रिक्‍शावालों को मी-लॉर्ड कहें वकील, तभी मेरा जीवन धन्‍य होगा

बिटिया खबर

: केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने कॉलोजियम पर किया करारा प्रहार, बोले अपारदर्शी व्‍यवस्‍था है : पांच जजों की नियुक्ति अनुभव या योग्‍यता नहीं, बल्कि पुरस्‍कार और पारितोषिक के तौर हुई : कॉलोजियम पर चर्चा आरएसएस के मंच से क्‍यों : रिजिजू कॉलोजियम के खिलाफ हैं, तो उनका मकसद बेईमानी करना ही है :

कुमार सौवीर

लखनऊ : एक समारोह में लखनऊ हाईकार्ट के एक रिटायर्ड जज और एक बड़े वकील आमने-सामने दिख गये। दोनों ही आपस में मित्र थे। दोनों के परिचित और मित्रगण भी आसपास जुट गये। बातचीत का दौर चला, तो वकील साहब से जज साहब ने एक सवाल उछाल दिया।
“सुना है कि अब आप वकालत से संन्‍यास लेने की तैयारी कर रहे हैं ?”
” नहीं तो। ऐसा हर्गिज नहीं है।”
“लेकिन अफवाहें तो ऐसी ही उड़ रही हैं। “
“ऐसी अफवाहों पर आखिर क्‍या और कितना कान दिया जाए। रही बात वकालत से मेरे रिटायर होने की, तो सच बात तो यही है कि जब तक ई-टैम्‍पो और रिक्‍शावालों को ऑनरेबल माईलॉर्ड और योरऑनर सुनते वकीलों को नहीं देख लूंगा, मन को तसल्‍ली नहीं हो पायेगी। “
इस समारोह में इस बातचीत में शामिल लोगों में से कुछ को समझ में ही नहीं आया, कुछ बेहद संजीदा हो गये, कुछ हक्‍का-बक्‍का रह गये तो किसी ने जोरदार ठहाका लगा दिया। लेकिन जजों की नियुक्ति के लिए कोलोजियम प्रणाली को लेकर देश के कानून मंत्री किरण रिजिजू का तेवर अब खासा तीखा और आक्रामक होने लगा है। परसों यानी 17 अक्‍टूबर-22 को रिजिजू ने कॉलेजियम सिस्टम पर कई कड़े सवाल उठाया है। एक समारोह में बोलते समय किरण का कहना था कि कॉलोजियम सिस्‍टम को लेकर वे कत्‍तई खुश नहीं है। खास बात तो यह है कि रिजिजू ने इस बारे में अपनी निजी राय जाहिर करने के बजाय साफ-साफ कह दिया है कि जजों की नियुक्ति के तौर-तरीकों को लेकर जनता नाखुश है। उनका साफ कहना था कि कॉलेजियम प्रणाली की प्रक्रिया बहुत अपारदर्शी है और न्यायपालिका में ‘अंदरखाने राजनीति’ ही निर्णायक होती जा रही है। जिसमें जजों के रिश्‍तेदार, परिचित लोगों को ही ओहदे मिल रहे हैं, भले ही वे उसके लिए योग्‍य हों या नहीं।
किरण रिजिजू की बात में दम तो है ही, लेकिन जिस मंच पर उन्‍होंने यह बात उठायी है, वह कई संशय और खतरों की ओर इशारा कर रहा है। मसलन, किरण ने यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मंच से उठायी है। वे आरएसएस की साप्ताहिक मैगजीन पांचजन्य की और आयोजित कार्यक्रम साबरमती संवाद में बोल रहे थे। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि, ‘संविधान सबसे पवित्र दस्तावेज है। हमारे पास विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका समेत तीन स्तंभ है। मुझे लगता है कि कार्यपालिका और विधायिका अपने कर्तव्यों से बंधे हुए हैं और न्यायपालिका उन्हें ठीक करती है। लेकिन मुद्दा यह है कि जब न्यायपालिका भटक जाए तो कोई व्यवस्था नहीं है जो उसे ठीक कर सके।’
लेकिन किरण इस बात को छिपा गये कि लोकसभा चुनाव के ठीक पहले उन्‍होंने यह मसला क्‍यों उठाया। कहने की जरूरत नहीं है कि कॉलोजियम के मसले को भाजपा ने ही उठाया था, लेकिन केंद्र सरकार में आते ही भाजपा ने इस मसले को ठण्‍डे बस्‍ते पर छिपा दिया। लेकिन अब जब सन-24 के चुनाव की तैयारियां चल रही हैं, किरण रिजिजू ने इस आग को तेज कर अपना हाथ सेंकने की कोशिशें छेड़ दी हैं। वैसे भी किरण रिजिजू का यह बयान केवल चर्चा ही दिखता है, वजह यह कि फिलहाल उन्‍होंने कॉलोजियम का विकल्‍प तैयार करने की कोई कोशिश ही नहीं की है।
इतना ही नहीं, रिजिजू ने यह तो कह दिया कि भारत एक वाइब्रेंट लोकतंत्र है और कुछ समय के लिए तुष्टीकरण की राजनीति भी देखी गई। कई मौकों पर न्यायाधीश अपने कर्तव्यों की सीमा से परे जाते हैं और जमीनी हकीकत को जाने बिना कार्य करते हैं। लेकिन किरण ने इस बात को छिपा लिया कि पिछले दिनों कॉलोजियम से चुने गये पांच जजों में उनकी वकालत के अनुभव को भी अनदेखा कर दिया गया। सूत्र बताते हैं कि कुछ ऐसे वकील भी कॉलोजियम के तहत जज बन गये, जिन्‍होंने बमुश्किलन डेढ़ महीना ही वकालत की थी। चर्चाएं तो यह है कि इन सभी को केवल पुरस्‍कार और पारितोषिक के लिए यह जज बनाया गया था, बजाय उनके अनुभव अथवा योग्‍यता के आधार पर। ऐसी हालत में अगर किरण रिजिजू कॉलोजियम की वकालत कर रहे हैं, तो साफ है कि वे बेईमानी कर रहे हैं।

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