मण्‍टो की कहानी है “खोल दो”, पढ़कर दहल जाएंगे आप

सैड सांग

: जौनपुर में पीसीएस, जबकि मण्टो में कूट-कूट कर भरी थी इंसानियत : बच्ची में जुम्बिश देख बाप को खुशी, जुल्फी को पागलखाना याद आया :

कुमार सौवीर

लखनऊ : पिछली सदी में सआदत हसन मण्टो भारत के बेमिसाल अफसानानिगार-साहित्यकार रहे हैं। किसी के भी रोंगटे खड़े कर देने वाली उनकी एक कहानी का नाम है:- खोल दो। इस कहानी में एक बच्‍ची के साथ सामूहिक दुराचार के बहुआयामी प्रभावों पर चर्चा की गयी है। बिलकुल दंग कर देने वाली कहानी है यह।

इस कहानी में मण्टो ने एक बच्ची का किस्सा बयान किया है, जिसके साथ कई दिनों तक बलात्कार हुआ। उसका बाप अपनी बेटी को खोजने के लिए कई दिनों तक तड़पता है, इधर-उधर खोजता है। आखिर में उसे पता चलता है कि वह बच्ची़ शहर के किसी अस्पताल में कोमा में है। भागा-भागा वह बुड्ढा अस्पताल पहुंचता है। पाता है कि वह बच्ची उसकी ही है।

वह दौड़ कर डॉक्टर के पास पहुंचता है, यह जांच कराने के लिए वह बच्ची जिन्दा है भी या नहीं। डॉक्टर उस बिस्तर की ओर पहुंचता है, वार्ड में अंधेरा और उमस है। अपने पीछे खड़े एक वार्ड ब्वाय की ओर देख कर वह आदेश देता है:- खिड़की खोल दो

यह सुनते ही कोमा में पड़ी उस बच्ची के शरीर में हरकत होती है। उसके हाथ जुम्बिश करते हैं और धीरे से वह बच्ची अपनी सलवार अपनी जांघों से नीचे उतारने लगती है।

मण्टो की इस कहानी में इस घटना निहायत डरावनी है। बाप रे बाप। कितनी हैवानियत झेली होगी उस बच्ची  ने, कि नीम बेहोशी में भी…. उफ्फ्फ्फ

लेकिन कहानी आगे भी है।

बच्ची के बदन में यह हरकत देखकर उसका बाप मारे खुशी के चिल्ला पड़ता है:- जिन्दा है, जिन्दा है। मेरी बेटी जिन्दा है।

मण्टो की कहानी यहीं तक खत्म  हो जाती है। लेकिन जौनपुर में इस कहानी को और भी विस्तार मिल जाता है। मण्टो की कहानी के अंतिम मोड़ को जौनपुर में एक अनोखा मोड़ दे दिया है। जौनपुर में 17 फरवरी-16 की रात जब एक किशोरी बेहोशी की हालत में सड़क के किनारे पायी जाती है, तो डीएम चंद्रभानु गोस्‍वामी और एसपी शिवशंकर यादव इस पूरे मामले को दबाने की साजिशें करते हैं। उसकी रिपोर्ट दर्ज करने के बजाय, पहले तो उसे बनारस के पागलखाने में भेजने की साजिश होती है, लेकिन जब पागलखाने के डॉक्टर उसे पागल मानने से इनकार करते हुए बच्ची को वापस जौनपुर भेज देते हैं। लेकिन दो दिन बाद उस बच्ची की बला अपनी सिर से टालने के लिए उस बच्ची को हमेशा-हमेशा के लिए बनारस के नारी निकेतन में भेज देते हैं। अपनी सफलता पर प्रशासन अपनी जुल्फी झटकते हुए मंद-मंद मुस्कुराता है, जबकि जौनपुर की जनता टुकुर-टुकुर ताकती रहती है। निर्निमेष।

आखिर क्यों न हो? जौनपुर तो पीसीएस लोगों से अटा पड़ा है।

है कि नहीं?

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