चार पैर वाला तो इंसान नहीं बन पाया, जानवर में ही तब्‍दील हो गया दो पैर वाला

मेरा कोना

गजब तर्क गढ़े जा रहे हैं देहरादून प्रदर्शन में घोड़े से अमानवीय रवैये पर

कुमार सौवीर

लखनऊ : गजब तर्क दिए जा रहे हैं देहरादून वाले बेइंतिहा दर्दनाक घोड़े के हादसे को लेकर।

कोई कहता है कि विधायक ने उस घोड़े को नहीं मारा था। कोई कहता है कि विधायक ने घोड़े को लाठी मारी जरूर थी, लेकिन उसकी मौत का कारण लाठी नहीं थी। उस हादसे के कारण दूसरे-दीगर थे। कोई कहता है कि विधायक केवल लाठी ताने थे, इसलिए विधायक को उस हादसे का जिम्‍मेदार नहीं करार दिया जा सकता है।

लेकिन मेरे दोस्‍तों। आप लोगों की यह सारी दलीलें वाकई अनर्थकारी और जमीन से कोसों दूर हैं। आपके तर्क इस हादसे में असल जवाब हैं ही नहीं, बल्कि वह तो एक पुख्‍ता कद्दावर सवाल बन चुके हैं अब। असल सवाल तो यह है कि इस घोड़े की यह हालत कैसे हुई। एक विधायक ने हिंसक प्रदर्शन किया, उसे रोकने के लिए घुड़सवार पुलिस बढ़ी। विधायक ने घोड़े पर लाठी मारी। पुलिस ने आक्रामकता का प्रदर्शन नहीं किया, तो घोड़ा पीछे खिसका। उसका पैर एक जंगले में फंस गया। नतीजा वह गिर पड़ा। उसका पैर बुरी तरह घायल हो गया। नतीजा उसका पैर काटना पड़ा।

अब आप खुद ही तय कर लीजिए कि यह शैतानी और हैवानियत का किस्‍सा है भी या नहीं। अब यह सवाल कहां उठता है कि घोड़ा आज मर गया या जिन्‍दा है।

असल बात तो यह है कि इंसानियत बची या नहीं। घोड़ा तो प्रतीक है, इंसानियत के होने या न होने के बीच उठे सवाल का

जिस खूबी की वजह से इंसान को इंसान कहा-पहचाना-पुकारा जाता है, उसमें सबसे अहम बात है उसका दो पैर होना। जबकि घोड़े में चार पैर हैं, और वह जानवर है। कयोंकि वह इंसान नहीं बन सकता।

लेकिन दो पैर वाला इंसान चार पैर वाले जानवरोें की तरह क्‍यों व्‍यावहार कर रहा है।

बोलो, बोलो

क्‍या गलत कह रहा हूं

बोलो न

 

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