: न जाने कैसे राजीव कुमार यह भूल गया कि वह मूलत: नौकर है, शाहंशाह नहीं बन सकता : मेरे पत्रकारों ने मुझ पर आरोप जड़ दिया कि मैं बेईमानों को ईमानदार बनाने की फैक्ट्री बनाने की साजिश में हूं : जरा निहार लीजिए मालिक के पालितों की दुर्गति- तीन :
कुमार सौवीर
लखनऊ : अब आइये, राजीव कुमार की ओर। बेहद पढ़ाकू और परिश्रमी रहा है राजीव कुमार। शुरू से ही उसका सपना रहा है कि वह अपने देश और अपने देशवासियों की सेवा के लिए अपनी हर सांस अर्पित कर देगा। अपने इस सपने को साबित करने के लिए राजीव ने कठोर परिश्रम किया और वह आईएएस बन ही गया। लेकिन नौकरी की शुरूआती पेंचीदगियों ने उसे तोड़ना शुरू कर दिया। वह संशय में फंस गया कि उसके जीवन और उसके सपनों की नैया राजनीतिज्ञ निबटायेंगे या फिर उसके संवर्ग के वरिष्ठ सहयोगी। सोचा तो पता चला कि जिस तरह उसके वरिष्ठ सफलता की पींगें में लात उचका रहे हैं, वह ही रास्ता सर्वश्रेष्ठ है।
राजीव कुमार को उसके वक्त ने तोड़ा, उसकी नौकरी ने तबाह किया या फिर हताश खिलाड़ी जैसा हश्र हुआ राजीव का। आज तक पता नहीं। लेकिन आजकल अंदाज यह लगाया जाता है कि राजीव एक ईमानदार और कम बोलने वाला शख्स है। वह मीडिया-फ्रेंडली कभी भी नहीं रहा। व्यवहार में हमेशा रूखापन रहा राजीव में। पत्रकार उसकी इस प्रवृत्ति से खासे नाराज रहे हैं। जब पिछले दिनों मैंने इस मामले पर खबर लिखी तो कुछ पत्रकारों ने मुझे ही आड़े हाथों ले लिया। बोले कि:- आप एक बेईमान को ईमानदार बनाने की फैक्ट्री बनने की साजिश कर रहे हैं।
लेकिन हकीकत यही है कि राजीव नीरा यादव के शिकंजे में फंस चुका था। नीरा ने अपने उसकी पोस्टिंग करा दी। बस, फिर क्या था। नीरा यादव ने उसकी इस ख्वाहिशों को पहचान लिया और उसे लपक कर अपने गले लगा दिया। राजीव नया लड़का था, नीरा की लालच में फंस गया। नीरा ने उसे अपना डिप्टी बनवा लिया। और फिर उसके माध्यम में ऐसे-ऐसे धोखाबाजियों करा लिया कि फिर तौबा-तौबा। नीरा यादव का हर धोखा उसने ईमानदारी में साबित करने में अपनी जिन्दगी भिड़ा दी। सन-95 में नोएडा में नीरा के अधीनस्थ बन कर उसने नीरा की जूतियां तक चाटना शुरू कर दिया।
लेकिन मामला फंस गया। राजीव भूल गया कि वह मूलत: नौकर है, शाहंशाह नहीं। नतीजा, मामला अदालतों तक पहुंच गया। सुप्रीम तक ने उस पर तीन साल की सजा दे दी। साबित कर दिया कि राजीव कुमार ने बेईमान था, जिसने धोखाधड़ी के चलते सरकार को चूना लगाया। लेकिन जानने वाले आज भी जानते हैं कि राजीव कुमार वाकई ईमानदार शख्स है। लेकिन उसने अपने आकाओं की शह पर बेईमानियों पर ईमानदारियों का ठप्पा लगा दिया।
राह से भटके हुए राहगीर को भले ही बाद में रास्ता मिल जाए, लेकिन ईमानदार स्वामी को पहचान न पाने का दंश हमेशा मौत जैसा ही होता है। चाहे वह डीपी यादव के पुत्रों की करतूतों से हुए नितीश कटारा हत्याकाण्ड में संलिप्त कुख्यात डीपी यादव जैसे लोगों का हो या फिर यूपी की मुख्य सचिव रहीं नीरा यादव जैसी बेईमानों के चरण पखारने में जुटे लोग। इस पूरे मामले को समझने के लिए कृपया निम्न लिंक को क्लिक कीजिए: – फिर फर्क क्या बचा उसमें तुममें
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