शेषनारायण सिंह की टिप्‍पणी मेरे लिए भारत-रत्‍न से कम नहीं

बिटिया खबर
: इससे क्‍या फर्क पड़ता है कि कई लोग मुझे नापसंद करते हैं, मुझे तो इस बात की तसल्‍ली है कि मैं सच बोलता-लिखता हूं : करीब पंद्रह बरस पहले भी मुझे फक्‍कड़ कबीर कहा गया था : आज भी उन लोगों की तादात बेहिसाब है जो मुझे नंगा अघोरी और अवधूत कहते हैं :

कुमार सौवीर
लखनऊ : राष्‍ट्रीय दैनिक समाचारपत्र के देशबंधु के राजनीतिक संपादक हैं शेषनारायण सिंह। देश के नामचीन पत्रकारों में उनका नाम शुमार है। आप उन्‍हें नियमित रूप से विभिन्‍न न्‍यूज चैनलों पर विभिन्‍न राजनीतिक विषयों पर चर्चा करते हुए देख सकते हैं। बातचीत का लहजा बेहद आत्‍मीय और हल्‍की-फुल्‍की कद-काठी भले ही उनकी हो, लेकिन अपने अंदाज, और विषयों पर उनकी गहराई में वे किसी भी अन्‍य पत्रकार पर 21 ही पड़ते हैं। हालांकि वे सुल्‍तानपुर के मूलत: निवासी हैं, लेकिन दशकों से दिल्‍ली में ही बस चुके हैं।
विगत दिनों शेष नारायण सिंह जी ने मेरे व्‍यक्तित्‍व का “पोस्‍टमार्टम” टाइप विश्‍लेषण कर डाला। शेष जी ने अपनी वाल पर बिना किसी संदर्भ के मुझ पर एक टिप्‍पणी लिखी है। उन्‍होंने लिखा है कि, ” कुमार सौवीर का लिखा हुआ पढ़ते हुए मुझे संत कबीर साहेब की कई रचनाओं की याद क्यों आती है ? शायद इसका कारण यह है कि मैं कुमार सौवीर को पसंद करता हूँ . हालांकि मैं यह भी जानता हूँ कि उनको नापसंद करने वालों की भी कमी नहीं है .”
मेरे लिए शेष नारायण सिंह की यह टिप्‍पणी किसी भारत-रत्‍न से कम नहीं है।
इससे क्‍या फर्क पड़ता है कि कई लोग मुझे नापसंद करते हैं, मुझे तो इस बात की तसल्‍ली है कि मैं सच बोलता-लिखता हूं। इसीलिए तो लोग मुझे नापसंद करते हैं। लेकिन वही लोग मेरे पास आ जाते हैं, जिन्‍हें मेरी तल्‍खी की जरूरत पड़ जाती है। मैं उनके साथ भी खड़ा हो जाता हूं, बशर्ते वे मेरे पैमाने पर खरे उतर जाएं। तब भी मैं उनकी मदद में आगे बढ़ जाता हूं। लेकिन अपनी जिन्‍दगी के उसूलों को तिलांजलि देकर मैं दूसरों के रेवड़ में हांका जा पाना नापसंद करता हूं। आप खुद बताइये न कि मैं क्‍या करूंगा भेंड़-तंत्र वाली भीड़ का अंग बन कर। मैं तो अपनी राह पर हूं, जो सच्‍ची डगर है।
मैंने अपना काम किया है, इसलिए आज भी अधिकांश लोग मुझे प्‍यार करते हैं। बहुत पहले जौनपुर के अप्रतिम शख्सियत रहे रत्‍नेश तिवारी ने मेरे बारे में ऐलान किया था कि जौनपुर में केवल दो ही वीर हैं। एक तो गोमती नदी के दूसरे किनारे किले वाले देव-जिन्‍न केरारबीर, और दूसरे वाले हैं इस पार रहने वाले हिस्‍से के कुमार सौवीर। शिक्षक और सामाजिक नेता, लेखक डॉ ब्रजेश यदुवंशी ने भी तब यही कहा था कि:- जौनपुर का फक्‍कड़ कबीर है कुमार सौवीर। कई लोगों की निगाह में मेरा मूल्‍यांकन अघोरी या नंगा अवधूत की तरह है।
मेरे लिए यही बहुत है। बावजूद इसके कि, बकौल शेषनारायण सिंह भी, मुझे कई लोग पसंद नहीं करते। कुछ की निगाह में मैं बदतमीज भी हूं, नंगई करता हूं। शऊर नहीं रखता है बातचीत के दौरान।
लेकिन जो भी लोग मुझसे असहमत रहते हैं, वे भी कम से कम इतना तो मुझे मानते ही हैं कि कुमार सौवीर बेलौस हैं, बेदाग हैं, छिछोरे नहीं। साफ बात करते हैं, बेईमानी या कोई लुकाछिपी नहीं करते। सीधे भिड़ जाते हैं, लेकिन जायज मसलों पर। दलाली नहीं, भिक्षा मांगते हैं कुमार सौवीर लोगों से। मगर अधिकांश लोग हैं जो भिक्षा देने में भी नाक-मुंह बिचकाते हुए पिछली वाली गली में घुस जाते हैं।

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