: भले ही मैं कानून की नजरों में दोषी बनूं या न बनूं, भले ही ये मुद्दा कोर्ट में एक दिन भी न टिक पाए, भले ही ये मुद्दा कोर्ट में एक दिन भी न टिक पाए : सलोनी से वक्त भी मांगा, उन्हें मजबूरन मौत को गले लगाना ही होगा : कलम में छिनरपन- छह :
दोलत्ती संवाददाता
इंदौर : (गतांक से आगे) यह ऑडियो आने के बाद तो ग्रुप एडिटर कल्पेश याग्निक के लिए करो या मरो की स्थिति बन गई। अपने भाई के साथ मिलकर उन्होंने तय किया कि सलोनी कोई कदम उठाए उससे पहले वे सारी स्थिति बताते हुए पुलिस में अपना पत्र सौंप देंगे, ताकि सलोनी के पुलिस स्टेशन पहुंचने पर उन पर सीधे केस दर्ज न हो सके। इतने सालों की पूरी कहानी बताते हुए उन्होंने 8 पेज का एक पत्र लिखा और पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी के पास पहुंचे। उनसे लंबी चर्चा की और सारी स्थिति बयां की। उनके मन में इस बात को लेकर गहरा भय था कि अगर सलोनी उन पर झूठा केस ही कर दे, तो उसे झूठा साबित करने का सारा भार आरोपी पर आ जाएगा और जब तक झूठ सामने आएगा, उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा खत्म हो चुकी होगी।
31 साल के लंबे बेदाग करियर में, जिसमें करीब 25 साल वे बॉस की भूमिका में रहे, साथ ही प्रतिष्ठा को लेकर बेहद सतर्क और संवेदनशील रहे, वो पूरी तपस्या पल भर में मिट्टी में मिल जाएगी। पत्र में उन्होंने कहा कि ‘सलोनी का ऐसा विश्वास है कि महिला कानून सिर्फ नारी के हितों को सुरक्षित ही नहीं करता है, बल्कि एक पुरुष के अधिकारों का हनन भी करता है, इसके लिए जरूरत है सिर्फ एक बार पुलिस स्टेशन जाने की। रेप का केस दर्ज होने के बाद भले ही मैं कानून की नजरों में दोषी बनूं या न बनूं, जनता की निगाह में मैं रेपिस्ट ही करार दिया जाऊंगा, फिर भले ही ये मुद्दा कोर्ट में एक दिन भी न टिक पाए।
उन्होंने पैसे देने की उसकी नाजायज मांग को पूरा करने का भी फैसला किया, ताकि उसे पकड़वा सकें, लेकिन वो अपने फिल्म वितरक मित्र के साथ मिलकर पैसे की मांग बढ़ाती गई। ग्रुप एडिटर कल्पेश याग्निक ने पत्र में लिखा था, ‘हालांकि इतनी धमकियां और तनाव झेलने के बाद भी मेरा यह दृढ़ निश्चय है कि मैं उसकी गैरकानूनी और नाजायज मांगों के आगे नहीं झुकूंगा, क्योंकि मैंने एक भी ऐसा काम नहीं किया है, जो इस देश के कानून के खिलाफ हो और मैं इस बात से पूरी तरह वाकिफ हूं कि कानून और कानून को लागू करने वाली एजेंसियां इस सोशल मीडिया ब्लैकमेलिंग में मेरी कोई मदद नहीं कर सकतीं, क्योंकि जैसे ही मैं एक रिपोर्ट लिखूंगा, मेरा नाम जनता में सार्वजनिक रूप से उछाला जाएगा, जिससे कि लोग सनसनीखेज अटकलबाजियां करेंगे और एक बड़ा स्कैंडल बन जाएगा। जाहिर है, इस हरकत से हुई बड़ी और गहरी क्षति सिर्फ मेरी होगी।’ इस पत्र को उन्होंने तब तक गोपनीय रखने का अनुरोध भी किया, जब तक कि वो महिला इस विषय पर खुले में बाहर नहीं आती और कानून द्वारा पकड़ी नहीं जाती।
इसके बाद जो हुआ, वो कई लोगों के मन में एक कसक छोड़ गया कि ग्रुप एडिटर कल्पेश याग्निक को इस तरह नहीं जाना था। जाहिर सी बात है, ग्रुप एडिटर कल्पेश याग्निक खुद भी नहीं जाना चाहते थे, लेकिन यह चिट्ठी लिखने के हफ्ते भर बाद ही उन्हें इस दुनिया से असमय विदाई लेनी पड़ी। स्थितियां ऐसी बन चुकी थीं कि अपनी बेदाग छवि को बचाए रखने की एकमात्र इच्छा और अपने बच्चों को लावारिस छोड़कर न जाने का गहरा दुख भी उन्हें यह कदम उठाने से नहीं रोक सका। आखिरकार 12 जुलाई की रात साढ़े 10 बजे उन्होंने दैनिक भास्कर ऑफिस के तीसरे माले से कूदकर अपनी जान दे दी। इस उम्मीद में कि शायद शरीर की सारी हडि्डयां टूटकर ही उनकी छवि को टूटने से बचा सकें।
वे अपने परिवार के लिए जीना चाहते थे, दैनिक भास्कर में कई और महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट करना चाहते थे। लेकिन उनका आत्मसम्मान और प्रतिष्ठा को लेकर उनकी संवेदनशीलता उन्हें जिंदगी के इन लम्हों की जीने की इजाजत नहीं दे रही थी। उन्होंने इसके लिए सलोनी से वक्त भी मांगा और उससे कहा कि उन्हें मजबूरन मौत को गले लगाना ही होगा, इसलिए वो उन्हें कुछ वक्त दे ताकि वे बिना तनाव के कुछ समय अपने परिवार के साथ बिता सकें। पुलिस को जो ऑडियो मिले हैं, उनमें ये बातें खुद ग्रुप एडिटर कल्पेश याग्निक कहते हुए सुनाई देते हैं। (क्रमश:)
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