समाज ऐसा, जहां न निर्भया जैसे हादसे हों और न फांसी

बिटिया खबर

: असल वजह खोजने जैसी चर्चा करने के बजाय हर्ष-उल्लास जैसा त्योहार : हमें खुद से पूछना होगा कि हम मृत्यु पर जश्न कैसे मना सकते हैं :
दोलत्‍ती संवाददाता
लखनऊ : जन्म देना तो ईश्वरीय सत्ता का धर्म है, जबकि वध अथवा हत्या जैसी मृत्यु देना राक्षसी कर्म है। चाहे वह निर्भया के साथ हुआ हादसा हो, या फिर निर्भया के हत्यारों पर फांसी का फैसला।
हम एक सभ्य समाज का अंग हैं। हमें समाज में ऐसी समस्याओं का समाधान खोजने की जरूरत है, जहां न तो ऐसी जघन्य वारदातें हों, और न ही फांसी जैसे क्रूर दंडों की जरूरत ही पड़े।
खैर, अदालती फैसले को लेकर सामाजिक कलंक की असल वजह खोजने जैसी चर्चा करने के बजाय हर्ष-उल्लास जैसा त्योहार मना रहे हैं न्यूज़ चैनल और अखबारवाले।
कहीं पटाखे दगाये जा रहे हैं, कहीं फांसी देने वाले जल्लाद पवन की प्राण-प्रतिष्ठा की जा रही है। समाचार समूहों ने तो पटना में बच्चियों को गदगद और भाव-विभोर होकर मिठाई बांट रही बेटियों का जश्न तक दिखा दिया। सवाल तो हमें खुद से पूछना होगा कि हम किसी मृत्यु पर जश्न कैसे मना सकते हैं?

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