: ऐसे वकील हों, तो वादकारी का हित सर्वोच्च होने का नारा सार्थक : फीस पर पूरी शालीनता से इनकार किया : ऐसा न हो कि कोई डीएम बेटी का जन्मदिन तो धूमधाम के साथ मनाये, पर नवजात बच्ची की कराहें, चीत्कार व मर्मान्तक चीखों पर कान बंद कर ले :
कुमार सौवीर
जौनपुर : यात्रा तो हर शख्स की अपनी-अपनी ही होती है। नितांत निजी यात्रा। आप किसी भी निजी या सार्वजनिक वाहन पर हों, पैदल हों, या फिर सामूहिक मंडली का हिस्सा हों। आप पायेंगे कि उसकी यात्रा सामूहिकता होने के बावजूद उसमें शामिल शख्स उस यात्रा में भी अपना-अपना हिस्सा अलग तरीके से खोजता, बुनता और उस पर अपनी राह बनाता है। लेकिन प्रत्येक यात्रा में कोई न कोई ऐसा मिल ही जाता है, जो उस यात्रा के एक खास मुकाम तक पहुंचाने की कोशिश करता है, उसके लिए सहायता करता है, उसकी दिशा निर्धारित करता है, उसके लिए सामान मुहैया कराता है। इसलिए कि उसके लिए उसने कोई मूल्य ही वसूला होता है, बल्कि कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो दूसरों की यात्रा को अपने योगदान से कमोबेश पूरा करने की कोशिश करते हैं।
ऐसे ही शख्स का नाम है जय प्रकाश। ऐसे वक्त पर जब मैं एक नवजात बच्ची की मौत की घाट उतारने पर आमादा रहे अस्पताल के दलाल, डॉक्टर, पुलिसवाले, और प्रशासन में कुण्डली मारे बैठे अफसरों की करतूतों पर लगातार रिपोर्ट लिखने में व्यस्त था, पूरा का पूरा प्रशासन और पुलिस के बड़े-बड़े अफसर भी इस मामले पर खामोश बैठ कर इस मामले को बला समझे हुए उसको टाल देने पर आमादा था। नहीं चाहते थे कि इस मामले को कोई तूल दे। और फिर प्रशासन और पुलिस ही क्यों, जौनपुर में भी एक भी व्यक्ति नहीं मिल पा रहा था, जो इस मामले पर तनिक भी आवाज उठाने का साहस दिखा पाये। चाहे वह विधायक या सांसद और मंत्री हो, पत्रकार हो, सामाजिक संगठन हो या फिर कोई दीगर व्यक्ति। सब के सब कान पर तेल डाले बैठे थे।
हमने तय किया कि चाहे कुछ भी हो जाए, कलीचाबाद में निर्ममता के साथ गहरे खाई में फेंकी गयी नवजात बच्ची के माध्यम से अभियान छेडूंगा जरूर। मकसद यह कि इसके बाद किसी भी व्यक्ति को ऐसा कोई भी साहस न हो पाये कि वह अपनी नवजात बच्ची को उसकी मां से छीन कर उसे मौत की घाट उतारने की साजिश करे। किसी में भी इतना हिम्मत न हो सके कि वह जिला अस्पताल में उस बच्ची को डॉक्टर के बजाय उसे खिलौने की तरह जहां-तहां अपनी वाह-वाही के लिए जहां-तहां नुमाइशा करते घूमे। किसी डॉक्टर की हिम्मत न हो पाये कि वह मरणासन्न बच्ची का मेमो तक पुलिस तक भेजने की अनिवार्य परम्परा को तोड़ सके। किसी पुलिस चौकी के दारोगा की हिम्मत न हो कि बमुश्किलन पचास कदम दूर अस्पताल पहुंचने की जहमत तक न उठाये और इसी का लाभ उठा कर दलाल लोग उस बच्ची की बोटी-बोटी तक को प्रदर्शन का वस्तु बना सकें। ऐसा न हो सके कि बेशर्मी पर आमादा किसी थाना-कोतवाली की पुलिस के अफसर ऐसी दर्दनाक और हौलनाक घटनाओं का इग्नोर कर उसकी रिपोर्ट तक दर्ज न करने से कतरायें। किसी एएसपी या एसपी की हिम्मत न हो कि वह पुलिसवालों की ऐसी हरकतों पर फ्लश कर सके और ऐसे मामलों को नजरअंदाज करता रहे। ऐसा न हो कि जिला का मुखिया होने के बावजूद कोई जिलाधिकारी अपनी बेटी का जन्मदिन तो धूमधाम के साथ मनाये, लेकिन एक मासूम पीडि़त बच्ची की कराहें, चीत्कार और उसकी मर्मान्तक चीखें सुनने के बजाय अपना कान ही बंद कर ले।
इसीलिए दोलत्ती डॉट कॉम ने पहले तो पूरा प्रयास किया कि इस घटना पर प्रशासन और पुलिस स्वत: संज्ञान ले ले। लेकिन जब सारी अफसर लोग अपने कान पर तेल डाले बैठे रहे, तो दोलत्ती डॉट कॉम की ओर से मैंने लखनऊ से जौनपुर जाकर पुलिस थाने में इस घटना की रिपोर्ट दर्ज करने की कोशिश की। मेरा मकसद था कि हम उस समाज को सजग करें कि किसी भी नवजात की बच्ची को प्रशासन और पुलिसवाले चुपचाप हजम न कें, पुलिस अपना काम करे और ऐसे दर्दनाक व अमानुषिक अपराधों पर तत्काल अंकुश चलाए। कम से कम इतना तो पता चले कि जो बच्ची नहर की खाई में फेंक कर रामघाट श्मशान घाट पर गोमतीनदी में प्रवाहित कर दी, वे लोग कौन थे। किसकी बच्ची थी, कौन उसे फेंकने गया, किसने अस्पताल और थाने तक में उस घटना पर लगातार धूल-राख फेंकी, किसने उस बच्ची की लाश को किस आधार पर नदी में प्रवाहित किया। क्यों प्रशासन चुपचाप खामोश है। लेकिन थाने ने मेरी गुहार पर कोई भी ध्यान नहीं दिया। इस पर मैं फिर जौनपुर गया और फिर पुलिस अधीक्षक को इस बारे में पत्र भेजा। लेकिन उसके बावजूद खुद को सबसे बड़ा एनकाउंटर स्पेशलिस्ट कहलाने वाले पुलिस कप्तान की कान पर जूं नहीं रेंगी।
अंतत: मैंने अदालत की शरण में जाने का फैसला किया। इसके लिए मैंने जौनपुर के एक वकील का सहारा लिया, जिनका नाम है जय प्रकाश। कछगांव के रहने वाले जय प्रकाश जौनपुर दीवानी बार एसोसियेशन के महासचिव रह चुके हैं। शालीनता और सरलता की प्रतिमूर्ति जय प्रकाश भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी भी रह चुके हैं। मैंने यह पूरा मामला जय प्रकाश जी के सामने रख दिया। जय प्रकाश ने इस प्रकरण पर अपनी सहयोगी अधिवक्ता मंजू शास्त्री आदि से भी बातचीत की। इसी बीच राजपति गिरी नामक एक अधिवक्ता ने बताया कि उस घटना के दिन अस्पताल से लेकर रामघाट तक के कुछ हिस्सों को देखा था।
अंतत: इस मसले पर कागज तैयार कर मुख्य न्यायिक मैजिस्ट्रेट की अदालत में यह मामला पेश कर दिया। अदालत ने मामले पर अपनी राय देने के लिए लाइन पुलिस कोतवाली को आदेश दिया और कहा कि 24 दिसम्बर को वे मालले की जांच की आख्या अदालत तक पहुंचा दें। लेकिन 24 दिसम्बर के बजाय पुलिस ने अपनी रिपोर्ट छह जनवरी को पेश की। जिसके आधार पर अदालत ने पाया कि यह गम्भीर प्रवृत्ति की है जिस पर सन-15 में हाईकोर्ट ने एक मामले पर एक दिशा-निर्देश तक जारी किये हैं। अदालत ने कहा कि इस प्रकरण पर पुलिस उसी निर्देशों के आधार पर अपनी जांच रिपोर्ट 27 जनवरी को प्रस्तुत करे।
बहरहाल इस पूरी कवायद के बाद मैंने जब जय प्रकाश अधिवक्ता से उनकी फीस देने की पेशकश की, तो पूरी शालीनता के साथ जय प्रकाश ने इस मामले पर एक भी धेला लेने से इनकार कर दिया। हां, चाय अलग पिलायी।
जीवन इसी तरह होता है। जीवन की यात्राएं अलग-अलग होती हैं। लेकिन कई मामलों में एक यात्रा के मकसद में कोई न कोई दूसरे यात्री जरूर मिल जाता है, जो उस पूरे विशद यात्रा के संस्मरणों को सहयोग और उसको संपुष्ट कर देता है।
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