इश्क नहीं, पूर्वांचल की जमीन में खोजिये मेधावी युवतियों की आत्म‍हत्या के कारण

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: पूर्वांचल की ही हैं आत्महन्ता श्रेष्ठतम मेधावी युवतियां : बीएचयू में प्रोफेसर और पूसा रोड संस्थान वैज्ञानिक पदों पर थीं यह बच्चियां : एक ने सगाई टूटने पर आत्महत्या की, तो दूसरी ने शादी के चार महीना बाद : एक थी इतिहास की व्याख्याता तो दूसरी प्लांट फिजियो में वैज्ञानिक : आत्महत्या कर रही हैं आपकी-हमारी बेटियां- दो :

कुमार सौवीर

लखनऊ : काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के पद पर हाल ही तैनात हुई थीं स्वाति पाण्डेय, लेकिन पांच दिन पहले ही अचानक स्वाति ने घर में पंखे पर दोपट्टा से फंदा बना कर अपनी इहलीला समाप्त कर दी। उधर दिल्ली के पूसा रोड स्थित राष्ट्रीय कृषि संस्थान में वैज्ञानिक रही पूजा राय ने भी तीन दिन पहले अचानक पंखे से लटकर कर आत्महत्या कर ली। लेकिन इन दोनों घटनाओं में एक अजीब सी साम्यता दिख रही है। वह यह कि यह दोनों ही युवतियां उप्र के पूर्वांचल क्षेत्र से ही जुड़ी हुई हैं। स्पष्ट है कि इस पूरे पिछड़े क्षेत्र में महिलाओं की आत्महत्याओं का खाद-पानी बढ़ रहा है।

आपको बता दें कि पिछले दिनों हुईं इन दोनों घटनाओं में वैसे तो कोई भी रिश्ता नहीं दिख रहा है, जिसके आधार पर उन्हें आपस में जोड़ा जा सके। लेकिन इतना तो तय ही है कि यह दोनों ही हादसे एक ही क्षेत्र विशेष के हैं। वह भी आपस में अधिकतम सौ किलोमीटर की दूरी पर। दूसरी साम्यता यह भी है कि स्वाति ने जहां अपनी सगाई टूटने के बाद यह फैसला किया, वहीं पूजा ने अपने चार महीने के दाम्पत्य‍ जीवन के बाद आत्महत्या कर डाली।

अपने लक्ष्य के प्रति बेहद संवेदनशील रही हैं यह दोनों युवतियां। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने हताशा में यह फैसला किया। हैरत की बात है कि इन दोनों ही युवतियों की शैक्षिक परिस्थितियां श्रेष्ठतम रही हैं, वरना इनका इन उच्च शैक्षिक पदों तक पहुंच सकना मुमकिन नहीं होता। स्वाति पाण्डेय जहां भारतीय प्राचीन इतिहास की असिस्टेंट प्रोफेसर थी, वहीं पूजा राय ने पादप काय यानी प्लांट फिजियोलॉजी में वैज्ञानिक का पद हासिल किया था।

अब इन यु‍वतियों के पारिवारिक पृष्ठभूमि को भी टटोल लीजिए। स्वाति पाण्डेय तो वाराणसी की घनी आबादी भेलूपुर स्थित जानकीनगर कालोनी की रहने वाली थी। यहीं पर उसका जन्म हुआ और उसका परिवार भी वाराणसी में कई पीढि़यों से रह रहा है। स्वाति अपने घरवालों के साथ ही भूलूपुर में रहती थी। उधर पूजा राय मूलत: गाजीपुर और बलिया की सीमा पर बसे हथौंज गांव की रहने वाली थी।

हमारे समाज में व्याप्त धारणाओं के मुताबिक सामान्य तौर पर इन हादसों को प्रेम के विभिन्न आयामों-चरणों पर देखा जाता है। लेकिन लखनऊ विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र  विभाग की वरिष्ठ प्रोफेसर डॉक्टरर निधि बाला जी इसे अलग तथ्य देखती हैं। उनका साफ मानना है कि अब हमें इन दोनों हादसों को इश्क के परिणाम के तौर पर नहीं देखना चाहिए। बल्कि ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण हादसों की जमीन-कारण तो हमारे पूर्वांचल की जमीन में दबे हुए हैं। हमें वहीं पर इनके कारण-कारक तत्वोंब को खेाजना पड़ेगा। कि आखिरकार इन मेधावी युवतियों ने अपने जीवन का सर्वोच्च फैसला क्यो किया।

जाहिर है कि इस साम्यता के बाद अब शोधार्थियों का जिम्मा बढ़ जाता है कि वे ऐसे साम्यता और पूर्वांचल में हो रही महिलाओं की आत्महत्याओं पर शोध करना शुरू करें।(क्रमश:)

यह लेख श्रंखला है। सिलसिलेवार चलेगी।

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