जब प्रेमिका ने लगायी गुहार:- अरे बच्चों! इधर आओ। प्रणाम करो, ये तुम्हारे मामा हैं

मेरा कोना

किस्सा बकलोल, प्रदीप, किसानी, प्रेमिका से लेकर मामा और दारू तक का 
कबीरा सारा रारा रारा रारा रारा। बुरा न मानो, होली है

कुमार सौवीर

लखनऊ : बकलोल तो आप समझते ही होंगे। है ना?

अरे बकलोल का मतलब निरा मूर्ख, चू‍तिया, मंद-बुद्धि, कालिदास का प्राथमिक छात्र आदि-इत्यादि होता है। ऐसे लोगों को तो आप अपने खुद समझ सकते हैं। आप को बताने की जरूरत नहीं पड़ती। वो खुद ही ऐसी हरकत कर बैठेगा, कि आप न चाहते हुए भी मान जाएंगे कि वह आदमी पक्का चूतिया या बकलोल है।

खैर, यहां मेरा मकसद किसी की महानता का बखान करना नहीं है। मैं तो हंसी-ठिठोली वाली होली के इस पुनीत मौके पर एक हृदयविदारक घटना का जिक्र करना चाहता हूं। इस हौलनाक हादसे को सुन कर आप स्तब्ध- रह जाएंगे। न चाहते हुए भी आपकी आंखों से अश्रु-सुनामी हाहाकार कर देगी।

प्रदीप दीक्षित को तो आप जानते ही होंगे। है ना?

अरे वही प्रदीप दीक्षित, जो पहले टैक्सी का धंधा करके बाद में दवाई के धंधे में उतरे थे। जब दवाई ने दम दिखना शुरू कर दिया तो वे बड़की मुर्गी पालने लगे। बड़की मुर्गी मतलब ईमू। शुतुरमुर्ग की छुटकी बहिनिया। अब शुतुरमुर्ग ने तो अपना नाम अपने व्यबहार के चलते पूरी दुनिया में ऑस्ट्रिच-बिहैवियर के तौर पर मशहूर करा लिया, कि वह खतरा देखते हुए अपना सिर बालू में घुसेड़ लेती है।यह सोच कर कि जब वह किसी को नहीं देख रही है, तो मतलब यह कि कोई दूसरा भी उसे नहीं देख रहा होगा।

लेकिन शुतुरमुर्गी की छोटकी बहिनिया ने ऐसे-ऐसे करम करा दिये प्रदीप दीक्षित के साथ, कि वे मुर्गीबाजी छोड़ कर खेती किसानी की ओर बढ़ गये।

किसान को तो आप जानते ही होंगे। है ना?

अरे वही किसान जो इस देश में सबसे बड़ा बकलोल होता है। सरकार ने जितना चूतिया किसान को बनाया है, किसी और को नहीं। अच्छे-खासे कुंए और उसमें रहट बने हुए थे। आदम के जमाने तक से। लेकिन ट्यूबवेल के चक्कर में सारे कुएं पट गये। सूखी नहरों-गूलों से सिंचाई की अभिनव योजनाएं बनीं। इनका सुखद प्रभाव यह पड़ा कि खेतों में हरियाली की रंगत पीलेपन में तब्दील हो गयी। अनाज के पौधे अनाज देने के बजाय अलाव तापने के इस्तेमाल में आने लगे।

फिर सरकार को लगा कि जो खेत सूख गये हैं, उन्हें  मुआवजा दिया जाना चाहिए। प्रदीप दीक्षित पिछले साल ही किसानी का धंधा थाम चुके थे। सोचा था कि यह धंधा चोखा है, हर बीज से सैकड़ों गुना उपज होगी। शेखचिल्ली की तरह उन्होंने फेसबुक पर अपना नाम जुड़वाया:- प्रदीप किसान

मिला बाबा जी का घण्टा ।

आज तक मुआवजा नहीं दिया हरदोई के जिलाधिकारी ने। बहुत चिल्लाये किसान तो दो-चार को सौ-सौ रूपल्ली का चेक दे दिया। भौंचक्के किसानों ने पांच-पांच सौ का खर्चा अपनी जेब से देकर वह चेक शीशे में मढवा लिया और दीवार पर टांग लिया।

अब बर्बाद प्रदीप दीक्षित घुग्घू बंदर हो गये। फेसबुक पर अपना नाम बदला:- प्रदीप एक्स किसान।

प्रेमिका तो आप जानते ही होंगे। है ना?

अरे वही प्रेमिका जो किसी भी मोहब्बत-कामी को खून के आंसू बहवा देती है। प्रेमिका हल्के से दूसरों की बाहों में बह जाती है, जबकि प्रेमियासे लोग कुकुर की तरह सिर उठा कर भों-भों रोते रहते हैं। बाद में ऐसे प्रेमी सहगल और रफी के गीत गाते हुए अपने टेसुए बहाते रहते हैं। प्रदीप दीक्षित एक्स-किसान जैसे लोगों को चूतिया बना देती है प्रेमिका। ऐसा बनाती है कि आदमी पक्का बकलोल हो जाए। लब्बोलुआब यह कि प्रदीप दीक्षित भी बकलोल हो गये।

मामा को तो आप जानते ही होंगे। है ना?

अरे वही मामा, जो किसी को भी मामू बना डालती है। पुलिसवाले अगर किसी शख्स से सबसे ज्यादा गुस्सा निकालते हैं तो उस पर जो उन्हें मामा कह देता है।तो दोस्तों। हर ओर से टूट-तोड़ होकर प्रदीप दीक्षित ने अपना उस प्रेमिका की ओर रूख किया, जिसे वे बेहद प्यार किया करते थे। लेकिन वक्त ने ऐसे-ऐसे जुल्म ढाये प्रदीप पर कि प्रेमिका किसी और का घर बसाने चली गयी।

खैर, प्रदीप जब उस अपनी प्रेमिका के घर पहुंचे, तो घर में तीन-चार बच्चेो कोलाहल मचाये हुए थे, जैसे गांवों में पीपल के पुराने दरख्त पर हजारों चिडि़यां चींचीं चींचीं करती रहती है।

अब तक प्रेमिका भी आ गयी।

“अरे प्रदीप। तुम? यहां कैसे? अचानक कैसे आना हुआ? कोई खास बात तो नहीं है? बैठो बैठो, इधर सोफे पर बैठो ना। आराम से। हटो बच्चों  तुम लोग उधर सरको। शोर मत करना।”

प्रेमिका सवालों की मानसूनी झड़ी बरसा रही थी, और इसके पहले कि प्रदीप दीक्षित एक्स किसान किसी भी एक सवाल का जवाब दे पाते, प्रेमिका ने एक प्यारा जुमला  फेंका:- “बच्चों। देखो, देखो। यह तुम्हारे मामा हैं। चलो मामा जी को प्रणाम करो।”

बसंत पंचमी के दिन होली का झण्डा फहराया जाता है ना, ठीक उसी बाद से ही हमारे एक्स किसान मियां देसी दारू के पाउच उड़ेले सडक के किनारे नाली में लेटे हुए आराम कर रहे हैं।

मानो, एलडीए ने उन्हें नाली ही अलाट कर दिया।

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