: बलिया में पत्रकार हत्याकांड में विपक्ष ने आग लगायी, योगी-सरकार बचाव में : रतन की हत्या अवैध धंधों में हुई, पत्रकारीय दायित्वों से नहीं : पत्रकारों और संगठनों ने सिर्फ अपना धंधा चमकाया, छवि धूमिल हुई योगी की :
कुमार सौवीर :
बलिया : बिहार से सटे बागी बलिया में एक व्यक्ति की हत्या हो गयी, तो हंगामा खडा हो गया। इस हत्या को कानून-व्यवस्था की समस्या के तौर पर नहीं, बल्कि उसे कुछ इस तरह पेश किया कि मारा गया व्यक्ति वाकई मर्यादा पुरुषोत्तम के स्तर का महान था, जो पत्रकारिता जगत में राम और कृष्ण से भी ज्यादा महान, प्रासंगिक और महत्वपूर्ण था। इतना कि इसके बाद देश, समाज और धरा ही समाप्त हो जाएगी। इस तरह हल्ला मचाया गया कि इस मौत पर अगर सरकार ने अपना खजाना खोल कर करोडों की इमदाद, आर्थिक मदद, और दीगर सुविधाएं मृतक आश्रितों को नहीं थमायी गयीं, तो भविष्य में कभी भी किसी रामचरित मानस अथवा महाभारत या गीता जैसे महानतम ग्रंथों की रचना ही असम्भव होगी। धर्म नेस्तनाबूत हो जाएगा।
सहारा समय टीवी चैनल से जुडे रतन सिंह की विगत 24 अगस्त-20 को गोली मार कर हुई हत्या के बाद पत्रकारों और पत्रकार संगठनों में ही नहीं, बल्कि विपक्ष के लोग भी सरकार के घेरेबंदी में जुट गये थे। कहीं धरना, कहीं प्रदर्शन, कहीं ज्ञापन, कहीं प्रतीक प्रदर्शन, कहीं बवाल, तो कहीं नारेबाजी। पूरे बलिया ही नहीं, बल्कि प्रदेश और देश में भी यही नौटंकी हुई। सच को देखने, दिखाने, समझाने या उसे तरतीब-वार पेश करने की जहमत किसी भी ने नहीं की। राजनीतिक दलों का तो मकसद तो दीगर था ही।
दरअसल, इस बवाल के सहारे पत्रकार अपनी मजबूती की नींव खडी करना चाहते थे। अपने काले धंधे छिपाना चाहते थे। सरकार और प्रशासन व पुलिस पर खासा दबाव बना कर अपनी शक्ल उन के दिल-दिमाग तक छाप डालने की होड़ में थे। सभी चाहते थे कि नेता और अफसर की आंखों में उनकी छवि अमिट हो जाए। कहने की जरूरत नहीं कि इनमें से दो-चार-पांच लोगों को अगर छोड़ भी दें, तो बाकी ऐसी सारी लकड़बग्घा-पत्रकार बिरादरी रतन सिंह की लाश की बोटियां अपने हिस्से में लूट-छीन कर भाग निकले में जुटी थी।
सबसे पहले नाटक शुरू किया समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने, और रतन के शोक-संतप्त परिवार के आंसू पोंछते हुए उसकी पत्नी को दो लाख रुपया नकद थमा दिया। यह मदद करते वक्त अखिलेश ने रतन की हत्या को आम आदमी की अभिव्यक्ति की हत्या के तौर पर बताया और कहा कि भाजपा की योगी सरकार अब जुबान पर प्रतिबंध लगाने की साजिश कर रही है।
आपको बता दें कि यह वही अखिलेश यादव हैं जिन्होंने आज से करीब सात बरस पहले शाहजहांपुर शहर में जिन्दा फूंके गये पत्रकार जागेंद्र सिंह के केस को महीनों तक लटकाये रखा था। उस मामले को लटकाने और डील करने के लिए पत्रकारों के एक सो-कॉल्ड पत्रकार को एक बड़े अफसर के साथ जुटा दिया था। यह जानते हुए भी उस हत्या में उनका एक दिग्गज मंत्री राममूर्ति वर्मा के इशारे में नगर कोतवाल श्रीप्रकाश राय के नेतृत्व वाली पुलिस टोली ने जागेंद्र को उसके घर में ही घेर कर मिट्टी का तेल डाल उसे जिन्दा फूंक डाला था।
मंत्री जिले के पत्रकारों पर खूब रुपये लुटाता था। वरना मंत्री के इशारे पर पुलिस अफसर और वहां की पत्रकार बिरादरी भी जगेन्द्र सिंह को ब्लैकमेलर और फर्जी साबित करने पर आमादा थे। वह तो गनीमत थी कि दोलत्ती डॉट कॉम ने शाहजहांपुर जाकर पांच दिनों तक छानबीन की। दोलत्ती ने साबित किया कि जागेंद्र वाकई एक पत्रकार था और उसे पुलिसवालों ने जिन्दा फूंक डाला था। दोलत्ती का मकसद था कि मंत्री राममूर्ति वर्मा का कींचड से सना चेहरा और घिनौना व्यक्तित्व को निरमा से घिस कर धो डालना।
बहरहाल, 24 अगस्त-20 को रतन हत्याकांड की घटना के उसके कुछ ही दिन बसपा के विधायक उमाशंकर सिंह भी उचकौवा-तेल लगा कर खडे हुए। पता चला कि मायावती जी ने अखिलेश के ऐलान के बाद उमाशंकर सिंह की छुच्छी में हवा भरना शुरू कर दिया। नतीजा, इस हवा-भराई से कूद कर उमाशंकर सिंह ने बलिया का नेशनल गेम पोस्पोन किया और लपक कर रतन के घर गये। वहां पत्रकारों को जुटाया, जिन्दाबाद, मुर्दाबाद के नारे लगवाये और उसके बाद दो लाख रुपया थूक लगा-लगा कर धकाधक गिन डाला। राज्य मंत्री उपेंद्र तिवारी को उनके सलाहकारों ने सलाह दी कि वे भी, ” रतन के घर कुछ कैश दे आएं, लेकिन जरा कम ही दें। आपके पास विभाग भी तक चिरकुट टाइप ही हैं न, इसलिए।” जयजयकार शुरू हो गया सपा और बसपा का। ( विधायक उमाशंकर सिंह पर तो खैर अलग से ही एक सीरीज शुरू करने में जुटा हूँ)
विपक्ष के इस विजय-घोष से योगी सरकार बौखला पडी। सरकार के प्रबंधकों और अफसरों की समझ में ही नहीं आया कि आखिर वह इस संकट से कैसे निपटे। सरकार को सलाह दी गयी कि चूंकि इस विवाद को विपक्ष ने आर्थिक-तख्त पर निपटाने का दांव चला है, इसलिए बेहतर होगा कि इसी तख्त पर ही विपक्ष को पछाड दिया जाए। इस सलाह में रतन हत्याकांड के “मूल कारणों की ही नृशंस हत्या” करने का फैसला रचने का दांव चलाया। फिर इस दांव की प्रक्रिया में सच और झूठ के बीच के विश्लेषण करने का साहस और सहज न्याय को स्पष्ट तौर पर व्याख्यायित करते हुए दिखाने के बजाय सरकार के सलाहकारों ने झूठ का ही सहारा लिया और आनन-फानन जनता के खजाने से दस लाख रुपयों का आर्थिक सहयोग करने का ऐलान कर दिया। इतना ही नहीं, ऐलान यह भी किया गया कि किसान बीमा योजना के तहत रतन के पीडित परिवार को पांच लाख रुपयों की मदद अतिरिक्त तौर पर सौंपी जाएगी।
बस यही अनर्थ हो गया। ऐसा अनर्थ जिसका खामियाजा अब बलिया से होते हुए प्रदेश और देश को भी भुगतना होगा। सफेद झूठ का सहारा लेकर बन-कूकुर पत्रकारों की टोलियां हर झूठे मसलों पर सरकार और प्रशासन व पुलिस तथा अवाम के खिलाफ झूठ का कींचड़ फैलाते हुए सच और न्याय के विरुद्ध “प्रभात-फेरी” करना शुरु कर देंगी। इतना ही नहीं, यह एक परम्परा ही बन जाएगी। फिर चाहे भले कोई अपने आपराधिक धंधों के चलते मारा जाए, लेकिन नाम लगाया जाएगा कि वह पत्रकारीय दायित्वों के चलते ही मारा गया। फिर हंगामा खडा होगा। पत्रकार का लबादा ओढे आपराधिक, बेईमान, लुटेरे, प्रॉपर्टी डीलर, कई-कई अवैध संबंध रखने वाले और छिछोरे-छिनरे भी सड़क पर लेट जाएंगे। ब्लैमेलर, कोटेदार, प्रॉपर्टी डीलर्स, दलाल तथा शराब के ठेके की दूकान चलाने वाले लोगों से नए-नए बने पत्रकार संगठनों के बैनरों पर आपराधिक लोग चिल्लाएंगे कि पत्रकारिता और पत्रकार संकट है और पत्रकारीय मूल्यों पर कुठाराघात हो रहा है। ऐसे लोग हल्ला-दंगा करेंगे कि उनकी पत्रकारिता की नैतिकता और अभिव्यक्ति के अधिकारों का पुलिस और प्रशासन के साथ ही साथ सरकार भी दमन कर रही है, हत्या कर रही है।
ऐसी हर घटना पर लोग हमेशा सदियों तक योगी आदित्यनाथ को ही याद किया करेंगे करेंगे। योगी नजीर बन जाएंगे, सच को झूठ में तब्दील करने वाले सबसे पैरोकार के रूप में योगी का नाम स्वर्णाक्षरों में दर्ज होगा।
ऐसी हालत में आप क्या करेंगे योगी जी ?
अगर आप बलिया में हुई पत्रकार हत्याकांड की खबरों को देखना चाहते हैं तो निम्न खबरों के लिंक पर क्लिक कीजिएगा
बलिया पत्रकार हत्याकांड: असलियत तो कुछ और ही है
तर्क से पिस्तौल तक बदल चुकी बलियाटिकों की आस्था
बलिया: पत्रकारिता नहीं, “अवैध धंधों” में हुआ था कत्ल
साफ बात। निजी झगडे में मारा गया, तो मुआवजा क्यों
बलिया में आज ही पीटे जाएंगे कुमार सौवीर
न जाने कहां छिपे-दुबके रहे “श्वान-श्रृगाल”
बलिया: खबर-चर्चा से पहले पत्रकार का चरित्र परखो
बलिया के पत्रकार चाटेंगे शिलाजीत। पूंछ रखेंगे पिछवाड़े में
भारी संकट में है बलिया की पत्रकारिता: हेमकर
सच नहीं, झूठ के सामने घुटने टेके योगी-सरकार ने
सच नहीं, झूठ के सामने घुटने टेके योगी-सरकार ने
अगर आप बलिया से जुडी खबरों को देखना चाहें तो निम्न लिंक पर क्लिक कीजिएगा
कमाल का जिला है बलिया