: हमारे समय के सुकरात का जानागुरु का महाप्रयाण गुरुवार को ही हुआ :
राघवेंद्र दुबे
नई दिल्ली : पत्रकारिता से कांग्रेस तक पहुंचे राघवेंद्र दुबे ने देवी प्रसाद त्रिपाठी को नम आंखों से याद किया है। उन्होंने लिखा है कि डीपी त्रिपाठी उनके गुरू थे और गुरूवार को ही उनका महाप्रयाण हो जाना काफी कष्टप्रद रहा। दुबे ने अपनी एक किताब के एक अंश का उल्लेख करते हुए इस विदाई का भाव-प्रवण जिक्र किया है।
हमारे समय के सुकरात का जानागुरु का महाप्रयाण गुरुवार को ही हुआ । आज सुबह 9.50 पर नहीं रहे राजनीतिक चितंक , जन बुद्धिधर्मी , डीपी त्रिपाठी ।
” एक आद्यन्त लय और संवेग का रेखांकन इतना आसान भी नहीं है । एक ऐसे व्यक्तित्व पर लिखना , उसे महसूसना कठिन तो था मेरे लिए जो इतिहास और स्वप्न के बीच चलते हुए , अपनी खुली आंखों के सामने के विराट स्पेस में निरन्तर कोई चित्र रचता रहता हो । ऐसे डीपीटी पर । या उनके जैसों के सूरज पर । जो मध्य उत्तर प्रदेश के एक पिछड़े इलाके से , आर्थिक – दैहिक भरपूर अपंगता का शिकार , समय और समाज के सबसे क्रूर चयन से होता हुआ आज संसदीय राजनीति और नीति समझने की खिड़की की तरह खुलता हो । ”
: ( डीपीटी पर मेरी आने वाली किताब ‘ सर्वहारा सामंत : डीपीटी का सूरज ‘ से )