: कैबिनेट सचिव रहे शशांक शेखर सिंह के कुत्ते पर अमर उजाला की खबर तो पढि़ये : सात बरस पहले मरे व्यक्ति को वयोवृद्ध साबित किया : पेशबंदी ऐसी कि मानो यह खबर शशांक शेखर सिंह ने बताया :
कुमार सौवीर
लखनऊ : अमर उजाला के प्रकाण्ड पत्रकारों की जनरल-नॉलेज दूसरों के मुकाबले कई-कई कोस, मील, योजन आगे ही रहती है। यहां के पत्रकार हमेशा वर्तमान और भविष्य में भी सकारात्मक अतीत को खोजा करते रहते हैं। ताजा मामला है एक कुत्ते की मौत को लेकर। 10 अक्टूबर के अंक में अमर उजाला ने अपने माई सिटी पुलआउट में जो खबर परोसी है, उससे तो हर पाठक अपने जूते उठा सकता है।
अपनी कार्यशैली, आईएएस अफसरों को नाथने में माहिर और मायावती-सरकार में सबसे ताकतवर अफसरशाह कैबिनेट सचिव रहे शशांक शेखर सिंह की मृत्यु भले ही सात बरस पहले हो चुकी हो, लेकिन लखनऊ वाले अमर उजाला के संपादक ने शशांक शेखर सिंह को नोएडा वाले मकान में देखा है। संपादक के मुताबिक अपने मकान में रहने वाले शशांक शेखर सिंह वयोवृद्ध हैं, इसी कारण से वे अपने विपुल खंड वाले अपने 2-20 नम्बर वाले मकान के बजाय नोएडा में रह रहे हैं।
आपको बता दें कि करीब सात बरस पहले 12 जून-2013 को शशांक शेखर सिंह का देहांत हो गया था। वे कैंसर से पीडि़त थे, लेकिन आखिरी दिनों तक सक्रिय रहे। वायुसेना में प्रशिक्षित पायलट के तौर पर अपना कैरियर शुरू करने वाले शशांक शेखर तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 1979 में प्रतिनियुक्ति पर यूपी का स्टेट पायलट बनाया था। उन्होंने शशांक शेखर को जल्द ही नागरिक उड्डयन विभाग का निदेशक बना दिया। वीपी सिंह ने ही अपने उत्तराधिकारी मुख्यमंत्री श्रीपति मिश्र और वीर बहादुर सिंह से भी शशांक शेखर सिंह का परिचय कराया। वीर बहादुर ने तो शशांक शेखर को मुख्यमंत्री कार्यालय में विशेष कार्याधिकारी बना दिया। इसके बाद से शशांक शेखर तेजी से नौकरशाही की सीढि़यां चढ़ते गए। वे नारायण दत्त तिवारी के भी करीबी रहे। सत्ता के गलियारों में राजनाथ सिंह से भी उनकी नजदीकियों की चर्चा रही। पूर्व राज्यपाल रोमेश भंडारी ने तो राष्ट्रपति शासन के दौरान उन्होंने शशांक शेखर को प्रमुख सचिव राज्यपाल नियुक्त किया था।
शशांक शेखर मायावती के विश्वासपात्र बने और 2002 में जब वह तीसरी बार मुख्यमंत्री बनीं तो उन्होंने उन्हें औद्योगिक विकास आयुक्त जैसे महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी सौंप दी। मायावती जब 2007 में चौथी बार मुख्यमंत्री बनीं तो उन्होंने नियम कायदे को ताक पर रखकर इस गैर आइएएस अधिकारी को कैबिनेट सचिव का दर्जा दे दिया। प्रदेश की नौकरशाही उनका हुक्म बजाती थी। माना जाता था कि शशांक शेखर का निर्देश ही मुख्यमंत्री मायावती का फरमान है। मायावती के लिए राजकाज में शशांक शेखर की अपरिहार्यता इस कदर थी कि मई 2010 में शशांक सिंह के शासकीय सेवा से रिटायर होने से पहले उन्होंने उन्हें दो साल का सेवा विस्तार दे दिया था।
शशांक शेखर सिंह की हनक का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि कैबिनेट सचिव रहते मुख्यमंत्री सचिवालय में पहले तल पर मुख्य सचिव के कार्यालय के लिए उन्होंने लिफ्ट का इस्तेमाल बंद करा दिया था। तब आइएएस एसोसिएशन को इसके खिलाफ आवाज उठानी पड़ी थी। वर्ष 2011 में एक प्रेस कांफ्रेस के दौरान जब एक पत्रकार ने उनसे कहा कि मैंने आपसे नहीं आपके बगल में बैठे वरिष्ठ अधिकारी से सवाल किया है तो शशांक शेखर ने छूटते ही कहा ‘कैबिनेट सचिव मैं हूं ना।’
अब आप वह खबर पढ़ लीजिए जिसमें अमर उजाला के इस प्रकांड-मूर्ख ने छाप डाली है।