कुख्‍यात-दुर्दान्‍त अपराधियों के चरण-चांपन का दर्दनाक अंत

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: तीन बेटियां का पिता है कुशीनगर के गरीब परिवार का जोशीला सुखदेव : उसके जीवन का मकसद था कुश्‍ती में नाम कमाना, पहुंच गया जेल : निहायत ओछे चंद सपनों के पीछे कितनी बर्बाद कर चुका है सुखदेव : जरा निहार लीजिए मालिक के पालितों की दुर्गति– दो :

कुमार सौवीर

लखनऊ पूरे परिवार में आज भी कोई यह मानने को तैयार नहीं कि जागती आंखों से घर की खुशहाली, गांव की उन्नति और पहलवानी में अपना भविष्य देखने वाला सुखदेव हत्या जैसी घिनौनी वारदात को अंजाम दे सकता है। सभी यही मानते हैं कि वह षड्यंत्र का शिकार हो गया। बड़े लोगों ने उसे फंसा दिया है। बड़े लोग, मतलब वाकई दुर्दांत अपराधी डीपी यादव जो पश्चिम उप्र के अपराध जगत का बेताज बेताज बादशाह रह चुका है।

विश्वनाथ यादव के चार लड़कों में से सुखदेव दूसरे नम्बर का बेटा है। वह परिवार की गरीबी को दूर करने के लिए 1998 में गाजियाबाद चला गया। कुछ महीनों तक वह छोटे-मोटे काम करता रहा, पर यहां भी उसका पहलवान बनने का शौक हिलोरे मारने लगा। वह किसी अखाड़े में कुश्ती लड़ने लगा और यहीं उसकी जिंदगी में ऐसा मोड़ आया कि जिंदगी और कुश्ती दोनों बर्बाद हो गई। परिजन बताते है कि कुश्ती में माहिर और गठीला बदन होने के चलते जल्द ही वह बाहुबली डीपी यादव के आदमियों की नजर में चढ़ गया। वह डीपी यादव के संरक्षण में चलने वाले अखाड़े में पहुंचा दिया गया।

कुछ ही महीनों में सुखदेव की गिनती है डीपी यादव के खास पहलवानों में होने लगी। शहरी चकाचैंध और आसानी से मिल रही सुख-सुविधाओं से सुखदेव के कदम गलत रास्ते पर कब चल निकले उसे खुद भी पता नहीं चला। इसकी परिणति नीतिश कटारा हत्या कांड़ के अभियुक्त बनने के रूप में हुई। सुखदेव के परिजनों की मानें तो वह ताकतवर लोगों की बात न मानने की सजा भोग रहा है।

नीतिश कटारा हत्याकांड में सुखदेव पहलवान कितना दोषी है यह सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कर दिया है। पर यह भी एक कड़वा सच है कि शहरी चकाचौंध, दांव-पेंच और सुख-सुविधाओं ने एक सीधे-साधे पहलवान के कदमों को ऐसे रास्ते पर भटका दिया जिसके चलते उसकी और उसके कुनबे की जिंदगी में अब रोने और अफसोस कर जीवन बिताने के सिवा कोई चारा नहीं बचा। एक पहलवान जो जिले और देश का नाम रोशन कर सकता था जेल की कोठरी में खो गया।

राह से भटके हुए राहगीर को भले ही बाद में रास्‍ता मिल जाए, लेकिन ईमानदार स्‍वामी को पहचान न पाने का दंश हमेशा मौत जैसा ही होता है। चाहे वह डीपी यादव के पुत्रों की करतूतों से हुए नितीश कटारा हत्‍याकाण्‍ड में संलिप्‍त कुख्‍यात डीपी यादव जैसे लोगों का हो या फिर यूपी की मुख्‍य सचिव रहीं नीरा यादव जैसी बेईमानों के चरण पखारने में जुटे लोग। इस पूरे मामले को समझने के लिए कृपया निम्‍न लिंक को क्लिक कीजिए: – फिर फर्क क्‍या बचा उसमें तुममें

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