: इलाहाबाद के चीफ जस्टिस ने राजेंद्र को रसातल में फेंका, राजेंद्र सिंह आसमान का सितारा बन गया : लाख बेहतर है कि मैं कोलोजियम से हाईकोर्ट का जज नहीं बना, वरना जीवन नर्क हो जाता : राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के सदस्य राजेंद्र सिंह अक्खड़ तो हैं, लेकिन बेईमान हरगिज नहीं :
कुमार सौवीर
लखनऊ : इलाहाबाद के चीफ जस्टिस थे बीबी भोंसले। तब लखनऊ के जिला एवं सत्र न्यायाधीश हुआ करते थे राजेंद्र सिंह। अखिलेश यादव सरकार में कुख्यात खनन मंत्री और मुलायम सिंह यादव के चरण-चांपू हुआ करते थे गायत्री प्रजापति। उगाही में और अपने राजनीतिक आकाओं के प्रति बेहिसाब पालित-श्वान की तरह जहां-तहां टांग उठा कर पसर जाते थे गायत्री प्रजापति। जेल में बंद गायत्री के जमानत आवेदन पर कोई जज फैसला करने से ही बचता था। लेकिन इसके बावजूद गायत्री के पक्ष में कई गुट बन गये, जो ऐन-केन-प्रकारेण गायत्री को बचाना ही चाहते थे। इसी बीच एक अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश ओम प्रकाश मिश्रा ने गायत्री प्रजापति की जमानत मंजूर कर दी।
नशेड़ी आला पत्रकारों की खाल में भूसा भर रहा है यह जज
हल्ला तो इतना भड़का कि वितंडा न्यायायिक आसमान तक पसर गया। वकीलों का एक गुट सीधे चीफ जस्टिस डीबी भोंसले के पास पहुंचा। लेकिन इस पर नियमित सुनवाई के लिए मामले को लिस्ट करने के बजाय चीफ जस्टिस डीबी भोंसले ने अर्जेंसी का हवाला देते हुए न केवल गायत्री प्रजापति की जमानत खारिज कर दिया, बल्कि इस मामले में 10 करोड़ रुपयों की घूस की आशंका जताते हुए जमानत देने वाले जज ओम प्रकाश मिश्रा को सस्पेंड कर दिया, जबकि जिला जज राजेंद्र सिंह को चंदौली का जिला जज बना दिया। लेकिन चीफ जस्टिस द्वारा लखनऊ के जिला जज राजेंद्र सिंह को दंडस्वरूप चंदौली भेजने को लेकर न्यायिक जगत में जबर्दस्त आक्रोश फैल गया था। कोई मानने का ही तैयार नहीं था कि राजेद्र सिंह की इस मामले में कोई संलिप्तता थी। वजह यह कि यह जमानत जिस जज ने मंजूर की थी, उसकी छवि तो ऐसी रही थी, लेकिन राजेंद्र सिंह अपने पूरे कार्यकाल में किसी भी मसले पर कभी भी किसी अफवाह या आरोप के शिकार नहीं बन पाये। उनका पूरा कैरियर हमेशा बेदाग रहा है। इतना ही नहीं, दस करोड़ रुपयों की घूस की बात वाली अति गोपनीय पत्र की भाषा भी केवल आशंका तक सीमित रही थी, जिसे देश के मुख्य न्यायाधीश को भेजा गया था। लेकिन सवाल यह है कि जब यह अति गोपनीय पत्र था, तो उसे सार्वजनिक किसने किया था ? जाहिर है कि यह छवि बिगाड़ने की एक साजिश भर ही थी।इतना ही नहीं, इस कांड के पहले ही राजेंद्र सिंह को श्रेष्ठ जज के तौर पर इलाहाबाद हाईकोर्ट कोलोजियम ने उनको इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज के तौर पर मनोनीत करने के लिए देश के सर्वोच्च न्यायालय के कोलोजियम के पास प्रस्ताव बना कर भेज दिया था। लेकिन गायत्री प्रजापति की जमानत के मामले के बाद ही चीफ जस्टिस ने कोलोजियम का अपना प्रस्ताव खारिज कर वापस करा दिया था।
योर ऑनर। आपने जो किया, उसे ज्यूडिशियल इम्प्रोप्राइटी कहते हैं
यह तो रहा न्यायपालिका का। लेकिन उस पूरे मामले में मीडिया ने जितना भी हो सकता था, राजेंद्र सिंह की छवि बिगाड़ने की भरसक कोशिश की। फर्जी और अनर्गल खबरें प्लॉंट की गयीं, झूठ के झोंके लगाये गये। कुल मिला कर यह कि राजेंद्र सिंह को मिटियामेट कर डालने की पूरी तैयारी थी। लेकिन राजेंद्र सिंह ने मीडिया को अदालत में जमकर घसीटा। हालत यह हुई कि इंडिया टीवी, टाइम्स ऑफ इंडिया समेत कई मीडिया घरानों की हालत खराब हो गयी। वकीलों की भीड़ लगाने की कवायदें भी इन मीडिया घरानों को बचा नहीं पायी। मामला आज भी कोर्ट में ही है। और कहने की जरूरत नहीं है कि इन सब पर राजेंद्र सिंह बेहिसाब मजबूत खड़े दिख रहे हैं। लेकिन राजेद्र सिंह को न्यायपालिका की ओर से नुकसान तो हो ही गया। वे हाईकोर्ट में जज नहीं बन पाये। दोलत्ती डॉट कॉम ने उनसे साफ पूछा:- जज न बन पाये का कितना दुख है आपको
धेला भर नहीं। जज बन जाता, तो दो-चार बरस और नौकरी कर लेता। लेकिन जब तक जज रहता, वकीलों से जज बने जजों के अधीनस्थ ही रहता। मेरी कोई निजी पहचान नहीं बन पाती। अब कम से कम अपना स्वतंत्र चरित्र, पहचान और आवाज तो है। मेरे परिवारीजन, मेरे गांववाले, मेरे मित्रगण, मेरे मोहल्लेवाले और पूरी न्यायिक जगत में कम से कम मेरा एक अस्तित्व तो है, धाक तो है। तब एक भी पहचान नहीं हो पाता। आज मैं दो आयोगों में चयनित हो चुका हूं। आज उप्र राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में आम आदमी की बात तो सुन लेता हूं, उनकी समस्याओं को समझ कर फैसला तो कर लेता हूं।
और मीडिया से आपकी तल्ख-रिश्तेदारी। राजेंद्र सिंह बोले कि:- मैं हमेशा बोलूंगा, जहां गलत होगा। चाहे वह न्यायपालिका हो, या फिर मीडिया। मैं चाहता हूं कि समाज में मुझ जैसे लोग सामने आयें, लड़ें और बाकादा जीत कर बाकी समाज को प्रकाश दे सकें, रास्ता दिखा सकें।