: जौनपुर में नवजात बच्ची की हत्या, छोटे से आला अफसर तक हमाम में नंगे : तुम्हारी बेटी पर इतने घाव, क्या करोगे अब : दलाल व डॉक्टरों का दावा, जवाब-सवाल, दारोगा व एएसपी की करतूत, एसपी-डीम का लोक-विरोधी और बर्बर व्यवहार यानी भाजपा का सत्यानाशी एटीट्यूट :
कुमार सौवीर
लखनऊ : जन्म के दो-एक घंटों के भीतर ही उस नवजात बेटी ने कितना दर्द भोगा था, उसको अपने सीने में अगर आप महसूस करना चाहें, तो इस बच्ची हत्याकाण्ड को देखिये। क्या अस्पताल, डॉक्टर, क्या पुलिस, क्या एसपी और क्या डीएम, सब के सब सरे चौराहे पर बिलकुल नंग-धड़ंग दिखायी पड़ेंगे। यह सब के सब इस हत्याकांड में अपना नफा-नुकसान की फिराक में थे, जबकि वह बच्ची लगातार तड़पती रही। मौत का खेल जब बेमजा हो गया, तो माहिर मदारियों और जमूरों ने लाश में तब्दील हो चुकी उस बच्ची को रामघाट श्मशानघाट पर सबके सामने गोमती नदी की जल-धारा में प्रवाहित कर दिया। कानून के रखवाली के लिए तैनात हजारों कर्मचारियों और उनके कप्तान और जिलाधिकारी जैसे अफसरों ने इस दर्दनाक वाकया को जन्म-मृत्यु रजिस्टर तक पर दर्ज नहीं किया। पुलिस की बेशर्मी देखिये कि वह यह तो मानती है कि इस बच्ची को मौत के हवाले के लिए फेंका गया और बाद में उसे नदी में डाल दिया गया, लेकिन इस भयावह हत्याकांड पर एक भी रिपोर्ट पुलिस ने अपने कागजात पर ढाई महीना बीत जाने के बावजूद दर्ज नहीं किया।
यह किस्सा है जौनपुर का, जहां के लोग खुद को महान ऐतिहासिक शर्की-साम्राज्य का निवासी मानते हैं, ऋषि जमदग्नि की जन्मभूमि मानते हैं, बौद्ध धर्म के बज्रयान के प्रमुख मठ के अवशेष बजरा का टीला की छांव का नागरिक मानते हैं। मानते हैं कि वे लोग महान जिले के निवासी हैं, जिसके लोग बम्बई, कलकत्ता, दिल्ली, कर्णाटक, हैदराबाद और पटियाला समेत पूरे देश में फैले हैं, लेकिन अपने गिरहबान में यह तक झांकने की कोशिश नहीं करते कि उनके घर में महिलाओं की हालत कितनी शर्मनाक होती जा रही है। इतना ही नहीं, सिंगरामऊ में तीन नाबालिग बच्चियों द्वारा एक ट्रेन के सामने कूद कर आत्महत्या कर लेना, बदलापुर में 14 वर्ष की एक बच्ची से दवा व्यवसायी के तीन मित्रों द्वारा बलात्कार कर उसे जिन्दा फूंक देना, खुटहन में एक नवजात बच्ची को सड़क पर कुत्तों के हवाले कर देना, केराकत में कन्या-भ्रूण फेंक दिया जाना और शाहगंज में एक युवती का पागल की तरह शहर में बदहवास घूमना जौनपुर के चेहरे पर एक जोरदार थप्पड़ है। और अब तो कलीचाबाद में एक नवजात बच्ची को भी जिस तरह सरकारी अफसरों, पुलिस वालों, डॉक्टरों और अस्पताल में दलाली करने वालों ने मौत के घाट उतार दिया, वह तो शर्मनाक तो है ही, लेकिन उससे भी ज्यादा खतरनाक और शर्मनाक करतूत की है जिले के पुलिस अधीक्षक, जिसने इस मामले की रिपोर्ट तक लिखने की जरूरत नहीं समझी। बेहयाई तो देखिये कि जिले का डीएम इस मामले में बिलकुल घुग्घू बना ही बैठा रहा है।
आइये, हम सामने पेश करते हैं यह पूरा घटना-क्रम, बच्ची को अस्पताल में अपने हाथ में ले जाने वाले एक युवक और उसके साथियों वाली घटना, उसका तर्क व वितर्क, अस्पताल के डॉक्टरों से बाचतीत, उनसे जवाब और सवाल, पुलिस चौकी की करतूत, सीओ या एएसपी की करतूत, एसपी और डीम का लोक-विरोधी और बर्बर एटीट्यूट, वगैरह-वगैरह। घटना पर इन सब जिम्मेदार लोगों के तर्क और उसका प्रति-प्रश्न दोलत्ती डॉट कॉम के पास है।
घटना:- छह नवम्बर-21 की सुबह करीब साढ़े आठ बजे के करीब बाइक पर सवार लोगों ने एक स्कूली बैग को कलीचाबाद पुल से नीचे फेंक दिया था। स्थानीय लोगों ने उसे देखा, बैग को खोला, और पाया कि उस बैग में कपड़े में लपेटी हुई एक नवजात बच्ची है। उस बच्ची का इलाज के लिए लोग जिला अस्पताल ले गये।
सवाल कि कहां है नवजात की मां
जब प्रत्येक आशा कार्यकर्ता का जिम्मा होता है कि प्रत्येक गांव, मोहल्ला में गर्भवती महिला को खोजे, उनका टीकाकरण करे, दवा कराये, अस्पताल ले जाए और बच्चा पैदा होने के बाद शिशु को चिकित्सा मदद भी करता रहे। लेकिन अब न प्रसूता महिला को खोजा गया, और न ही जिम्मेदार आशा का पता है। आखिर पता भी चलता तो कैसे ? सरकारी अफसर ही नहीं चाहते ऐसा करना।
जिला अस्पताल में विक्की अग्रहरी
बच्ची को लाये लोगों से महिला अस्पताल परिसर में मौजूद एक युवक विक्की अग्रहरी ने बच्ची इलाज के लिए ले ली। बाद में विक्की ने दोलत्ती को बताया कि जिला महिला अस्पताल में कोई डॉक्टर मौजूद ही नहीं था। इतना ही नहीं, अस्पताल का कोई दीगर कर्मचारी भी अस्पताल में नहीं बच्ची देखने नहीं आया। विक्की का यह भी दावा था कि उसने भंडारी पुलिस चौकी को इस बच्ची को अस्पताल पहुंचाये जाने की खबर दी थी, लेकिन पुलिस आयी ही नहीं। विक्की के अनुसार ऐसी हालत में वह बच्ची को लेकर शहर के कई अस्पतालों और डॉक्टरों के यहां भी गया था। रास्ते में उसने ड्यूटी पर मौजूद पुलिस के सीओ या एएसपी को रोक कर उस बच्ची के बारे में बात की, तो विक्की के अनुसार उन लोगों से पुलिस अधिकारी ने बताया कि सरकारी डॉक्टरों के बस की बात नहीं है। विक्की के मुताबिक उस पुलिस अधिकारी ने कहा कि बेहतर हो कि बच्ची को किसी निजी डॉक्टर को दिखा दिया जाए, मगर उसका खर्चा कौन देगा, इसका जवाब देने के लिए वह अफसर मौके से अपनी जिप्सी लेकर चला गया। विक्की का दावा है कि एक निजी अस्पताल में जब उस बच्ची को मृत घोषित कर दिया तो वह उस बच्ची को रामघाट श्मशानघाट लेकर गया और वहां गोमती नदी में उसे जल-प्रवाहित कर दिया।
सवाल कि विक्की अग्रहरी की गलत-बयानी
कलीचाबाद से तो वहां मौजूद लोगों ने पुल से नीचे फेंकी गयी बच्ची को इलाज करने के लिए वे लोग जिला महिला अस्पताल गये थे, तो उस नवजात को अपने कब्जे में विक्की अग्रहरी ने कैसे और किस अधिकार में ले लिया। जब विक्की ने भंडारी पुलिस चौकी के प्रभारी को खबर दी थी, तो उनके आने की प्रतीक्षा क्यों नहीं की विक्की ने। अगर महिला अस्पताल में कोई डॉक्टर या जिम्मेदार कर्मचारी नहीं था, तो विक्की ने वह बच्ची को पुलिस के हवाले करने के बजाय स्वयं उसे शहर भर में घुमाने की अनाधिकृत चेष्टा क्यों की। यह जानते हुए कि यह मानव शव है, जो पुलिस तक ही भेजा चाहिए, ऐसी हालत में विक्की ने उस लाश को किस आधार में रामघाट श्मशान घाट ले जाकर उसे जल-प्रवाहित कर दिया। क्यों नहीं उन लोगों को वापस नहीं दिया वह शव जो उसे कलीचाबाद लेकर जिला अस्पताल तक ले गये थे। यह भी अस्पताल, दूसरे अस्पताल और एक अन्य व्यवसायी के घर उस लाश को लेकर उसे दिखाने के साथ ही श्मशानघाट पर उसको जल-प्रवाहित करने तक की कार्रवाई को उसने मीडिया को बुला कर फोटो और वीडियोज बनाने की कवायद क्यों और किस आधार पर पूरी की। विक्की अग्रहरी ने बच्ची को अस्पताल के बाहर ले जाने के बजाय महिला अस्पताल अधीक्षक या जिला अस्पताल के दीगर डॉक्टरों से सम्पर्क करने की कोशिश क्यों नहीं समझी। इतना ही नहीं, लावारिस नवजात बच्चों के लिए एक पालना गृह तक बना हुआ है, जहां कोई भी किसी लावारिस बच्चे को चुपचाप छोड़ सकता है, इसके बावजूद विक्की ने उसे पालना गृह में क्यों नहीं छोड़ा। खुद की वाहवाही के लिए उसने उस बच्ची को अपनी हाथ में क्यों लिया। अस्पताल में कार्यरत कई कर्मचारियों ने दोलत्ती को बताया है कि विक्की कई बार अस्पतालवालों से अभद्रता कर चुका है और उसका मूल काम अस्पताल में उगाही और दलाली करना ही है।
जिला अस्पताल में टायमिंग
आपको बता दें कि महिला अस्पताल में उस बच्ची को लाये जाने का समय सुबह करीब दस से साढ़े दस बजे के आसपास का था, जबकि अस्पताल सुबह आठ बजे खुल जाता है। लेकिन विक्की के मोबाइल से महिला अस्पताल के चीफ फार्मासिस्ट गुलाब यादव ने दोलत्ती डॉट कॉम को बताया कि घटना के दिन सुबह दस या साढ़े दस बजे के करीब ही अस्पताल के गेट पहुंचने वक्त उस बच्ची को देखा था, जो विक्की को लिये घूम रहा था। उस समय गुलाब यादव बाहर से आकर अपनी बाइक गेट के पास ही पार्क करने जा रहा था। यह बताने के बाद कि वह बच्ची कलीचाबाद पुल मिली है, विक्की को गुलाब यादव ने बताया कि गुलाब यादव चूंकि बच्ची पाये वाले घटनास्थल के करीब का ही रहने वाला है, इसलिए उस बच्ची के घरवालों को खोजने की कोशिश करेगा।
झूठ कौन बोला, डॉक्टर या चीफ फार्मासिस्ट ?
लेकिन इसके बावजूद गुलाब यादव ने यह नहीं बताया कि उसने बच्ची को अपने अस्पताल तक पहुंचाने की कोशिश क्यों नहीं की। इतना ही नहीं, वह दस-साढ़े दस बजे तक अपनी ड्यूटी पर क्यों नहीं आया था, यह भी गुलाब नहीं बता पाया। गुलाब ने गेट पर मौजूद होने के बावजूद विक्की के हाथ में मौजूद बच्ची को अस्पताल से बाहर जाने की कोशिश क्यों नहीं की, यह जानते हुए कि यह विक्की हमेशा अस्पताल में ही घूमा करता रहता है।
डॉक्टर का बयान
घटना के समय जिला महिला अस्पताल में तैनात संविदा डॉक्टर दीपक जायसवाल का दावा है कि उन्होंने उस बच्ची को देखा था, लेकिन वह काफी पहले ही लाश में तब्दील रह चुकी थी। उनका कहना है कि ऐसी हालत में यह कहना ही बेमानी है कि अस्पताल में उस बच्ची को देखने के लिए मैं मौजूद नहीं था। लेकिन जब बच्ची मृत थी, तो उसका क्या किया जा सकता था।
डॉक्टर के बयान में लूप-होल्स
महिला अस्पताल के दीपक जायसवाल इस बात का जवाब नहीं दे पा रहे हैं कि जब वह बच्ची लाश थी, तो अस्पताल में प्रभारी चिकित्सक होने के बावजूद उन्होंने संबंधित पुलिस थाना या चौकी में लाश से संबंधित मेमो क्यों नहीं जारी किया। उसका इलाज करने के पहले उसका परचा क्यों नहीं बनाया गया। क्या वजह थी कि लाश को वापस अपने साथ ले जाने की इजाजत विक्की को दे दी गयी।
महिला अस्पताल में उस समय प्रभारी सीएमओ थे संदीप सिंह। डॉ संदीप मानते हैं कि अस्पताल में किसी भी लाश के आने पर उसकी सूचना पुलिस को भेजने की अनिवार्यता होती है और इसके लिए अस्पताल में बाकायदा एक रजिस्टर भी मौजूद है। इतना ही नहीं, लावारिस नवजात बच्चों के लिए एक पालना गृह तक बना हुआ है, जहां कोई भी किसी लावारिस बच्चे को चुपचाप छोड़ सकता है।
इस लोमहर्षक घटना की दूसरी कड़ी में हम चौकी प्रभारी दारोगा, सीओ या एएसपी की डरावनी लापरवाही, एसपी और डीएम की निरंकुशता और इस घटना के प्रति उनकी अमानवीय करतूत का खुलासा करेंगे। (क्रमश:)
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