शीतल नाम तो केवल धोखा है, मोदी का “विनाशाय च दुष्‍कृताम”

बिटिया खबर
: कुम्‍भ-स्‍नान में दोनों ही उप-मुख्‍यमंत्रियों की अर्ध-नंगधडंग फोटो ने हंगामा कर डाला : शीतल का अर्थ तो ठण्डा पानी है, पर वे हैं दग्‍ध-ज्‍वाला : सेवा में प्रस्‍तुत ग्‍लास में लबालब पानी को आप पेशाब भी कहेंगे : मोदी-भक्‍तों की चड्ढी में पत्रकारिता घुसेड़ने वाले शीतल का धंधा मुर्गीबाड़े से अण्‍डा निकालने है :

कुमार सौवीर
लखनऊ : इसके नाम पर मत जाइयेगा। नाम में क्‍या रखा है। नाम के हिसाब से तो किसी अतिथि को आदर-पूर्वक प्रस्तुत किया जा रहा जल का कत्तई सेवन नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि वह पेशाब भी हो सकता है। यानी पेश किया जा रहा है आब। आब का अर्थ पानी-जल, तथा पेश का अर्थ है प्रस्तुत किया गया।
लेकिन शीतल पी सिंह की बात अलग है। नाम के हिसाब से तो शीतल का अर्थ तो ठण्डा पानी होता है, लेकिन वे मूलत: दग्‍ध करती ज्‍वाला से कम नहीं हैं। लेकिन उनका यह भाव अपने विरोधियों को लेकर ही होता है। सामान्‍य तौर पर वे भले ही चिरकुटई करते रहते हों, लेकिन राजनीतिक विरोधियों पर वे ड्रैकला से कम नहीं होते हैं। ड्रैकुला यानी रक्‍त-पान करने के बाद अपने दुश्‍मन को नख से लेकर शिख तक दो-चार कौर बना कर उदरस्‍थ करने देने वाला नर-पिशाच। लेकिन शीतल पी सिंह पिशाच नहीं हैं, मगर अगर उनके बारे में आप नरेंद्र मोदी, अमित शाह, अरूण जेटली, राजनाथ सिंह, योगी आदित्‍यनाथ, अथवा गटकरी-फिटकरी जैसे लोगों के ढेला टाइप लोगों से पूछतांछ करेंगे, तो वे अपना चेहरा घृणा से बिचका कर शीतल पी सिंह को उनके अगले हिस्‍से यानी शीतल नाम से ही पुकारेंगे, और जितनी भी गालियां दे सकते होंगे, समर्पियामि हो जाएंगे। इस संकल्‍प के साथ कि शीतल की शव-दाह क्रिया में समिधा समर्पित कर स्‍वाहा जरूर बोला जाएगा।
दिल्‍ली में रह कर हर एक की चड्ढी में पत्रकारिता घुसेड़ने की अपनी अदम्‍य इच्‍छा के साथ ही शीतल का समाकेत धंधागत क्रिया-कर्म सुल्‍तानपुर के सूरापुर में मुर्गी के बाड़े से अण्‍डा निकालने का भी है। लेकिन कोरा कागज को काला-काला करने में शीतल पिछले 33 बरस से जुटे हैं। सन-91 में शीतल ने अपनी आखिरी नौकरी इंडिया टुडे में रिपोर्टर के तौर पर शुरू की थी, लेकिन चंद हफ्तों में ही शीतल की ससम्‍मान विदाई का समारोह प्रभु चावला ने शीतल के पीटीओ यानी प्‍लीज टर्न ओवर, अथवा पृष्‍ठांग पलटिये के हिसाब से किया। उसके बाद से ही शीतल ने तय किया अब पत्रकारिता नहीं, सिर्फ नोट ही कमाया जाएगा। इधर संकल्‍प लिया गया, उधर संकल्‍प पूरा होने लगा। झकाझक। झरझरउव्‍वा नोट छपने लगे रिजर्व बैंक में। आर्डर पर आर्डर आने लगे आरबीआई के पास कि शीतल पी सिंह के पास कन्‍साइन्‍मेंट टाइम से हर कीमत से पहुंचा दिया जाए।
खैर, यह तो हंसी-मजाक की बात है। सच बात यह है कि दिल्‍ली में ईंधन वाले वाहनों को सीएनजी मशीन से बदलने की कोशिश पहले-पहल शीतल ने ही की। कोशिश रंग लायी, तो शीतल अपनी शर्ट और पैंट की जेब ही नहीं, बल्कि अपने पर्स, डिग्‍गी, फ्लैट, दक्षिण दिल्‍ली, एनसीआर, यूपी, भारत, लंदन, मॉस्‍को से लेकर इथियोपिया और सोमालिया तक के लोगों को भी झट-पट अमीर बनाने का अभियान छेड़ दिया।

आप पाल्‍टी के सांसद संजय सिंह और कांशीराम-प्रदत्‍त कन्‍टाप-प्राप्‍त पत्रकार आशुतोष को लाल चड्ढी में मास्‍को की सड़क पर परेड करा दिया। मार्क्‍सवादी वामपंथी समाजवादी एट्टीटयूट था शीतल में, इसलिए। लेकिन हर बार ऐसा हो नहीं पाया है। मार्क्‍सवादी वामपंथी समाजवादी एट्टीटयूट था शीतल में, इसलिए। वरना मेरे लैपटॉप पर अपना अंशदान वाली भिक्षा अब तक पहुंचा न देता यह नराधम, निकृष्‍ट, पातकी-ठाकुर ! आरबीआई वाले गवर्नर रघुराजन ने साफ मना कर दिया कि सारा कागज केवल नोट छापने में ही खपा दिया जाएगा, तो देश-विदेश के स्‍कूलों में नन्‍हें-मुन्‍हे बच्‍चा-लोग ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्‍टार वाली प्रायमरी राइम कैसे पढ़ कर याद करना शुरू करेंगे ?
गोदी के उत्‍सर्जित पटेल ने रघुराजन के फैसले को पलटने की कोशिश तो की, लेकिन यह हो नहीं पाया। खिसियाये उत्‍सर्जित पटेल ने इस पर सारा गुस्‍सा गांधी जी पर खौखियाना शुरू कर दिया। फैसला किया कि गांधीछाप सिफारिशी पत्र का साइज छोटा करो, और गांधी-बुड्ढा का चेहरा अब दाहिने के बजाय बायें ओर मुस्‍कुराते हुए छाप दो। लेकिन चूंकि शीतल पी सिंह कुख्‍यात और दुर्दमनीय गोदी-विरोधी पत्रकार हैं, इसलिए उन्‍होंने ऐसे उल्‍टे-पुल्‍टे नोटों को कुबूल करने से साफ इनकार कर दिया। और लगे मोदी-खोदी-शोदी टाइप लोगों को गाली-फाली देने। लखनऊ हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट आईबी सिंह बताते हैं कि हालात यहां तक पहुंची कि अगर संडास में सुबह को शीतल का पेट साफ नहीं हो रहा होगा शीतल का, तो वे मोदी-मोदी को गरियाते हुए खाली-पीली फ्लश चला देते हैं, कि मोदी-सरकार हर क्षेत्र में असफल है।
बस, फिर क्‍या था। मोदी ने इशारे में टकले अमित शाह को टहोका, गुज्‍जू ने अपनी हूण-टाइप मुस्‍कुराते चेहरे वाले राजनाथ सिंह से कहा, राजनाथ सिंह ने ललछऊं वस्‍त्र-धारी योगी से वाइब्रेटर वाले मोबाइल से बातचीत की। कहा कि खलीलाबाद वाले शरद त्रिपाठी के साथ जुकरबर्ग को भिड़ा दो। यह सुनते ही जोगी ने अपनी संतरा-तहमद को दक्षिण-भारतीय शैली में मोड़-लपेट कर पलटवार किया, और कहा:- हमारे दोनों ही उप-मुख्‍यमंत्रियों की कुम्‍भ-स्‍नान में अर्ध-नंगधडंग फोटो देखने के बावजूद आप मुझे यह निवेदन कर रहे हैं। देखा नहीं आपने, कि किस तरह गंगा की लहरों में ऊर्द्ध-नग्‍न केशव मौर्या किसी सड़कछाप लौंडे-लफाड़ी छियोराम-छियोराम करते हुए हमारे पढ़ेलिखे डॉ दिनेश शर्मा के साथ लबड़-झबड़ टाइप बत्‍तमीजी कर रहा था। वह तो दिनेश शर्मवा न होता, तो हम केशव मौर्य की रासलीलाओं में अपना मुंह नहीं छिपा पाते। वैसे भी ठाकुर राजनाथ बाबू साहब, तुम सर्जिकल-स्‍ट्राइक तो ठीक कर नहीं पाते हो, और हमसे यूपी वाली सारी उम्‍मीद करते हो। अब ज्‍यादा मत बकाओ हमको, वरना चिहोटी ले लूंगा, तो कल्‍याण सिंह को जयपुर से बुलवा कर लालजी टंडन से मुलाकात पटना में करवा दूंगा। दोनों के पुराने शौक फिर से सुलगवा दिये जाएंगे। फिर मिर्जापुर में खुजली वाले हेमेटोलॉजिस्‍ट से ही बतियाते रहोगे। तुम्‍हें चुनाव नहीं लड़ना है क्‍या लखनऊ से ?
इस पर झुंझलाये साहेब और गुज्‍जू ने पूरा मामला मुलायम सिंह यादव को कह सुनाया। यह भी आश्‍वासन दे डाला कि लोकसभा चुनाव के परिणाम निकल जाने के बाद अक्‍लेस को इटावा में चाय की एक दूकान खुलवा देंगे, और सीबीआई से कह कर होलिका-दहन के लिए ताड़का को रेडीमेड तैयार कर लेंगे।
मुलायम ने बहुत मुलायमित से अपने पुराने दोस्‍त को फोन किया और कहा:- का अमइ सिंह जी। हम आअम आं से अहना ही नहीं चाते। तुमाइ ही माइ जउउत समअते हो। अमाई ए काम कइ दो। जुअरबर्ग से कअ के शीतल का एई ई तई कआ दो। एक मोटा डंडा शीतल में घुसेअ के उसओ गअम कइ दो।
अमर ने जिप खोलनी शुरू की, तो मुलायम सिंह मौके से भाग निकले और भाग कर क्रीत-दास पत्रकारनुमा मुर्गोमाही टाइप दल्‍ला पत्रकारों से सम्‍पर्क किया, बताया कि अगर शीतल का काम लगा दो। नोट-शोट तुम्‍हें यथाशक्ति समर्पियामी कर दिया जाएगा। और अगर ऐसा नहीं करोगे तुम लोग, तो बर्बाद कर दूंगा। मेरे पास बहुत प्रमाण हैं तुम लोगों की धंधाबाजी का।
पत्रकारों ने अपनी-अपनी जांघिया का नाड़ा बांधा और निकल पड़े रीता बहुगुणा जोशी, ब्रजेश पाठक, स्‍वामी प्रसाद मौर्या जैसे पाल्‍टी-मार नेताओं को चांपना शुरू किया, नतीजा यह निकला कि सारी को‍शिश रंग लायी और इन दल्‍ला नेताओं-पत्रकारों ने जुकरबर्ग को पटाना शुरू किया।
नतीजा, 24 घंटों के भीतर ही शीतल पी दास का फेसबुक एकाउंट ब्‍लॉक करा दिया।
तब से ही शीतल पी सिंह बाबा जी का घंटा बने घूम रहे हैं।
सभी को मैसेंजर और वाट्सऐप पर संदेश भेज रहे हैं कि भइया, इज्‍जत की बात है। इसे अपने-अपने फोरम पर टाइट करो। वरना मोदी-फोदी फिर से गोदी में चंप जाएंगे।

होली कब है रे ? कब है होली ?

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