अफसरशाही: आकाओं को तैल-मर्दन, अधीनस्थों से चरण-चुम्बन

मेरा कोना

: अपनी ही कनिष्ठतम सहयोगी की बेइज्जती, खामोश रही ब्यूरोक्रेसी : करने लगा है पूरा प्रशासनिक ढांचा त्राहि-माम त्राहि-माम : लो देख लो, बड़े बाबुओं की करतूतें- चार :

कुमार सौवीर

लखनऊ : कोई सात-आठ साल पहले की ही तो बात है। मुख्यमंत्री थीं मायावती। एक दिन वे प्रशासनिक और राजकाज का जायजा लेने के लिए राजधानी की मलिहाबाद तहसील का आकस्मिक निरीक्षण पहुंच गयीं। इस तहसील का जिम्मा तब वहां तैनात एक ट्रेनी आईएएस लड़की का था। मायावती ने राजस्व कागजों-रजिस्टरों पर सवालों की झड़ी लगा दी। लखनऊ के जिलाधिकारी, मण्डल आयुक्त, राजस्व सचिव और मुख्यमंत्री के सचिव जैसे दसियों आला अफसर मौके पर मौजूद थे। लेकिन मायावती के सवालों का जवाब दे पाने में सभी अफसरों की घिग्घी बंध गयी। नतीजा यह हुआ कि इन सारे बड़े अफसरों ने उस नन्हीं-जान लड़की को सामने ठेल दिया।

नयी-नयी ट्रेनिंग पर आयी थी यह लड़की, उसे कुछ पता ही नहीं था। उधर तुर्रा यह कि मायावती के तेवर चढ़ते ही जा रहे थे। मगर तारीफ करनी पड़ेगी यूपी की बहादुर, समझदार और जुझारू ब्यूरोक्रेसी के जांबाज अफसरों की, मायावती और वह लड़की की बातचीत में कोई भी अफसर बीच में नहीं पड़ा। आखिरकार मायावती इतनी गुस्सा गयीं कि उसी वक्त अपने अफसरों को हुक्म दिया कि इस लापरवाह लड़की को मेरी नजर से दूर लखनऊ से हटा दो।

अब चूंकि वहां कमिटेड ब्यूरोक्रेसी का मामला था, इसलिए सारे आला अफसरों ने हुक्म की तामीली की और उस लड़की को बहराइच भेज दिया। हालांकि यूपी की ब्यूारोक्रेसी पिछले 30 बरसों से अपने इतिहास में कुछ न कुछ ऐसा नया हादसा दर्ज करने में आमादा है, कमिटेड है। लेकिन इस लड़की के मामले में तो सारे नियम-कायदे ही ध्वस्त कर दिये गये। इस ट्रेनी एसडीएम को कुछ पता तक नहीं था, उसे तो वहां इसीलिए भेजा गया था कि वह वहां अपने वरिष्ठों-कनिष्ठों से सीखेगी। बहरहाल, इतिहास में पहली बार हुआ कि एक प्रशिक्षु अफसर को केवल इसलिए दंडित करा दिया गया कि उसे कुछ पता ही नहीं है।

तो जनाब। इस लड़की का नाम था किंजल सिंह। इसके पिता केपी सिंह सन-82 में गोंडा के कर्नलगंज में पुलिस उपाधीक्षक थे। बेहद जुझारू और ईमानदार भी। लेकिन कप्तान साहब और उनकी पत्नी से उनकी पटती नहीं थी। खासकर पत्नी से। जन-चर्चाओं के अनुसार कप्तान की पत्नी की डिमांड ही ऐसी होती थी कि उसे पूरा कर पाना किसी खुद्दार शख्स के लिए मुमकिन नहीं था। बहरहाल, सन-82 में पुलिसवालों ने ही साजिश की और एक झूठे एनकाउण्टर के नाम पर अपने ही डीएसपी केपी सिंह की हत्या कर दी।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि महिलाबाद काण्ड में बिलकुल अकेली पड़ी किंजल ने अपने पैरों की मजबूती के लिए हरचंद कोशिश करनी शुरू कर दीं। आज हालत यह है कि अपने अधीनस्थों के प्रति बेहद अक्खड़ के लिए कुख्यात हो चुकी है। ताजा मामला तो लखीमपुर-खीरी का है, जहां किंजल के व्यवहार से आजिज आकर अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के दुधवा टाइगर रेंज में तैनात सारे वन-विभाग के अफसरों-कर्मचारियों ने ऐतिहासिक हड़ताल छेड़ दी, जो करीब छह महीने तक चली।

वन विभाग के लोग तो अब इसे मेकअप-गर्ल कहते हैं।

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लो देख लो, बड़े बाबुओं की करतूतें

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