पत्रकारिता: क्‍या सिर्फ हिंसा, आतंक और द्वेष ही बचा है लेखन में

बिटिया खबर

: लखनऊ लायी गयी अशक्‍त बाघिन का चरित्र-हनन करने में जुटे हैं अखबारों के पत्रकार : किसी अखबार ने बाघिन को हिंसक करार दे दिया, तो किसी ने आदमखोर बता दिया : आपको भाषा और शब्‍द इसलिए नहीं दिये गये हैं कि आज समाज में हिंसा और आतंक फैलायें :

कुमार सौवीर

लखनऊ : जंगलात महकमे के लोग बीती दोपहर कतर्नियाघाट के जंगल से एक बाघिन लेकर आये। जाहिर है कि उसका प्राकृतिक जंगल निवास क्षेत्र उससे हमेशा-हमेशा के लिए छिन चुका है। विस्‍तृत पेड़ों-झाडि़यों के जंगलों के बजाय उसे सरिया से बने छोटे से जंगले में बंद किया गया है। इसलिए वह दुख और हमलावर अंदाज वाले गुस्‍से में है। लेकिन वन विभाग के लिए इस बाघिन को पकड़ना इसलिए जरूरी है, क्‍योंकि हमारा समाज इस बाघिन को हिंसक, नरभक्षी और आदमखोर मानता है।
वह कई लोगों पर जानलेवा हमला कर चुकी इस बाघिन पर प्रकृति ने गहरे घाव थमाये हैं। मसलन, उसका दो कैनाइन यानी किसी भी चीज को फाड़ डालने वाले दाढ़ समेत तीन दांत टूट गये थे। इतना ही नहीं, उसके पंजों में काफी घिस चुके थे। उम्र बढ़ने के चलते हुई इस दिक्‍कत के चलते वह अब किसी जानवर को दौड़ कर पकड़ लेने में समर्थ नहीं रह गयी थी। नतीजा यह हुआ कि उसने आसान शिकार छोड़ कर जंगल के केंद्र वाले अपने निवास क्षेत्र को छोड़ कर जंगल के बाहर निकल कर आबादी पर अपना भोजन खोजना शुरू कर दिया। कुत्‍ते और बकरी ही नहीं, बल्कि वह तो इंसानों पर हमला करने लगी।
इंसानी आबादी के लिए खतरा बन चुकी इस बाघिन को वहां से निकालने के लिए वन विभाग ने जाल लगाया और आखिर यह बाघिन पकड़ ली गयी। इसके बाद उसे लखनऊ के चिडि़याघर में भेज दिया।
लेकिन इसके बाद से ही इस बाघिन ही नहीं, बल्कि भाषा-विन्‍यास, व्‍याकरण, मानवता और पत्रकारिता के मौलिक सिद्धांतों को तिलांजलि दे दिया। यह जानते हुए भी कि किसी भी प्राणी के लिए भोजन सर्वोच्‍च और अपरिहार्य होता है, लखनऊ के पत्रकारिता के बड़े झंडाबरदारों ने कभी तो उसके नरभक्षी कर दिया, तो कभी उसको गुनाहगार साबित कर दिया। शैली ऐसी, मानो उसे अदालत और कानून के मंच से अपराधी साबित कर दिया गया है। उसके प्रति मानवता और संवेदनशीलता बरतने के बजाय इन अखबारों ने उसे एक ऐसी अपराधी साबित कर दिया, जिसको लेकर पाठक जगत में जबर्दस्‍त सनसनी पैदा की जा सके।
एक तरफ तो हम जंगलों की आवश्‍यकता और धरती पर उनकी उपस्थिति को अपरिहार्य मान रहे हैं। आम आदमी और खास कर बच्‍चों को जंगल के प्रति आदर, जरूरत, स्‍नेह और आवश्‍यकता महसूस करने का अभियान छेड रहे हैं, लोगों को वन-क्षेत्र के घटते क्षेत्र से पैदा होने वाली भयावह स्थितियों की कल्‍पनाएं कर रहे हैं, वहीं हमारे अखबारों के माध्‍यम से हमारे पत्रकार जंगल के जानवरों के प्रति इस तरह शब्‍दावली में भय, घृणा, हिंसा और अस्‍पृश्‍य होने का संदेश दे रहे हैं।
हिन्‍दुस्‍तान समेत अधिकांश अखबारों ने तो यह भी लिख दिया कि इस बाघिन के कैनाइन समेत तीन दांत टूट चुके हैं और पंजे भी घिसे हुए हैं, लेकिन उसे जल्‍दी ही जंगल में भेज दिया जाएगा। लेकिन यह नहीं बताया कि आखिर ऐसा क्‍यों हो पायेगा।

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