समाज ऐसा, जहां न निर्भया जैसे हादसे हों और न फांसी
: असल वजह खोजने जैसी चर्चा करने के बजाय हर्ष-उल्लास जैसा त्योहार : हमें खुद से पूछना होगा कि हम मृत्यु पर जश्न कैसे मना सकते हैं : दोलत्ती संवाददाता लखनऊ : जन्म देना तो ईश्वरीय सत्ता का धर्म है, जबकि वध अथवा हत्या जैसी मृत्यु देना राक्षसी कर्म है। चाहे वह निर्भया के साथ […]
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