संन्यासी ! तेरी हार में ही तेरी जीत है: हंस कर बोली भारती, और शंकराचार्य धड़ाम

बिटिया खबर

: चाँद से काम का रिश्ता विज्ञान नहीं खोज पाया : पूर्णिमा के चाँद को देखते ही उन मुग्धाओं की जांघ में मीठा मीठा दर्द शुरू हो जाता है जिन पर शुक्र और चंद्र भारी होते हैं : शरद पूर्णिमा के चाँद पर एक अलहदा व्‍याख्‍यान :

चंचल भूजी
लाल का पूरा : वैज्ञानिक तरकीब लगा कर उस पर जा बैठा । वहाँ पानी है या लोगों के कदमो के निशान ? इससे परे एक चाँद और है ,प्रकृति का नायाब तोहफा। कल तक आँगन में बैठी दादी अपने नाती को दूध पिलाते समय चाँद को बुला लेती थी _आरे आव बारे आव ,बचवा के मुहे में घुटूक और सितुही भर दूध गले के नीचे। अब वह चाँद नहीं आता। क्यों कि अब माटी की महक नहीं बची है, कांक्रीट की फर्श है।
दादी का ज़माना बदल गया है। दादी जिंदगी पढ़ कर ,दुनिया देख कर आती थी आज की दादियाँ एक सौ आठ चैनल देख कर चली है। नयी नवेली बहुओं से अपनी चाल ढाल मिलाती हैं। बच्चे को भूख तो लगती है लेकिन अब उसे बोतल दे दिया जाता है निपल से खेलता है और पीता भी है। चाँद अब भी निकलता है लेकिन अब दिखता नहीं ,मुंह ऊपर करिये तो हैलोजिंन लाइट बीच में खड़ी मिलेगी। मुग्धाओं के चमकीले चेहरे अब चाँद की तरह नहीं चमकते ,फेयर एन्ड लवली से पुते हुए मिलते हैं।
क्या क्या चीजे हमने बदल दिए लेकिन प्रकृति के मर्म को आज तक नहीं समझ पाये। आज भी समंदर चाँद को देखते ही उफान पर आ जाता है। दौड़ता है उसे चूमने के लिए। पूर्णिमा के चाँद को देखते ही उन मुग्धाओं की जांघ में मीठा मीठा दर्द शुरू हो जाता है जिन पर शुक्र और चंद्र भारी होते हैं। विज्ञान इसे नहीं खोज पाया है। चाँद का काम से यह रिश्ता क्यों है।
गृहस्थ मंडन मिश्र से जब सन्यासी का वार्तालाप हुआ था और मंडन की पत्नी भारती को निर्णय करना था तो मंडन मिश्र पराजित हो गए थे । तो भारती ने सन्यासी को चुनौती दी थी _ संन्यासी ! हम मंडन की अर्धांगिनी हूँ अब हमसे वार्तालाप करो। और आखिरी सवाल पर संन्यासी ने अपनी पराजय स्वीकार कर ली । सवाल था शुक्ल पक्ष में जब पूर्ण चाँद निकलता है तो काम की इच्‍छा पर कोई प्रभाव पड़ता है कि नहीं ? संन्यासी के पास कोई जवाब नहीं था। संन्यासी ने कहा था _देवी जी ! हम अपनी हार स्वीकार करते हैं। भारती हंसी थी और कहा था _संन्यासी ! तुम्हारी हार में ही तुम्हारी जीत है।
वही चाँद कल आसमान में था, और हम उसके साथ।

(अराजक समाजवाद के लंगोट-खोल प्रवक्‍ता और समर्पित कार्यकर्ता चंचल बीएचयू छात्रसंघ के अध्‍यक्ष रह चुके हैं। )

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