: जीडी बिड़ला होते तो गंगा-स्नान करने हरिद्वार चले जाते : हिन्दुस्तान के समूह सम्पादक को रविशंकर के उल्टा-पुल्टा बयान छापने के अलावा कोई का ही नहीं आता : पेड-न्यूज यह नहीं है तो फिर यह क्या है :
कुमार सौवीर
लखनऊ : हिन्दुस्तान टाइम्स मीडिया के संस्थापक स्वर्गीय घनश्याम दास बिड़ला की आंख करीब दस साल से खून के आंसू बहा रही है, लेकिन हिन्दुस्तान अखबार के समूह सम्पादक ने अब तक उनकी आंख पोंछने का कोई भी प्रयास नहीं किया। बल्कि रविशंकर प्रसाद के उल्टे-पुल्टे बयान छाप-छाप कर बिड़ला की आंखों में बुर्राक लाल मिर्च का चूरन-बुकनू झोंकने के जोर-शोर अभियान में जुटे हैं। आज फिर उन्होंने रविशंकर का एक निहायत चूतियापंथी वाला इंटरव्यू छाप दिया, जिसमें न ओर है, और न छोर। मुद्दे की बात तो दूर, इसमें यह तक नही साबित हो गया है कि इस पूरे छह कालम वाले इंटरव्यू में खबर जैसा क्या है, सिवाय इसमें कि यूपी में मुस्लिम मसलों को उछाल कर वोटों का ध्रुवीकरण किया गया। ताकि भाजपा का राम-राज जरा ठीक से फिट हो सके।
दरअसल, शशि शेखर एक निहायत घिसे खिलाड़ी हैं। देश के कानून और न्याय कानून रविशंकर प्रसाद का इंटरव्यू वे लगातार छापते जा रहे हैं। इंटरव्यू क्या, बिलकुल अंट-शंट और सिर्फ बकवादी जैसी बयानबाजी वाली बातें। पिछली बार उन्होंने जब अपने राजनीतिक सम्पादक निर्मल पाठक को अपनी साजिश में फंसाया था। इंटरव्यू में अपना नाम जोड़ कर खुद की मार्केटिंग खूब की शशि शेखर ने। लेकिन प्रमुख न्यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम ने उसका नंगा खुलासा कर दिया। जाहिर है कि इसके बाद शशि शेखर की खासी किरकिरी हो गयी। उस खबर को देखने के लिए कृपया निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए :
सम्पादक शशिशेखर
इसके बाद लगता है कि शशि शेखर सतर्क हो गये। लेकिन सवाल यह है कि वे अपनी आदत और अपने धंधे कैसे छोड़ पाते। इसके लिए उहोंने अपने या अपने राजनीतिक संपादक के नाम के बजाय, ऐसे अपनी धंधेबाजी वाले खबरें विशेष संवाददाता के नाम से छापना शुरू कर दिया। मकसद यह कि काम भी हो जाए और किसी का नाम भी खुलासा न हो पाये।
लेकिन आज इसका फिर खुलासा हो गया। 28 फरवरी के अंक में दैनिक हिन्दुस्तान ने अपने सम्पादकीय पन्ने के सामने वाले पेज पर आज फिर रविशंकर प्रसाद का एक फोटो-समेत इंटरव्यू छाप दिया, जिसे किसी भी पत्रकार की निगाह में केवल दल्लागिरी ही कहा जाएगा। वजह यह कि यह इंटरव्यू दरअसल एक बकवास है। खुद इसी इंटरव्यू में कोई खास खुलासा के बजाय, दर्ज है कि इन बातों को रविशंकर अपनी चुनावी सभाओं में खुलेआम कहते हैं। फिर सवाल यह है कि जो बात ताल ठोंक कर कही जा रही है, उसमें विशेष क्या है, जिसे इंटरव्यू में शरीक किया जा सके।
दरअसल, शशि शेखर खुद को एक निहायत शातिर खिलाड़ी समझते हैं। वे मानते हैं कि उनकी चालाकियां कोई नहीं समझ सकता। लेकिन जो जरा भी समझने की जहमत करते हैं, वे इस साजिश को खूब समझते हैं। शशि शेखर अपने पाठकों को यह समझाते हैं कि हिन्दुस्तान अखबार लोकतंत्र और ईमानदारी का प्रतिमूर्ति है। लेकिन सच यह सब जानते हैं, कि शशि शेखर दरअसल एक घाघ खिलाड़ी हैं।
इसीलिए अपने धंधे के तहत जरूरी रविशंकर प्रसाद जैसे शिकारों को चारा तो खूब फेंकते हैं। लेकिन असल मसलों को छोड़कर। मसलन, वे ऐसी खबरों में तीन तलाक पर बात तो करेंगे, लेकिन कोलेजियम में मुंह के बल औंधा गिरी सरकार पर सवाल ही नहीं उठायेंगे। वे नहीं पूछेंगे कि यूपी हाईकोर्ट में 160 जजों के पद में से आधे पद क्यों खाली हैं और सरकार उसकी कहां तक जिम्मेदार है, या उन पदों को कब भरा जाएगा। शशि शेखर यह सवाल कभी भी नहीं उछालेंगे, कि अदालतों में रिफार्म की क्यों प्रक्रिया है, क्यों यादव सिंह जैसे लोगों को भरी अदालत में कब तक पीटा जाएगा, कब तक बीसियों साल तक मामलों का फैसला की परम्परा खत्म की जाएगी।
यह सवाल नहीं उठायेंगे शशि शेखर। क्योंकि ऐसे सवाल उठाने से वे रविशंकर जैसे मंत्रियों के करीबी नहीं बन पायेंगे। और तब जाहिर है कि इस भरे बुढापे में शशि शेखर का धंधा पूरी तरह फ्लाप हो जाएगा।