: अमर उजाला और हिन्दुस्तान के सम्पादक रहे जुयाल ने लिखी आत्मकथा : रात भर डीजे पर चलते हंगामे का विरोध बहुत भारी पड़ा, बेमन से लिख दी तहरीर पुलिस ने : पीड़ा पिटने की नहीं, शिव-प्रतिमा के नाम पर शराब पीकर हंगामा करती पीढी की हरकत पर दुख :
दिनेश जुआल
देहरादून:-
सैर के वास्ते सड़कों पे निकल आते थे
अब तो आकाश से पथराव का डर होता है
दुष्यंत की इस बात का ध्यान नहीं रहा और रात 12 बजे अपने घर के पास सड़क पर सपत्नीक टहलने लगा। उसके बाद जो हुआ उसके कारण मेरे गुरुओं, बड़ों , परिजनों और मित्रों को जो कष्ट हुआ उनसे अपनी नादानी के लिए क्षमा मांगता हूं।
डीजे बंद करने के लिए एसएसपी साहिबा को कह चुका था। मेरे सामने ही पुलिस ने डीजे उठाया। इतने में आयोजकों की नजर मुझ पर पड़ी, दौड़ कर हमारे पास पहुंचे और हमें भक्ति भावना को ठेस पहुंचाने की सजा देने लगे।रजनी ने दिलेरी और समझदारी से ना सिर्फ खुद को बचाया बल्कि हमारा भी ज्यादा नक्शा बिगड़ने से बचा लिया। एसएसपी के आदेश पर थोड़ी देर में फिर पुलिस अाई और तहरीर लिखाने थाने ले गई। बेमन से लिख भी दी। इसके एक दिन पहले आयोजकों से आग्रह कर आया कि वॉल्यूम कम रखें और रात समय पर बंद कर दें । आवाज कम करने के लिए दो बोरी आटा देने की शर्त भी मान ली थी।उस दिन भी एसएसपी साहिबा की सख्ती के बाद रात11.30 पर शोर बंद हो पाया था। सड़क के किनारे अवैध धंधा करने वाले इन मित्रों की राजनीतिक ताकत का अंदाजा हो गया था। कंट्रोल रूम की जा रही शिकायतों पर बार बार अा रही स्थानीय पुलिस को जिस तरह ये टहला रहे थे उससे जाहिर था। दोनों तरफ मुस्लिम बहुल आबादी पीछे शाखा स्थल , भाजपा मंडल अध्यक्ष की प्रापर्टी, अगल बगल दो दो शिविर लगाने के लिए जगह उपयुक्त थी। कुछ ही दूरी पर तीसरा शिविर भी । जिस शिविर का प्रसाद हमने चखा उससे संघ और भाजपा के नेता पल्ला झाड़ रहे हैं। हां मेरी कुटाई करने वाले की पैरवी जरूर कर रहे है। एक बड़े नेता ने तो मीडिया पर भी असर डालने की कोशिश की। मेरी और इंस्पेक्टर की बातचीत के दौरान भी संघ से जुड़े दो मित्र चौकी के कक्ष में चले आए थे।
कोई गंभीर धारा नहीं । बहुत हलकी तहरीर है फिर भी दो दिन में 6 दल समझौता लिखाने मेरे घर अा चुके। ताज्जुब तो तब हुआ जब कल सुबह खुद हमलावर एक पड़ोसी को लेकर घर पहुंच गया। पहले दिन आया एक युवा दल तो समझौता न लिखने पर देख लेने की भी बात कह गया। मैं तो भाई यूसुफ़ किरमानी की राय मान कर माफ करने की मुद्रा में था लेकिन इन दबावों की वजह से असमंजस में हूं।
दो दिन ऐसे ही घर अा रहे मित्रों और फोन पर कुशलक्षेम पूछने वालों के साथ व्यस्त रहा । आभासी दुनिया में नहीं अा पाया। भाई राजीव थपलियाल, डॉक्टर सुशील उपाध्याय, यूसुफ़ किरमानी जी, हिमांशु भाई, भार्गव चंदोला, पुरोहित सर, वीरेंद्र बर्तवाल, राकेश जुयाल, चंदन बंगारी, पवन नेगी, मोहित डिमरी आदि मित्रों की पोस्ट पढ़ी, राजीव थपलियाल जी की पोस्ट 31 लोगों ने शेयर की उपाध्याय जी की पोस्ट रविन्द्र पटवाल जैसे कुछ मित्रों की वाल पर भी दिख रही है। टिप्पणियां लिखने वाले बड़ी संख्या में हैं। कुछ मेरे बहुत आदरणीय और अज़ीज़ भी हैं। आकू जी और भाई निशीथ जी ने तो पूरी टीम ही मेरे घर भेज दी। दिल की गहराइयों से इस प्यार के लिए धन्यवाद । गैरसैंण आंदोलन समिति, नैनिडाडा समिति, और प्रेस क्लब के सदस्यों का विशेष आभार कि वे मेरे लिए लड़े।
मैंने रात को दो संपादकों और एक समाचार संपादक से निवेदन किया था कि खबर में नाम न दें। एक अखबार ने निवेदन माना उनका धन्यवाद। जिन्होंने नहीं माना उनका भी। उनकी कृपा से मित्रों रिश्तेदारों को भले ही चिंता हुई लेकिन मैं अजीब तरह का हीरो बन गया। अखबार में छपा तो फेसबुक में आना ही था। मेरे पुराने अखबार के साथी ने हमला लिखने की बजाय, दिनेश जुयाल की पिटाई लिखने के साथ ही थोड़ा कल्पना का सहारा लेकर मुझे लातों से भी पिटवा दिया। अच्छा हुआ मैंने रजनी को हुए कष्ट का जिक्र तहरीर में नहीं किया वरना कुछ और भी लिखा हो सकता था। इनका धन्यवाद इसलिए भी उनकी खबर पढ़कर उन लोगों के चेहरे पर मुस्कान अाई होगी जो मुझसे नाराज़ हैं। उत्तरा प्रकरण में अखबार पर टिप्पणी कर बैठा तो थोड़ा उस पाप का प्रायश्चित भी हो गया होगा।
धन्यवाद उस मित्र का भी जिसने प्रसाद दिया लेकिन इतना भी नहीं कूटा कि खड़ा ना हो सकूं। नशे में धुत होने के बाद भी बचाने वाले उन अज्ञात बच्चों का भी धन्यवाद। एसएसपी देहरादून निवेदिता जी ने जो संजीदगी दिखाई उसके लिए आभार। उस दिन के बाद डीजे बंद हैं और हमारा मोहल्ला चैन से सो रहा है।
गंभीर धारा लगा कर हमलावरों को जेल भेज कर और भी संस्कारित अपराधी बनाने में मुझे आनन्द नहीं। चिंता ये है कि भांग दारू पीकर शिव की मूर्ति के सामने अश्लील गानों की धुनों पर भक्ति गाते हुए पिकनिक मनाने वाले ऐसे बिगड़ैल बच्चों को और आक्रामक बनाने वाले ठेकेदारों को कैसे अक्ल आएगी।