सद्य-स्‍तनपायी कन्‍या हत्‍याकांड: पुलिस से कोर्ट ने मांगी विस्‍तृत रिपोर्ट

बिटिया खबर

: सद्य-स्‍तनपाई बच्‍ची की अमानुषिक हत्‍याकांड पर भी पुलिस-प्रशासन में संवेदनता-पौरुषता लापता : कोर्ट बोली गंभीर प्रवृत्ति का आरोप, प्रार्थनापत्र में धारा 302 और 201 का मामला : प्रियंका बनाम सरकार हाईकोर्ट के फैसले का संदर्भ, 27 जनवरी-22 को मामले पर जवाब देगी पुलिस :

कुमार सौवीर

जौनपुर : यह करीब सवा दो महीना पहले यानी छह नवम्‍बर-21 का हादसा है। मां की कोख से बाहर आयी हमारी एक नवजात बच्‍ची न तो अपनी मां की छाती छू पायी, और न ही अपनी आंख नहीं खोल पायी थी, कि दरिंदों ने उसे मां से छीन कर मौत के घाट उतार दिया था। क्‍या सरकारी अस्‍पताल में शिकंजा बिछाये दलाल, क्‍या डॉक्‍टर और क्‍या पुलिसवाले ही नहीं, बल्कि जिले में फर्जी एनकाउंटर के बल पर अपनी फर्जी धाक जमाये लगाये पुलिस कप्‍तान और वाट्सएप या मोबाइल को रिसीव नहीं करने में मशहूर डीएम भी इस हादसे पर राख फेंकने पर आमादा रहे। इतना ही नहीं, इन अफसरों ने इस हादसे को दबाने की कोशिश जी-भर कर डाली, कि कैसे भी हो, मामले की रिपोर्ट दर्ज न हो पाये। लेकिन इस मामले में अदालत ने आखिरकार पुलिस से जवाब तलब कर ही लिया है। जौनपुर के मुख्‍य न्‍यायिक मैजिस्‍ट्रेट ने इस हादसे को गम्‍भीर प्रवृत्ति की घटना माना है।
आपको बता दें कि घटना की सुबह करीब साढ़े आठ बजे के करीब बाइक पर सवार लोगों ने एक स्‍कूली बैग को कलीचाबाद पुल से नीचे फेंक दिया था। स्‍थानीय लोगों ने उसे देखा, बैग को खोला, और पाया कि उस बैग में कपड़े में लपेटी हुई एक नवजात बच्‍ची है। उस बच्‍ची का इलाज के लिए लोग जिला अस्‍पताल ले गये। लेकिन इसके बाद अस्‍पताल, पुलिस, और प्रशासन के लोगों की करतूतों के बाद इस बच्‍ची को रामघाट श्‍मशानघाट ले जाकर गोमती नदी में जल-प्रवाहित कर दिया। जिला अस्‍पताल से लेकर शहर के कई निजी अस्‍पतालों और डॉक्‍टरों से लेकर उस बच्‍ची को गोमती नदी तक प्रवाहित करने का जिम्‍मा अहियापुर निवासी और जिला अस्‍पताल में मौजूद रहे विक्‍की अग्रहरी ने सम्‍भाला था।
इसके बाद से ही इस घटना के बाद से ही प्रशासन, पुलिस, और सामाजिक कार्यकर्ता का मुखौटा ओढे़ लोग लगातार बेशर्मी पर आमादा होते रहे। एक बच्‍ची पैदा होते ही सरेआम कत्‍ल कर दी गयी, लेकिन पुलिस का आका अपने आप को पुलिस एनकाउंटर स्‍पेश्लिस्‍ट का तमगा लगाये रहा। उस बच्‍ची का नाम न तो जन्‍म रजिस्‍टर पर दर्ज किया गया, और न ही मृत्‍यु रजिस्‍टर पर इंदराज किया गया। प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्री, और न्‍यायपालिका तथा शासन के सख्‍त निर्देशों के बावजूद यह जानते हुए कि कन्‍या-भ्रूण, नवजात कन्‍या-हत्‍या और मानव-हत्‍या की घटना जगजाहिर कर समाज और देश व राष्‍ट्र को जागृत किया जाता, इस मामले को ही हमेशा-हमेशा के लिए दफ्न कर दिया गया। बदहाली की हालत तो यह देखिये कि जिला प्रशासन इस नवजात के नृशंस हत्‍याकांड का खुलासा करने की कवायद करने के बजाय अपनी बेटी का जन्‍मदिन महिला अस्‍पताल में धूमधाम के साथ करा दिया।
आपको बता दें कि दोलत्‍ती डॉट कॉम ने इस नवजात बच्‍ची की दर्दनाक हत्‍याकांड पर रिपोर्ट दर्ज करने के लिए लाइन बाजार पुलिस थाने को अर्जी दी, लेकिन थाना ने अपना कान ही बंद कर दिया। इस पर दोलत्‍ती ने पुलिस अधीक्षक होने के बावजूद खुद को वरिष्‍ठ पुलिस अधीक्षक का दावा करने वाले कप्‍तान को रिपोर्ट दर्ज करने का अनुरोध किया, तो कप्‍तान ने भी मामले को अनसुना कर अपनी ही वर्दी और संविधान व अपराध दंड संहिता को ही बेपर्द कर दिया। इतना ही नहीं, दोलत्‍ती द्वारा उजागर करने वाले इस मामले को दबाने की साजिश के तहत पुलिसवालों ने फर्जी नोटों की एक झूठी कहानी सुनाते हुए एक प्रेस-कांफ्रेंस कर दिया। डीएम ने तो इस मसले पर कोई संज्ञान लेने की कोशिश ही नहीं की। न तो दोलत्‍ती की कोशिश पर नींद टूटी, और न ही स्‍वत: संज्ञान लेने की जहमत समझी डीएम ने।
यह देख कर कि न तो जौनपुर के एसपी में, और न ही जिला प्रशासन में नवजात कन्‍या के हुए इस दर्दनाक और अमानुषिक हत्‍याकांड को लेकर न्‍यायिक सक्रियता और पौरुषता का तनिक भी दमखम नहीं बचा है, दोलत्‍ती ने सीधे अदालत की शरण में जाने का फैसला किया। दोलत्‍ती के अनुरोध पर वामपंथी नेता और जौनपुर दीवानी बार एसोसियेशन के पूर्व महासचिव कॉमरेड जय प्रकाश ने यह मामला खुद अदालत में पेश करने का फैसला किया। इसी बीच राजपति गिरी नामक एक अधिवक्‍ता ने भी इस जिला अस्‍पताल से लेकर रामघाट तक हुए इस घटना के कई टुकड़ों को देखने और सुनने का दावा दोलत्‍ती के सामने किया। जय प्रकाश एडवोकेट ने 15 दिसम्‍बर को कुमार सौवीर की तत्‍सम्‍बन्‍धी सम्‍पूर्ण मामले को मुख्‍य न्‍यायिक दंडाधिकारी की अदालत में पेश कर दिया। अर्जी में घटना क्रम का पूरा ब्‍योरा दिया गया है और बताया गया है कि यह हादसा एक सामान्‍य हत्‍या मात्र का ही नहीं है, बल्कि एक राष्‍ट्र और प्रदेश सरकार तथा पूरे मानव समाज द्वारा सर्वोच्च संरक्षित मानी गयी नवजात बच्‍ची की जघन्‍य हत्‍या का प्रकरण है, जिस पर पुलिस उसे लगातार छिपा रही है। कुमार सौवीर का तर्क था कि इस घटना की जांच अत्‍यावश्‍यक है, इसलिए अदालत द्वारा पुलिस को इस बारे में एफआईआर दर्ज करने का आदेश किया जाना चाहिए।
अदालत ने इस मामले में पुलिस का जवाब तलब करते हुए लाइन बाजार थाना पुलिस को इस मामले की रिपोर्ट 24 दिसम्‍बर को मांगी। पुलिस ने 24 के बजाय यह आख्‍या छह जनवरी को देने की बात कही। छह जनवरी को लाइन बाजार पुलिस थाने की पुलिस ने इस घटना के होने को कुबूल किया। इतना ही नहीं, पुलिस ने यह भी माना कि उस घटना की रिपोर्ट अब तक दर्ज नहीं की गयी है।
मामले की सुनवाई हो जाने के बाद मुख्‍य न्‍यायिक मैजिस्‍ट्रेट ने माना कि प्रार्थी द्वारा लगाये गये आरोप बेहद गम्‍भीर प्रवृत्ति के हैं और इस मामले की जांच कराया जाना आवश्‍यक है। सीजेएम अपने आदेश में कहा कि इस मामले में विशिष्‍ट तथ्‍य और परिस्थितियों को दृष्टिगत करते हुए प्रकरण की प्रारम्भिक जांच माननीय उच्‍च न्‍यायालय द्वारा प्रियंका श्रीवास्‍तव एवं अन्‍य बनाम उत्‍तर प्रदेश वाले अपील के मामले में दिये गये आदेश में जारी किये गये दिशा-निर्देशों के तहत कराया जाना उचित है। अदालत ने लाइन बाजार पुलिस के थानाध्‍यक्ष को आदेश दिया है कि इस मामले में वे अपनी जांच रिपोर्ट 27 जनवरी-22 को सीजेएम की अदालत में प्रस्‍तुत करें।

 

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