: सवाल यह है कि अगर सवर्ण को दिक्कत है तो उसका समाधान नोटा कैसे कर सकता है। नोटा अपने आम में कोई दल तो है नहीं जो विकल्प देकर सरकार बना दे :
दोलत्ती रिपोर्टर
लखनऊ : मेरे कई मित्र अभी कुछ ही महीनों तक भाजपा के विरोध में कोई बात ही सुनना नहीं चाहते थे। लेकिन आजकल उनके तेवर बदले दिख रहे हैं। उनका विरोध है कि एससी-एसटी एक्ट के चलते वे एकदम से लुट-पिट गये हैं। सोशल साइट्स पर उनकी पोस्ट मोदी के बजाय अमित शाह की फोटो के साथ हंगामा कर रही हैं, जिसमें वे कहते हैं कि न जज, न वकील, न सबूत न बहस लेकिन सीधे जेल का रास्ता। वे सवाल उठाते हुए पूछते हैं कि ऐसे में वे अगले चुनाव में ईवीएम पर भाजपा का बटन दबायेंगे या फिर नोटा का।
मुझे तो ऐसी पोस्ट डालने वाले हताश नहीं, बल्कि एक नये रास्ते खोज कर आम सवर्णों को भाजपा तक पहुंचाने की अपील कर रहे हैं। सवाल यह है कि अगर सवर्ण को दिक्कत है तो उसका समाधान नोटा कैसे कर सकता है। नोटा अपने आम में कोई दल तो है नहीं जो विकल्प देकर सरकार बना दे। यह विकल्प तो कोई दल ही दे सकता है। हां, नोटा का इस्तेमाल करके मतदाताओं को भ्रमित जरूर किया जा सकता है। और मतदाताओं के इस दिग्भ्रम का लाभ केवल भाजपा को ही मिलेगा।
है न हताश मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में ठिकाने लगाने की साजिश ?