आज के रामराज्‍य में है “प्रधानमंत्री” की दैहिक सत्‍ता

बिटिया खबर

: रामराज्‍य एक अदृश्‍य सत्‍ता वाली शासन व्‍यवस्‍था थी,जिसके प्रशासक भरत थे : रामराज्‍य के दौरान 14 वर्षों तक जनता की प्रशासन पर निर्भरता शून्‍य थी : खुद को सेवक कहनेवाले भरत की जगह राम बनते गये :

कुमुद सिंह
पटना : रामराज्‍य एक नैतिक शासन व्‍यवस्‍था थी जिसमें राजा एक्‍ट नहीं करता था
रामराज्‍य को लेकर बहुत भ्रम है। रामराज्‍य की अवधि महज 14 साल थी। 14 साल के रामराज्‍य के दौरान अवध के सिंहासन पर राम का खरांव था। अयोध्‍या के राज महल से सत्‍ता संचालित नहीं हो रही थी। रामराज्‍य एक अदृश्‍य सत्‍ता वाली शासन व्‍यवस्‍था थी,जिसके प्रशासक भरत थे। जनता में दैहिक सत्‍ता के अयोध्‍या में विलोपित होने का आभास था जो उन्‍हें नैतिक रूप से कर्तव्‍य बोध का ध्‍यान दिलाता था।
हर कोई मानता था कि राजा तो हैं नहीं जो एक्‍ट करेगा, इसलिए जनता ही एक दूसरे को कानून और व्‍यवस्‍था के प्रति सचेत करती थी। हर आदमी अपना अपना दायित्‍व निभा रहा था। एक दूसरे पर नजर रख रहा था। रामराज्‍य के दौरान 14 वर्षों तक जनता की प्रशासन पर निर्भरता शून्‍य थी। जैसे ही राम सिंहासन पर बैठे जनता एक बार फिर प्रशासन पर निर्भर हो गयी। राजा एक्‍ट करने लगा। लोग कर्तव्‍य से अधिक अधिकार की तरफ ध्‍यान देने लगे।
भारतीय संविधान के मूल में भी रामराज्‍य की ही परिकल्‍पना है। आप गौर से देखे तो भारतीय संविधान में भी सरकार को सत्‍ता माना गया है, कोई व्‍यक्ति सर्वोच्‍च नहीं है, राष्‍ट्रपति हो या प्रधानमंत्री सभी को भरत की भूमिका में रखा गया हैं..
गौरतलब है कि भरत ने अवध का प्रशासन संभालते हुए कहा था कि वो राम अर्थात सरकार के सेवक हैं। यही बात नेहरू ने भी कही कि वो प्रथम सेवक हैं। मोदी ने कहा कि वो प्रधान सेवक हैं, लेकिन सरकार के बदले सत्‍ता के केंद्र में नायकवाद के उभरने से रामराज्‍य की परिकल्‍पना गणतांत्रिक भारत के शुरुआती दिनों में ही ध्‍वस्‍त हो गयी। “सरकार” के बदले देश में “प्रधानमंत्री” की दैहिक सत्‍ता कायम हो गयी। खुद को सेवक कहनेवाले भरत की जगह राम बनते गये। सत्‍तासीन नायक एक्‍ट करने लगा। जनता की निर्भरता प्रशासन पर शून्‍य करने के बदले बढती चली गयी। लोग कर्तव्‍य से अधिक अधिकार की तरफ ध्‍यान देने लगे। गणतांत्रिक भारत में रामराज्‍य की कल्‍पना महज संविधान के पन्‍नों में ही सिमट कर रह गयी।
साभार: www.esamaad.com

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