रेशमा ने बुर्का उतारा। बोली इससे भी आजादी चाहिये

बिटिया खबर

: दिल्लीवाले तो दल्ले हैं, तो क्या यहां वाले हरिश्चंद्र की औलाद हैं ? : अपनी क्या छवि बना ली हम मीडियावालों ने :

वीरेंद्र सेंगर

नई दिल्ली : किस्सा एक सीमावर्ती जिले का है। उस दिन रविवार था।कड़ाके की ठंड थी।ऊपर बर्फ भी पड़ी थी करीब सौ महिलाएं हाथों मेंं तिरंगा झंडा लिए धरने पर थीं। हाथों मेंं नारे वाली तख्तियां थीं । नागरिकता का नया कानून वापस लेने की मांग थी। बाबा साहब की एक बड़ी तस्वीर थी भगत सिंह और आजाद चंद्र शेखर के पोस्टर थे। आजादी आजादी के नारे लग रहे थे। मुस्लिम महिलाएं मुश्किल से दर्जन भर रही होंगी। बताया गया यहां तो मुस्लिम आबादी ही बहुत कम है। एक करीब तीस साल की महिला हैं रेशमा। उसने अपना बुर्का उतार कर पास मेंं रखा था। जब इस बाबत पूछा तो जवाब मिला अंकल इससे भी आजादी लेंगे।पहले काले कानून से आजादी चाहिए। रेशमा दसवी पास है।मियां जी दसवीं फेल हैं। बिजली मैकेनिक हैँ। करीब दस हजार रु महीने के कमा लेते हैं। रेशमा आंगनबाड़ी मेंं काम करती हैं । तीन हजार मिल जाते हैं।कहती हम लोग गरीबी से आजादी चाहते हैं तो आजादी का नारा क्यों न लगांए। एक सवाल किया , सर आप पत्रकार हैं? फिर एक सवाल , आप तो फोटोग्राफी नहीं कर रहे? मैं आगे बढ़ गया।रेशमा धीरे धीरे बात मेरे बारे में कर रही थी। फिर भी मुझे सुनाई पड़ रहा था।वो समझा रही थी अंकल पत्रकार दिल्ली वाले हैं।क्या पता ये भी सरकार के दलाल हों? सुना है दिल्ली वाले सारे पत्रकार बिक गये हैं। एक दूसरी ने कहा यहां वाले कौन हरिश्चंद्र की औलाद हैं। अमर उजाला वाले ने कहां छापा। तीसरा स्वर था वो बेचारा क्या करे इनके मालिक ही बिक गये हैं। सबने एक बड़े अफसर की सराहना की।वो इनकी मदद करता है। मैं उस अफसर से मिला।वे बोले आपने इस आंदोलन के बारे में लिखा तो मेरी नौकरी चली जाएगी। क्योंकि छात्र जीवन मेंं एक्टविस्ट रहा हूं। शक के घेरे मेंं पहले से हूं। आप तो जिले का नाम तक नहीं लिखना वर्ना भक्त पत्रकार मुख्यमंत्री के कान और भर देंगे। मैं अपना वायदा निभा रहा हूं।

रेशमा का दिया दलाली वाला तंज यादगार रहेगा। हम मीडिया वालों ने अपनी क्या छवि बना ली है। रेशमा के जज्बे को सैल्यूट ।

वीरेंद्र सेंगर दिल्‍ली मेंं वरिष्‍ठ पत्रकार हैं।  

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