हनुमान पर जातीय शिगूफों से दलित वोट का रूख बदलना नामुकिन

बिटिया खबर
: पत्रकार परवेज का आंकलन दीगर है, मगर मेरा नजरिया अलहदा है : चाहे कुछ भी हो जाए, मगर दलित वोटों की बारिश भाजपा की जमीन पर नहीं पड़ेगी : जब वोट का मामला होगा तो उनकी मोहर का सकारात्‍मक-निशाना केवल बसपा, अम्‍बेदकर और मायावती ही होंगी :

कुमार सौवीर
लखनऊ : राजधानी के युवा और गम्‍भीर पत्रकार परवेज अहमद का मानना है कि हनुमान पर जातीय-दंगल का खासा फायदा भाजपा को मिलेगा। उनके विश्‍लेषण के मुताबिक भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि करीब 30 फीसदी दलित हिन्‍दुत्‍व लहर में आ चुका है। इसके कई पहलुओं पर परवेज ने काफी मेहनत की है। उन्‍होंने पाया है कि हनुमान की जाति पर जो हंगामा मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने छेड़ा था, उसके बाद लखनऊ-कानपुर रोड पर बने लंगड़े की चौकी वाले हनुमान मंदिर के अलावा मुजफ्फरनगर में भीम आर्मी नामक दलित सेना के लोगों ने वहां के कई मंदिरों पर अपना हक जताया है। इतना ही नहीं, पूर्वांचल के सर्वाधिक मान्‍यता वाला बिजेथुआ धाम पर कब्‍जा करने की कोशिश के तहत वहां भी दलितों ने अपने झंडे-बैनर लगा दिये हैं। उनका कहना है कि बुंदेलखंड में दो दशकों से जय भीम का नारा लगा रहे वहां के दलितों ने अब योगी के शिगूफे के बाद से वहां के हनुमान मंदिरों पर कब्‍जाने की कवायद छेड़ दी है।
मगर मैं ऐसा नहीं मानता। मेरा मानना है कि दलित कभी भी बसपा का पल्‍लू नहीं छोड़ेगा। चाहे कुछ भी हो जाए, मगर दलित वोटों की बारिश भाजपा की जमीन पर नहीं पड़ेगी। यह तो हो सकता है कि दलित वोटों के गिरोहबाज लोग हनुमान-मंदिरों पर अपना हक जताने का युद्ध छेड़ दें, मगर जब वोट का मामला होगा तो उनकी मोहर का सकारात्‍मक-निशाना केवल बसपा, अम्‍बेदकर और मायावती ही होंगी।
हां, इतना जरूर है कि हनुमान के ताजा झंझट पर भाजपा नेताओं के रूख से भाजपा के सवर्ण वोटों का भाजपा से मोहभंग ही होगा। वैसे भी इसके पहले अनुसूचित जाति एवं जन जाति एक्‍ट को लेकर भाजपा की कवायदों से भाजपा का सवर्ण मतदाता खासा खफा चल रहा था। तीन राज्‍यों में हुए ताजा चुनावों में जो करारी हार भाजपा के चेहरे पर रसीद की है सवर्ण वोटों ने, वह अपने आप में एक साफ संकेत नहीं, बल्कि उसका असली फैसला ही है। और अब हनुमान को लेकर छिड़े भाजपाई नेताओं के नये विवाद और शिगूफों से सवर्ण ने भाजपा की पुंगी बजाने का फैसला कर लिया है।
नतीजा ? अब आप भी तो कुछ स्‍वयं आंक लीजिए, और फिर फैसला कीजिए न।
सच बात तो यही है कि अब इस विवाद के बाद से मंदिरों पर दलितों पर दावे तो मजबूत हो जाएंगे, लेकिन भाजपा की राणनीति मंदिर में बज रहे घंटे की आवाज सुनने तक ही सीमित रहेगी। हनुमान पर आंदोलन अलग होगा औश्र बाबा जी घंटा अलग लटकेगा। बाबा जी का घण्‍टा वाली कहावत तो आप सब ने भी सुनी होगी ही।
सुनी है कि नहीं ?

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