: मुल्क में ट्रेन का suffer भी खासा कॉम्प्लीकेटेड होता है : तनाव को तार्किकता और प्यार की चाशनी में रोमांटिक मोड पर खींच सको तो गंगा नहा लिया : हमारी बातें हमें ही सुलझानी होंगी, हम परिवार को बीच में क्यों लायें :
अरविंद मिश्र
बुलंदशहर : भारतीय रेल के स्लीपर में सफर कर रहा हूँ(सफर को suffer भी पढ़ सकते हैं )। नींद का दूर तक नामो-निशान नहीं।बार-बार खुद को किताब में उलझाने की कोशिश कर रहा।इन सबके बीच पास कहीं से किसी लड़की की आवाज आ रही जो शायद अपने मंगेतर से बात कर रही है..’इतना मत डरो बच्ची नही हूँ मैं..रिजर्वेशन करा के जा रही हूँ ,सेफ हूँ।’ लड़का शायद इस बात के पीछे पड़ा कि वो कहाँ और क्यों जा रही है ..और लड़की प्यार से समझा रही कि वो सेल्फ डिपेंडेंट है…जिस काम से जा रही वो हो जाने पे खुद-ब-खुद बता देगी..अभी तो वो लेक्चरर है कल को और बड़ी पोस्ट पे जा सकती तो कभी भी कहीं भी जाना पड़ सकता है।’ लड़का शायद लगातार गुस्से में है और लड़की बड़े प्यार और तार्किक तरीके से समझा रही है। लड़का शायद लड़की की फैमिली में बात करके उसकी शिकायत करने को कह रहा तो लड़की फिर प्यार से समझा रही कि हमारी बातें हमें ही सुलझानी होंगी …हम परिवार को बीच में क्यों लायें? लड़के ने शायद न समझने की कसम खायी है तो लड़की तार्किकता से परे हट बातों को रोमांटिक मोड पे ला रही और शोना बाबू टाइप माहौल बन रहा…..
चूंकि अपन ठहरे सर्टिफाइड शरीफ तो इसी मोड़ पे हम अपने कानों को उस बातचीत से हटा ईयरफोन के सहारे आयुष्मान खुराना के साथ ट्यून कर लेते…..तू नज़्म नज़्म सा मेरी आँखों में ठहर जा.…..
इन सब के बीच सामने किताब खुली है और दिमाग में शौचालय के आंकड़े घूम रहें है…कहाँ-कहाँ बने ? कितने बने? पूरे क्यूं नही बन पाए?कितने और बन जाएंगे?…… ये टार्गेट अचीव हो जाये फिर तो पक्का विपश्यना के लिए जाना पड़ेगा