साधना मेरी नहीं, मेरे पिता जी के वक़्त की दिलकश हीरोइन थीं

: मुड़ मुड़ के न देख मुड़ मुड़ के…और साधना हिट हो गईं : फोड़े की पीड़ा से थिरकते होंठों को युवकों ने मोनालिसा जैसी रहस्यमयी मुस्कान मान लिया : 45 साल तक साधना, फिर मौत। दर्द को नया नशीला अंदाज़ दे दिया था साधना ने : कुमार सौवीर लखनऊ : नहीं, नहीं। साधना मेरी […]

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सफलता तो छलिया है। आज मेरी, कल किसी और की

: मशहूर फिल्‍म अभिनेत्री ने विख्‍यात पत्रकार त्रिलोक दीप को बताया : फिल्‍म इंडस्‍टी में हरेक की अपनी जगह है, कोई किसी की जगह नहीं लेता : मेरा साया, आरज़ू, मेरे महबूब, वक़्त, असली नकली, वह कौन थी जैसी फिल्‍में यादगार हैं : त्रिलोक दीप नई दिल्‍ली : एक दिन आकस्मिक किसी का फोन आया […]

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साधना मेरी नहीं, पापा के सपनों की रानियों में से थीं

: दर्द को नया नशीला अंदाज़ दे दिया था साधना ने :  फिल्‍म की साधना: 45 साल तक साधना, फिर मौत : मैं साधना को बहुत प्यार करता रहा। जैसे अपनी माँ को प्यार करता हूँ : कुमार सौवीर लखनऊ : नहीं, नहीं। साधना मेरी नहीं, मेरे पापा के वक़्त की दिलकश हीरोइन थीं। उन […]

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बरेली का झुमका जान-मारू होता है, गिर जाना ही बेहतर

: झुमके की तो सदा यह फितरत रही है कि उसे कही ना कही तो गिरना ही पड़ता है : साधना जी का झुमका भी अगर बरेली मे ना गिरता तो मुंबई मे गिर जाता : किस्सा-ए-झुमका, दास्तान-ए-बरेली : भारद्वाज अर्चिता बरेली : मकरंद भर ने बसाया था बरेली शहर ।  रोहिल्लाओ का राज रहा।  […]

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साधना मेरी नहीं, पिता की पीढ़ी के लोगों की नींद चुराया करती थीं

: 45 साल तक साधना, फिर मौत : गले में कैंसर का घाव और दर्द को छिपाने के लिए दुपट्टा बांध कर उन्‍हें दर्शकों को नया नशीला अंदाज़ दे दिया था : आज भी थिरका देता है यह गीत, मुड़ मुड़ के न देख मुड़ मुड़ के : कुमार सौवीर लखनऊ : नाम था साधना। […]

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