दैनिक जागरण का कमाल, बथुआ का झंडा बुलंद

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: बहुत दिनों बाद दैनिक जागरण अपने पुराने प्रख्यात लुक में दिखाई पड़ा : लखनऊ अखबार के पुलआउट जागरण सिटी में आधे पन्‍ने पर छापी गयी हैं बथुआ-पकवानों पर जोरदार खबरें : हालांकि कई गड़बडि़यां भी बिखेर दिया गया इस बथुआ-पर्व के दौरान :

कुमार सौवीर

लखनऊ : किसी भी अखबार की लोकप्रियता उसकी छपने वाली प्रतियों से ज्‍यादा इस तथ्‍य से नापी जाती है कि उसे आम पाठक को क्‍या खबरें परोसी गयी हैं। और आज लखनऊ के दैनिक जागरण ने वाकई लाजवाब खबरें पेश कर अपना झंडा बुलंद कर दिया। हालांकि यह झंडा असल में बथुआ साग का ही रहा, लेकिन इसके साथ ही साथ पत्रकारिता की चौकस नजर का कमाल दिखा कर दैनिक जागरण ने साबित कर दिया रसोई में भीनी-खुशबू फैलाने वाली सब्जी में आज भी बथुआ का स्थान बुलंद है।

दरअसल बथुआ एक खरपतवार है जो अपने आप ही खेतों में पैदा हो जाता है। लेकिन अपने दिव्‍य ओषधीय गुणों के चलते बथुआ को किसी भी रसोई में श्रेष्‍ठतम स्‍थान मिल चुका है। इसका स्वाद बेमिसाल होता है इसलिए उसे खोंटने की परंपरा आदिकाल से ही है जब से इंसान ने भोजन पकाना और खेती का महत्व समझना शुरू किया था। लेकिन शहरी क्षेत्र में बथुआ को कभी भी कोई बहुत ज्यादा सम्‍मानन नहीं मिल पाया। शहर के केवल वही लोग बथुआ अपनी रसोई में उसे पकाते थे जिनकी पृष्ठभूमि ग्रामीण है। जो बधुआ को पहचानते, जानते, खाते हैं, वे जानते हैं कि बथुआ को सर्दियों में ठीक हुई स्थान मिला है जो कपड़ो में स्वेटर को।

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दैनिक जागरण ने अपने पुलआउट का पहला पन्‍ने का आधा हिस्‍सा आज बथुआ को सम्‍मान देने का फैसला किया। यह खबर की जानकारी जागरण संवाददाता को एक शेफ वंदना दिवाकर ने दी। उन्‍होंने इसमें बथुआ पर बेहद स्‍वादिष्‍ट व्‍यंजनों का सिलसिलेवार और पठनीय खबरें पेश की हैं। तोहफा है सर्दियों की तैयारी का, जिसे बथुआ की हिस्‍सेदारी बनाने की कोशिश की गयी है। हालांकि इस आलेख-खबर में कई गड़बड़ भी है। जिन पाठकों की इस बारे में राय छापी गई है वह भी केवल फोटो छापने तक ही सीमित हो गया। बेहतर हो यह होता कि यह रिपोर्टर उन महिलाओं से गहरी चर्चा करता और उसमें अपने अनुभव जो उसके पाकशास्त्र के गुणों से संबंधित है, उसका प्रदर्शन भी करता है। खैर इसमें सबसे बड़ा झूठ तो जागरण ने यह बोला कि इसकी कीमत सर्दियों की शुरूआत में सौरुपए किलो थी। जबकि सफेद झूठ है। शुरुआत सामान्य बाजारों में 40 से ही शुरू हुआ और आज 20 से 25 तक सिमट गया है। बड़ी कॉलोनी और अफसरों के इलाकों में बथुआ की कीमत कहीं-कहीं 50 रूपयों तक पहुंच गई।

एक सलाह है। वह यह कि भविष्‍य में मूली के पत्ते और सोया मेथी पर भी चर्चा अपने अगले अंकों में हों। कि कैसे और कौन-कौन से साग-पत्‍ते अब लुप्त होने की कगार पर है उनका ओषधीय गुण, उनके पकाने का तरीका, और पुनः स्‍थापना कराना जरूरी है।

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