: हनुमान-चालीसा में तो सटीक चरितार्थ होती है हाईकोर्ट वाली न्याय-व्यवस्था : प्राइवेट-प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों से आधा वेतन उगाहते हैं सीएमओ : अधिकांश शिक्षकों को न बोलने की तमीज, न पढ़ने और न ही लिखने का सलीका : पुलिस में तो बिना घूस के जरूरी काम भी टस-से-मस नहीं होता :
कुमार सौवीर
लखनऊ : दोहा आधारित हनुमान चालीसा की एक लाइन का आखिरी हिस्सा है:- होत न आज्ञा बिनु पैसारे। हालांकि यह दोहा धार्मिक और समर्पण को लेकर तैयार है, लेकिन उसकी शब्दावली का अनर्थ आजकल वकीलों और सरकारी कर्मचारियों-अफसरों में खूब इस्तेमाल होता है। बात-बात पर यही जुमला उठाया-फेंका जाता है कि सरकारी कामकाज बिना पैसा के नहीं चलता है, यह बात तुलसीदास भी कह चुके थे कि होत न आज्ञा बिनु पैसारे, अर्थात बिना पैसा के कोई भी आज्ञा नहीं हो सकती है आज के जमाने में।
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इसी संदर्भ में अब आइए लखनऊ हाई कोर्ट। यह न्याय का मंदिर किसी बिक्री या नीलामी घर से कम नहीं। लखनऊ के जुझारु वकील हैं सत्येंद्र नाथ श्रीवास्तव। उन्होंने बताया है किस तरह लखनऊ हाई कोर्ट की रजिस्ट्री में फाइल करते समय अगर घूस नहीं दी जाती है तो पचासों एतराज दर्ज कर पिटीशनर और वकील को परेशान किया जाता है। कहने की जरूरत नहीं है यह कार्रवाई इसलिए होती है ताकि आप के हौसले टूट जाएं और आप हमेशा के लिए भ्रष्टाचार नाले में रहने पर मजबूर हो जाएं। सत्येंद्र श्रीवास्तव ने जिक्र भी किया है कि किस तरह “एक पिटीशन जमानत याचिका में किस तरह आपराधिक ब्लंडर होने के बावजूद उसे पास कर दिया। इतना ही नहीं, उस पर फैसले तक हो गये। कारण यह कि ऐसी पिटीशन दायर करने वाले वकील रजिस्ट्री के कर्मचारियों की मोटी कम कर देते हैं, इसलिए इनके ऐसे ब्लंडर इग्नोर कर दिया जाता है। परेशानी उनको है जो साफ सुथरा काम करना चाहते हैं।
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“हाई कोर्ट मे रिट पासिग सेक्सन ने पहला डिफेक्ट लगाया कि आपने ग्रुप कोड केवल इन्डेक्स पर लिखा है .मैने हर पेज पर ग्रुप कोड लिख दिया .फिर जनाब ने दूसरा डिफेक्ट लगाया साईन साफ नही है मैने फिर साफ तरह से साईन कर दिया , जनाब ने तीसरा डिफेक्ट लगाया कि वकालतनामा मे मुवक्किल का फोन नम्बर नही है मैने फोन नम्बर दे दिये .फिर कहा कि सफेद पेज लगाईये मैने लगा दिया .दरअसल ये सब काम सुविधा शुल्क मागने के लिये हो रहा था मैने कहा लगाओ पचास डिफेक्ट मै भी आज पचासो डिफेक्ट रिमूव करूगा पर सुविधा शुल्क नही दूगा .पहली बार मे कहा होता तो दे देता चाय पानी के लिये.
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“अब कल हमारे सामने एक अरेस्ट स्टे की पिटीसन आई जिसमे इन्डेक्स,आई आर ,मेन पिटीसन,एफीडेविट पर In The Hon’ble High Court Judicature at Allahabad Bahraich Bench Lucknow लिखा था रिट पास हो गई और कोर्ट मे आर्डर भी हुआ.
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“इतना बडा ब्लन्डर जनाब को न दिखा .अब मै अगर कम्पलेन करू तो जनाब हमारी फाईल मे डिफेक्ट निकालना भूल जायेगे…”
माना कि वकील सरकारी मुलाजिम नहीं, लेकिन पैसा तो वह अदालतों से ही हासिल करता-कराता है। बुरी हालत है वकीलों की। आप उंगलियों में गिन लीजिए कि कितने वकील वाकई अपने पेशे पर खरा है, लेकिन हर वकील को यह जरूर पता होता है कि कौन जज-मैजिस्ट्रेट से किस वकील की सेटिंग होती है। बात-बात पर आंदोलन खड़ा कर देना, वकीलों के पेशे का प्राथमिक और सर्वोच्च दायित्व बन चुका है।
आप उंगलियों में गिन लीजिए कि कितने वकील वाकई अपने पेशे पर खरा है, लेकिन हर वकील को यह जरूर पता होता है कि कौन जज-मैजिस्ट्रेट से किस वकील की सेटिंग होती है। ( क्रमश: )
बेईमानी और भ्रष्टाचार हमारे देश या समाज में नहीं, बल्कि हमारे-आपके जैसे हर देशवासी के दिल-दिमाग में धंसा-घुसा है। जहां धोखा और झगड़ों की नित-नयी कोंपलें निकलती रहती हैं, नैतिकता के नये रास्ते खुलते रहते हैं।
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