटियों के प्रति सोच बदलने की आवश्यकता है। उनके अनुसार प्रतिभा सम्पन्न छात्र-छात्राओं को राज्य सरकार से प्रोत्साहन मिलना चाहिए।