वेतनभोगियों को पुष्पवर्षा, भूखे को लाठियां

दोलत्ती

: लोकसेवा और जनसेवा का अर्थ ही बेमानी हो गया : असल कोरोना सेनानी तो है आम आदमी : भत्ता के लिए जार:जार रो रहे हैं सरकारी कर्मचारी :
कुमार सौवीर
लखनऊ : जो अपनी मोटी तनख्वाह वसूल कर अपनी ड्यूटी कर रहे हैं, भत्तों के लिए कुकुर-झौं झौं कर रहे हैं, सरकार को धमकाय रहे हैं, उनको जहां-तहां हेलिकाप्टर से पुष्प-वर्षा। और जो राम-मंदिर के लिए पागलों की तरह जयजयकारा लगाता रहा है, जो टैक्स अदा कर अपनी बदहाल जिंदगी की समस्याओं का समाधान खोजने के लिए सड़क पर निकलने पर मजबूर हैं, उनके पिछवाड़े पर डंडा, गाली और बेहिसाब अपमान।
सच बात ही तो है कि यह जनता इसी लायक है।
सवा महीने के लॉक-डाउन में पुलिस ने आम आदमी को जम कर पीटा है, लाठियां भांजी हैं, मुर्गा बनाया है, डंड-बैठक कराया है, गालियां दी हैं, अपमानित किया है और दहशत का माहौल बनाया है।
लेकिन अगर इसके बावजूद लॉक-डाउन को पूरी तरह लागू कर दिया जाता, तो न तो रेड जोन का दायरा बढ़ता, न दो हफ्ते का एक्सटेंशन की नौबत नहीं आती, और न ही आम आदमी की ज़िंदगी इस तरह बेहाल और हराम हो जाती।
यानी हम शांति के साथ अपनी बर्बादी को रोकने को तैयार भी नहीं हैं।
जैसा राजा, यथा प्रजा।
सच बात तो यह भी है कि इस हालत में लिए सरकार, प्रशासन के साथ ही साथ आम आदमी की करतूतें ही जिम्मेदार हैं। और ऐसी करतूत गरीब नहीं, बल्कि माध्यम वर्ग और उच्च वर्ग से जुड़ा आदमी ही करता है। जबकि सड़क पर पुलिस की लाठियां और गालियां बर्दाश्त करता है गरीब इंसान, जो आप के बच्चे-बीवी को पालने के लिए अपनी जान तक लगाए रखता है।
आम आदमी के आंसू पोंछने को तैयार नहीं, लेकिन हम सरकार और अफसर को जन सेवक और लोकसेवक कहते नहीं थकते हैं। कोई बताये तो जन या लोक की औकात और उसकी चिंता कौन करता है।

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