रोशनलाल आज होते तो ऐसे अफसरों को तमाचे मारते

मेरा कोना

: तुम सबसे बड़े नौकर हो, नौकर की तरह ही व्यवहार करो : तब यही आला अफसर दो-कौड़ी के साबित हो जाते हैं : बात-बात पर बिदक होना तुम्हें शोभा नहीं होता अफसरों : अहंकार-गंगा से गन्दगी फैला रही है आज की ब्यूरोक्रेसी : तुनकमिजाजी रग-रग में बसी है, और वजह है बेईमानी : लो देख लो, बड़े बाबुओं की करतूतें- तीन :

कुमार सौवीर

लखनऊ : तुम और तुम्हारे अधीनस्थ अफसरों की यह जिम्मेदारी है कि तुम यह इस बात की निगरानी करो कि तुम्हारे अधीन किसी भी अधिकारी या कर्मचारी को तुम्हा‍रे अहंकार या तुम्हारी मूर्खता का खामियाजा न भुगतना पड़े। इससे उस अफसर या कर्मचारी को तो कोई भी दिक्कत नहीं होगी, लेकिन तुम्‍हारा रसूख खत्म हो जाएगा और तब तुम्हारी छाती पर वही कर्मचारी मूंग दलना शुरू कर देगा। वजह यह कि तब वह तुम्हारी वजह से नहीं, बल्कि अदालतों के बल पर स्टे लेकर नौकरी पर वापस आयेगा, लेकिन नौकरी के बजाय केवल तुम्हारी नाक में दम करता रहेगा।

यह कोई पचीस साल पहले की बात होगी। एक वरिष्ठ आईएएस अफसर हुआ करते थे रोशन लाल। नौकरी के आखिरी दौर में वे एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष बने। तब मुख्य सचिव हुआ करते थे ब्रजेंद्र सहाय। प्रशासन में सुधार और श्रेष्ठ पहलकदमी के लिए रोशन लाल ने जो-जो काम किये, वाकई लाजवाब थे। इसके पहले कभी भी किसी वरिष्ठ अधिकारी ने ऐसा कोई ठोस कदम नहीं उठाया जो मील का पत्थर बन सके। अब दुर्भाग्य  की बात है कि बाद की ब्यूरोक्रेसी ने रोशन लाल की सिफारिशों को कूड़ेदान में डाल दिया और नतीजा आज वही नौकरशाही के कई सदस्य अपनी बेईमानी, अहंकार, तुनुकमिजाजी और दिखावे की जिन्दगी के चलते पूरी की पूरी प्रशासनिक व्यवस्था को ध्वस्त किये दे रहे हैं। आपको इस बारे में बाद में बताऊंगा कि रौशन लाल के विचारों के खिलाफ ब्यूरोक्रेसी ने क्या-क्या नहीं खोया है आज तक। अपना गौरव, अपना सम्मान, अपना भविष्य, अपनी विश्वसनीयता, अपना आत्मविश्वा स, अपना खुद का होना वगैरह-वगैरह। सब का सब काफी कुछ तबाह कर दिया है ब्यूरोक्रेसी ने। कई ऐसे मामले दर्ज हो चुके हैं कि उनके सामने यही ब्यूरोक्रेसी शर्म के मारे अपना सिर तक नहीं उठा सकती है। आम आदमी के सामने खोखले दम्भ का प्रदर्शन और अपने आकाओं के सामने गिड़गिड़ाना यूपी की नौकरशाही का ताजा चेहरा बन चुका है। लेकिन इस बारे में अगले अंकों में बातचीत होगी। खैर,

दरअसल, रौशन लाल ने महसूस किया था कि कई बडे अफसर लोग अपने छद्म और दिखावटीपन के चलते अपने अधीनस्थौ अफसरों-कर्मचारियों पर जुल्म कर देते हैं। उन्हें सबसा बड़ा अस्त्र यह लगता है कि जिस कर्मचारी-अधिकारी से वे नाराज हैं, उसे सस्पेंड कर दें। इससे वे दूसरों पर अपना रौब जमाना चाहते हैं और अपने अहंकार को तुष्ट करना चाहता हैं। लेकिन यह उनकी नीचता होती है, ऐसे में प्रताडि़त कर्मचारी-अधिकारी सीधे कोर्ट चला जाता है और फिर वहां से स्टे लेकर नौकरी ज्वाइन कर लेता है। नतीजा यह होता है कि स्टे लेकर आया आदमी अपने बड़े अफसर को खुलेआम चुनौती दे‍ते हुए आपकी रही-बची-खुची इज्ज्त का फालूदा सरेआम कर देता है। फिर वह नौकरी तो सरकार की करता है, लेकिन आपका अधीनस्थ नहीं बन पाता। उसे हमेशा लगता है कि उसकी नौकरी की नेमत आपकी वजह से नहीं, बल्कि अदालत है। आपको फिर ठेंगे पर रख देता है, और फिर यही ठेंगा आपकी जान का गाहक बन जाता है। आपकी पूरी की पूरी प्रशासनिक ढांचा को दीमक लग जाता है।

रोशन लाल आज इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन उन्होंने इस बारे में निजी बातचीत में मुझे बताया है कि:- तब यही आला अफसर दो-कौड़ी के साबित हो जाते हैं।

यूपी की ब्यूरोक्रेसी से जुड़ी खबरों को अगर देखना-पढ़ना चाहें तो कृपया इसे क्लिक करें

लो देख लो, बड़े बाबुओं की करतूतें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *