मैं भी चाहूंगा ठीक ऐसी ही प्रशांत मौत

दोलत्ती

: सवाल-जवाब का सिलसिला हमेशा-हमेशा के लिए समाप्त : न कोई रिश्ता, न कोई नाता। न कोई लेना, और न कोई देना :
कुमार सौवीर
लखनऊ : आज शाम चार बजे के आसपास का वक्त रहा होगा। मेरी मुंहबोली आंटी-मां ने अपनी बहू को आवाज दी। बोलीं:- बेटा ! एक चम्मच गंगाजल दे दो।
बहू ने पूजा घर में रखे गंगाजल के पात्र को उठाया और आंटी को थमाते हुए पूछा:- गंगाजल तो आप पूजाघर में ही इस्तेमाल करती हैं। आज अचानक पलंग पर क्यों मांग लिया?
आंटी ने जवाब दिया:- बस यूं ही इच्छा हुई कि पी लूं।
बहू थोड़े अचरज में थी। पहली बार ऐसा हुआ था कि उन्होंने गंगाजल मांग लिया हो। लेकिन उनकी जिज्ञासा को देखे बिना आंटी ने पात्र से एक चम्मच गंगाजल निकाला और अपने मुंह में रख दिया। इसके बाद गंगाजल पात्र और चम्मच बहू को दिया। फिर बहुत आहिस्ता के साथ बिस्तर पर लेट गईं और आंखें बंद कर लीं।
चंद लम्हे तक प्रतीक्षा करने के बाद जब कोई हरकत नहीं देखी तो घबराई बहू ने पूछ लिया:- अम्मा ? क्या कोई दिक्कत है क्या?
आंटी कुछ नहीं बोली। खामोश रहीं। बहू ने उन्हें थपथपाने की कोशिश की, लेकिन तब तक आंटी उस जगह तक चली गई थी, जहां सवाल और जवाब का सिलसिला हमेशा-हमेशा के लिए समाप्त हो जाता है। न कोई रिश्ता, न कोई नाता। न कोई लेना, और न ही कोई देना।
कवि और भावुक हृदय वाली आंटी से मेरा कोई भी रिश्ता नहीं था। सिवाय प्रेम का। मेरे ससुर सुरेश सलिल जी उन्हें बड़े स्नेह के साथ भाभी कहते थे। अंकल की मृत्यु दशकों पहले ही हो चुकी थी। उन्नाव में ही बसे यह पति-पत्नी दोनों ही पवित्र आत्मा। कलुष और कलंक से कोसों दूर। एक अनाथ बच्ची को उन्होंने एक नया जीवन भी दिया। दोनों ही शिक्षक, और जीवन भर शिक्षक धर्म का पालन ही करते रहे। साशा की शादी में वह आईं और अपना प्यार-दुलार उड़ेल कर चली गई।
अब समझ में ही नहीं आ रहा है कि मनोरमा पांडेय आंटी का यह महाप्रयाण हमारे दुख का कारण बनेगा या हर्ष का।
कुछ भी हो, लेकिन इतना जरूर है कि मैंने अपने जीवन में उस महिला से ज्यादा स्नेहिल मां कहीं नहीं देखी। इतनी सक्रियता, कि जीवन भर किसी को कोई कष्ट नहीं दिया। आखिरी सांस तक गंगाजल भी पिया तो अपने ही हाथों से।
कवियित्री और उनकी बेटी वंदना त्रिपाठी ने अभी फोन पर यह हृदय-विदारक सूचना दी। दिल दहल गया। अब निकल रहा हूँ उन्नाव की ओर, उनका अंतिम दर्शन करने।

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