स्मृतिशेष: यारों के यार शेखर त्रिपाठी

दोलत्ती

: ऑपरेशन-रूम तक बेहद सतर्क-सजग बने रहे शशांक शेखर त्रिपाठी : शेखर चेन स्मोकिंग करते थे। शुगर की प्रॉब्लम थी : पेट में पहले से कोई प्रॉब्लम नहीं थी। सब कुछ अचानक हुआ :
सत्येन्द्र पीएस
नई दिल्‍ली : प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और वेब मीडिया के धुरंधर खिलाड़ी शशांक शेखर त्रिपाठी नहीं रहे। यह बार बार कहने, सुनने, फोटो देखने पर भी अहसास कर पाना मुश्किल होता है। करीब दस दिन पहले लखनऊ के पत्रकार साथी कुमार सौवीर ने अपनी फेसबुक वाल पर लिखा कि शेखर कौशांबी के यशोदा अस्पताल में भर्ती हैं। यूं तो यशोदा हॉस्पिटल का नाम सुनकर हल्की सिहरन होती है कि जब कोई गंभीर मामला होता है, तभी इस पांच सितारा मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल में जाता है, लेकिन शेखर का मकान कौशांबी में ही है। ऐसे में बात आई-गई हो गई। फिर 5 दिन बाद शेखर के एक साथी प्रभु राजदान ने शाम को घबराई हालत में फोन किया और कहा कि आपको पता है कि शेखर त्रिपाठी हॉस्पिटल में एडमिट हैं?
फिर मैं गंभीर हुआ। प्रभु ने बताया कि इंटेंसिव केयर यूनिट (आईसीयू) में वेंटिलेटर पर हैं। बोल पाने में सक्षम नहीं हैं। उस समय ऑफिस से अस्पताल तो न जा सका, लेकिन दूसरे रोज करीब साढ़े 10 बजे पहुंचा। रिसेप्शन पर पता चला कि आईसीयू में मिलने का वक्त सुबह साढ़े 9 से 10 बजे के बीच होता है। मैंने प्रभु को फिर फोन मिलाया और उन्होंने शेखर के बड़े बेटे शिवम का मोबाइल नंबर दिया। फोन पर बात हुई तो रिसेप्शन पर ही मुलाकात हो गई। शिवम ने बताया कि हॉस्पिटल में मिलने का वक्त निर्धारित है और उसके अलावा मिलने नहीं देते हैं। सिर्फ मुझे जाने देते हैं।
बातचीत में ही पता चला कि करीब 10 रोज पहले पेट में हल्का दर्द शुरू हुआ था। 3-4 रोज दर्द चला। उसके बाद शेखर बताने लगे कि कॉन्सटीपेशन हो गया है। टॉयलेट साफ नहीं हो रही है। करीब 2 रोज यह प्रक्रिया चली। फिर अचानक एक रोज बाथरूम में बेहोश हो गए और उन्हें यशोदा हॉस्पिटल लाया गया।
पेट की ढेर सारी जांच हुई। डॉक्टरों ने बताया कि इंटेस्टाइन यानी आंत में क्लॉटिंग है। उस समय शेखर का शुगर लेवल भी ज्यादा था। लेकिन डॉक्टरों ने ऑपरेशन करने का फैसला किया। ऑपरेशन थियेटर में जाते जाते शेखर मुस्कराते हुए गए। वरिष्ठ पत्रकार और चंडीगढ़ से प्रकाशित हिंदी ट्रिब्यून के संपादक डॉ उपेंद्र बताते हैं कि कहकर गए थे कि 10 मिनट का ऑपरेशन होता है, सब ठीक हो जाएगा। सबको आश्वस्त करके ऑपरेशन थिएटर में गए थे।
डॉक्टरों के मुताबिक क्लॉटिंग की वजह से गैंगरीन हो गया था। आंत पूरी काली पड़ गई थी। इन्फेक्शन वाला पूरा हिस्सा चिकित्सकों ने निकाल दिया। लेकिन उसके बाद शुगर का स्तर बढ़ने, पेशाब होने, सांस में तकलीफ के कारण उन्हें आईसीयू में रखा गया। चिकित्सकों का कहना है कि इन्फेक्शन होने की वजह से शुगर कंट्रोल नहीं हो रहा था और दवा का डोज बढ़ाकर किसी तरह शुगर कंट्रोल किया जा रहा था और इन्फेक्शन खत्म करने की कवायद की जा रही थी। इस तरह से यह कवायद एक सप्ताह चली और आखिरकार 24 दिसंबर 2017 को दोपहर करीब 2 बजे यशोदा अस्पताल के चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
एक रोज पहले देखने गया तो हॉस्पिटल की व्यवस्था ने मुझे आईसीयू में देखने जाने नहीं दिया। शेखर के परिजन हर संभव कवायद कर रहे थे कि वह उठ खड़े हों। उनकी पत्नी रिसेप्शन पर लगी साईं बाबा की मूर्ति के सामने कोई किताब लेकर पाठ कर रही थीं। दोनों बच्चे शनि देवता समेत कई देवताओं के यहां माथा नवा रहे थे। मेरे सामने ही दूध लाया गया, जिसे शेखर के हाथ से छुआकर किसी देवता को चढ़ाया गया।
उनके बड़े बेटे से देर तक बात होती रही। अपने बारे में बताया कि किस तरह से चिकित्सक धमकाते हैं। यह भी कहा कि करीब 5 बार मुझसे और मेरे परिजनों से इलाज के दौरान लिखवाया गया कि आप मर ही जाएंगे और मैं मुस्कुराते हुए लिखता था और मन में यही सोचता था कि किसी भी हाल में मरेंगे तो नहीं ही। आते आते उनके बेटे से मैंने यही कहा कि कुछ नहीं होगा। बहुत आईसीयू देखा है। डॉक्टर सब पागल होते हैं। शेखर जी जल्द ही आईसीयू से बाहर होंगे। मेरी बात सुनकर शिवम मुस्कराया तो राहत महसूस हुई।
दूसरे रोज साढ़े नौ बजे अस्पताल पहुंच गया। शेखर जी का छोटा बेटा आईसीयू में उनके बगल में खड़ा था। एक तरफ मैं खड़ा हो गया। स्तब्ध सा खड़ा था। आईसीयू तो ठीक, लेकिन शेखर बोल-बतिया और पहचान नहीं रहे हैं, यह देखकर बड़ी निराशा हुई। लोगों ने बताया कि ऑपरेशन के बाद से ही यही हालात है। मैं इतना दुखी और निराश था कि वहां रुक नहीं पाया। दोपहर होते होते फेसबुक के माध्यम से ही पहली सूचना मिली कि शेखर का निधन हो गया।
ऐसे भी कोई जाता है भला… हममें से तमाम लोग हैं जिनके पेट में दर्द होता रहता है। अक्सर लोग पेट दर्द की एकाध गोली खा लेते हैं। लेकिन डॉक्टर को शायद की कोई दिखाता है। शेखर चेन स्मोकिंग करते थे। शुगर की प्रॉब्लम थी। लेकिन पेट में पहले से कोई प्रॉब्लम नहीं था। आखिर कैसे कोई यह अहसास कर ले कि बीमारी इस दिशा में ले जाएगी। सब कुछ अचानक हुआ। (क्रमश:)

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