सहमति की राजनीति में माहिर थे पासवान

दोलत्ती

: नीतीश के खिलाफ चिराग की राजनीति पर खामोशी : जाति को भुनाया तो बेहिसाब, लेकिन परिजनों से कन्नी काटते रहे : स्तनों को स्टैंड बना रखा था पासवान ने : न महिला ने कोई मौका चूका, न पासवान ने :

कुमार सौवीर

लखनऊ : लोकजनशक्ति पार्टी के संस्थापक रहे रामविलास पासवान को मैं निजी तौर पर नहीं जानता। सिवाय उनकी राजनीति को सूंघने और एक बार उनसे आमने-सामने बातचीत करने के अलावा मेरी उनसे कोई खास मुलाकात नहीं रही। बस इतनी ही वाकफियत रही मेरी उनसे। इसमें उनकी शुरुआत, कार्यपद्यति, राजनीति और उनके चारित्रिक पायदानों को बखूबी समझा सकता है। पासवान के बारे में मैंने जो भी सुना और देखा उसको बिना लाग-लपेट के मैं आपके सामने पेश किये देता हूं। और मैं समझता हूं कि उनके निधन पर इस तरह की श्रद्धांजलि ही बेहतर होगी।

एक डिप्टी एसपी की परीक्षा पास करने के बाद पासवान राजनीति में कूदे थे। लेकिन इस हदय-परिवर्तन का असली कारण क्या था, मुझे नहीं पता।
सन- 77 में पासवान को रिकार्ड वोटों से जीत मिली, जिस रिकार्ड को सन 89 में पासवान ने खुद ही तोड दिया और एक नया प्रतिमान स्थापित कर दिया।
रामसुंदर दास उस दौर में मुख्यमंत्री पद के सबसे सशक्त दावेदार थे, लेकिन पासवान ने अपनी जीत के तौर पर उनकी रणनीति को हमेशा-हमेशा के लिए ध्वस्त कर दिया था। मगर इसके बावजूद उन्होंने बिहार की राजनीति की दौड़ से खुद को बाहर कर लिया।

पासवान को अपनी कमजोरी को पहले ही भांप लिया था कि वे बिहार में अपना झंडा नहीं फहरा सकते। वे समझ चुके थे कि वे जीते मोहरे के बजाय केवल पैबंद की राजनीति तक ही सिमटे रह सकते हैं। इसलिए उन्होंने केंद्र की राजनीति को अपनाया।

पासवान को सहमति की राजनीति ही खूब फबी। आप यह भी कह सकते हैं कि विरोध की राजनीति कर पाना पासवान के वश की बात ही नहीं रही। इसीलिए वे हर दल में खप चुके थे। पासंग की तरह। हर दल में उनके लिए लाल गलीजे बिछाये जाते थे। विरोध का माद्दा उनमें था ही नहीं, शायद यही वजह है कि जब उनके बेटे चिराग ने हाल ही नितीश कुमार पर क्षेत्रवाद फैलाने का आरोप लगाया। बिहार सीएम की गद्दी के दावेदार चिराग का कहना था कि नीतीश की केवल नालंदा, बिहार और राजगीर के ही मुख्यमंत्री हैं और पूरा प्रदेश अपराध, अराजकता और दलालों के शिकंजे में है। पलायन जोतों पर है। लेकिन पासवान ने चिराग के इस हमले पर न सहमति दी और न ही विरोध किया।

रामविलास पासवान को अपनी राजनीति के लिए किसी भी ताकत से रिश्ता जोडने में कभी भी कोई भी ऐतराज नहीं था। जानकार बताते हैं​ कि पासवान ने अपनी पार्टी के टिकट दिल खोल कर बांटे, लेकिन ऐसे टिकट बांटने के लिए दिल खोल कर रकम भी खूब वसूली।

रेलमंत्री होने पर उन्होंने हाजीपुर में एक नया जोन बना लिया। आरोप हैं कि उन्होंने उन्होंने दिल खोल कर लोगों को नौकरियां दीं, और दिल खोल कर उसमें उगाही भी की।
पासवान टिपटाप यानी लैविश्ली रहने वाली उच्चतम जीवन-शैली में यकीन करते थे। बावजूद इस​के कि उनका वोट बैंक के लोग निम्नतम जीवन स्थिति में जीवन व्यतीत करने में मजबूर हैं। दाढी के एक-एक बाल तक को नियमित रूप से पार्लर में रंगवाते थे। फेशियल कराना उनका पसंदीदा शगल था। मजाल है कि उनके कपडे पर कोई सिलवट आ जाए।

इंडिया टुडे ने करीब दो दशक पहले पासवान के स्वास्थ्य पर एक विशेष स्टोरी छापी थी, जिसमें दर्ज था कि उन्होंने अपने घर में ही जिम स्थापित कर रखा है। लेकिन इस स्टोरी छपने के कुछ ही दिनों बाद पासवान को एक जबर्दस्त हार्ट अटैक हो गया था।

रामविलास पासवान का नाम भले ही राम से शुरू होता रहा हो, लेकिन विलास में उन्होंने कोई भी कंसेशन नहीं किया। उनकी एक पत्नी राजकुमारी देवी जिला खगडिया के एक गांव शहरबन्नी में अपनी दिन बिता रही हैं, जबकि उन्होंने एक पंजाबी युवती से विवाह कर लिया। चिराग इसी नइकी मेहरारू की संतान हैं।

सन-04 में लखनऊ गुजरते वक्त जौनपुर के जगदीशपुर क्रासिंग के पास एक शिक्षण केंद्र में आये थे। उनके साथ लखनऊ में रहने वाली उनकी एक महिला नेता भी थी। उस करीब आधा घंटे के दौरान वह महिला और पासवान अगल-बगल की कुर्सी पर ही सटे बैठे थे। अपने संबोधन के दौरान जब भी पासवान अपना बायां हाथ बढाते थे, उनका हाथ बायीं ओर उस महिला नेता के वक्ष की ओर ही बढाता था। लेकिन बजाय इसके कि वह महिला नेता खुद को पीछे होतीं, वे आगे बढ कर पासवान के उठे हाथ को अपने स्तनों की टेक पर सम्भाल लेती थीं। ऐसा उस पूरे दौरान कम से कम दस बार हुआ। लेकिन एक बार भी न तो उस महिला नेता ने कोई मौका चूका, और न ही पासवान ने ही अपने लोभ का संवरण किया।

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