ताजा इतिहास में धर्मिक सन्तों ने धर्म को खूब स्खलित किया

मेरा कोना

: गजब है हमारे देश की सन्त परम्परा, और धन्य हैं हम देशवासी : बुद्ध, महावीर, विवेकानंद, श्रीराम, ओशो, आसाराम के बाद अब श्रीश्री : इब्तिदाये इश्‍क में हम सारी रात जागे, अल्ला जाने क्या होगा आगे :

कुमार सौवीर

लखनऊ : भारत में साधु-सन्तों ने धर्म और आध्यात्म को जो जबर्दस्त ताकत दी है, वह बेमिसाल है। अपने मिशन की सुरक्षा और मजबूती के लिए इन लोगों का नाम पूरे श्रद्धा से लिया जाता है। चाहे वे बुद्ध, महाबीर, चैतन्य प्रभु रहे हों, विवेकानंद रहे हैं, श्रीराम शर्मा रहे हों या फिर आचार्य ओशो। इन सब ने अपनी बात कहने के लिए बाकायदा एक दर्शन विकसित किया, और इसके लिए आम आदमी को बेहिसाब मेहनत कर एकजुट किया।

लेकिन अब यह वैचारिक, धार्मिक, आध्यात्मिक स्खलन-विचलन का दौर है। पतंजलि ने कोई प्रचार नहीं किया, लेकिन उस ऋषि की व्यपस्यना-पद्यति हजारों साल भी गजब जीवन्त है। शक्य-मुनि बुद्ध ने राजपाट छोड़ दिया, महावीर ने राजमहल त्‍याग दिया। मुक्ति के नये-नये महासागर खोदे-भरे गये। बंगाल से दौड़ कर केवल एक खंजड़ी लिये चैतन्य प्रभु ने वृंदावन की कुंज गलियां नाप डालीं। आस्थाओं की अश्रु-सरिता कलकल बह निकली। विवेकानन्द ने अपने गुरू के नाम पर जन-कल्याण की बेमिसाल अट्टालिकाएं खड़ी कर दीं। आध्यात्म का जो राजमार्ग विवेकानन्द ने बनाया, वह अप्रतिम है। अपने लिए एक धेला तक नहीं रखा। एक-एक आने का सहयोग के लिए अपने हाथों से पोस्टकार्ड पर संदेश भेजने वाले आचार्य शर्मा ने कभी भी धर्म-आध्यात्म को पाखण्ड के किसी भी पायदान पर नहीं चढ़ने दिया।

ओशो तो आधुनिक समाज में खुलेपन के सबसे बड़े धार्मिक वकील बन कर निकले। इस सन्त ने धर्म के आध्यात्मिक पक्ष को स्त्री-पुरूष उन्मुक्तता के साथ-साथ खोला। योग और भोग के समन्वय का एक अप्रतिम फलक खोला ओशो ने। अपनी बात कहने के लिए जो दर्शन ओशो ने प्रस्तुत किया, उसने एक बड़े समुदाय को वैचारिक असलहा थमा दिया।

लेकिन अब तो आसाराम और की सन्तानों ने गजब कहर ढा दिया है। उसके परिणाम सबके सामने हैं। आसाराम कई नाबालिग किशोरियों से बलात्कार के आरोपों में जेल में बन्द हैं। बाहर निकलने के लिए खुद को पागल करार देने पर आमादा हैं। उनका बेटा भी बलात्कारी निकला, जेल में है। राधे मां ने भी धर्म में व्यभिचारी आग्रहों की पैरवी की।

लेकिन रविशंकर तो गजब हठी निकले। शुरूआत तो उन्होंने जीवन की कलाओं को समझाने के आध्याय से किया। लेकिन अब वे दबाव की राजनीति पर चढ़ गये। युमना नदी के किनारे जिस डूब-क्षेत्र में अपना कार्यक्रम शुरू किया, वह शुरू से ही विवादों की बलि चढ़ गया। दर्जनों किसानों की खेती तबाह हो गयी। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने नदी क्षेत्र में सैकड़ों हरे विशाल पेड़ों को तहस-नहस करने के खिलाफ पांच करोड़ की पेनाल्टी लगा दी।

जब एनजीटी ने यह आदेश दिया तो अब तक शालीनता की प्रतिमा बने रहे श्रीश्री रविशंकर अचानक ही अपनी शालीनता की चादर फेंकते हुए किसी बिगडैल बाहुबली की तरह बाकायदा काट खाने पर आमादा हो गये। बोले:- पैसा तो एक धेला तक नहीं दूंगा। चाहे जो चाहो, उखाड़ लो। लेकिन बाद में इस सन्त ने एनजीटी से डील कर ली और उसकी एवज में एडवांस पचीस लाख का भुगतान कर दिया।

कमाल है। आप अपराध भी करेंगे, और जब सरकारी एजेंसियां उस पर ऐतराज करेंगी, तो आप बाकायदा किसी सड़कछाप गुण्डे की तरह बमक पडेंगे। और अब जब कार्यक्रम शुरू हुआ, इस शालीन संत के शिष्यों ने आर्ट ऑफ लिविंग के नाम पर सार्वजनिक चुम्मा-चाटी का भोंडा प्रदर्शन कर दिया।

यह है इस शालीन संत का आचारण और उसकी सन्तई। इतिहास में कभी भी ऐसा कोई नजीर-उदाहरण नहीं है। गनीमत है, कि कलई खुल गयी उसकी शालीनता और सन्तई की।

ओशो ने तो जो भी किया, उसे जमीन पर शुरू से ही स्पष्ट और सपाट ही रखा। साफ रखा कि उसके आध्यात्मिक तत्वों, तर्कों और आधारों में क्या-क्या चीजें समाहित हैं। ओशो के पास अपनी बात कहने के लिए बाकायदा एक दर्शन था, लेकिन रविशंकर के पास न तो कोई आधार है, न तत्व, न आधार और न कोई दर्शन।

मैं नजूमी या भविष्यवक्ता नहीं हूं। लेकिन अनुमान जरूर लगा सकता हूं कि रविशंकर के इस धर्म-आध्यात्म की बयार कैसी-कितनी बदबू फैलायेगी। पूत के पांव पालने में ही दिखने लगे हैं।

इब्तिदा-ए-इश्क हम सारी रात जागे। अल्ला जाने क्या होगा आगे-आगे।

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