रायबरेली का राम जानें, पीलीभीत में तो फिसड्डी थे डीएम

दोलत्ती


: घण्टा-घड़ियाल पीटते हुए शहर भर में नौटंकी करने वाले पीलीभीत डीएम का हुआ तबादला : पत्रकारों से अभद्रता, लाश का इलाज करने वाले को कोविड अस्‍पताल थमाया :
नवजोत सक्सेना
पीलीभीत : बात कर रहे हैं पीलीभीत के डीएम की जो पहले से ही जनता कर्फ्यू के दिन घण्टे घड़ियाल के साथ जुलूस निकालने के नाम पर पूरे उत्तरप्रदेश में ख्याति बटोर चुके हैं। हैरत की बात है कि पीलीभीत में लगातार अपनी अराजक कार्यशैली और अभद्रताओं के बावजूद वैभव श्रीवास्‍तव को अब रायबरेली की कमान थमायी गयी है।
गौरतलब है कि वैभव श्रीवास्‍तव की ख्‍याति जुगाड़-डीएम के तौर पर ही रही है। ढोल-मंजीरे की तर्ज में पूरे शहर में कोरोना युद्ध में नौटंकी में तब्‍दील कर देने वाले यह डीएम को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा कोरोना से रोकथाम में पीलीभीत को मॉडल बनाने का तमगा भी हासिल कर चुके है। जबकि पूरे शहर ही नहीं, बल्कि पूरे जिले में प्रशासनिक व्‍यवस्‍ता पूरी तरह लचर और अराजक बन चुकी थी।
इनके कारनामों के चर्चे कुछ इस तरह बुलन्द हैं कि पूर्व में लाश का इलाज करने वाले कथित मैकूलाल हॉस्पिटल को कोविड हॉस्पिटल की मान्‍यता दे दी गयी थी। हैरत की बात है कि यह जानते हुए भी कि इस हॉस्पिटल का मालिक फर्जी डॉक्टरी की डिग्रियों का आरोपित भी बताया जाता है। लाश का इलाज के नाम पर उगाही करने वाले मैकूलाल हॉस्पिटल को प्रशासन ने पहले ही सील कर रखा था। लेकिन इसके बावजूद इस सील्‍ड हॉस्पीटल को कोविड अस्‍पताल की मान्‍यता दी गयी थी। जाहिर है कि शहर में इसके चर्चा खूब हैं।
इतना ही नहीं, कोरोना वारियर्स के रूप में कार्यरत स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों के साथ मारपीट करने व एक वरिष्ठ पत्रकार के बदसुलूकी करने जैसे मामलों में अपनी सुर्खियां खूब बटोर चुके हैं। यूँ तो वैभव श्रीवास्तव के लगभग डेढ़ साल के कार्यकाल में वो हमेशा विवादों में रहे एवं जिले के किसी भी विधायक भाजपा नेता या सांसद की उन्होंने एक न सुनी, आज उनके तबादले पर भले ही कुछ राजनैतिक लोग अपनी अपनी पीठ थपथपाने पर लगे हों लेकिन असल बात तो ये है कि घण्टा- घड़ियाल बजाने का उचित फल मिला वैभव श्रीवास्तव को तमाम शिकायतों के बावजूद एवम विधायक रामसरन वर्मा के मोर्चा खोलने के बाद भी वैभव श्रीवास्तव को सचिवालय से सम्बद्ध न कर पीलीभीत से बड़े जिले में तैनाती मिली और पीलीभीत के नेता- विधायक बस गाल बजाते रह गए।
वैभव श्रीवास्तव ने अपने कार्यकाल में हठधर्मिता नहीं छोड़ी चाहे कोई भी प्रकरण हो उसे सूझ-बूझ से निपटाने की बजाय हमेशा हठ धर्मिता से ही बाज आये। बीसलपुर विधायक रामसरन वर्मा ने उनकी शिकायत की तो उल्टा उन्ही की जांच शुरू करवा दी, लाश का इलाज करने वाले अस्पताल को ही कोविड अस्पताल बना दिया, स्वास्थ्य विभाग पर उनका कभी कोई कंट्रोल नही रहा। कोरोना काल में स्वास्थ्य विभाग अपनी ही मनमानी करता नज़र आता रहा। बात करें पीलीभीत के विकास की तो अपने डेढ़ साल के कार्यकाल में वैभव ने एक कदम भी पीलीभीत के विकास के लिए नहीं बढ़ाया, विधायकों को उनसे मिलने के लिए इंतजार करना पड़ता था , पत्रकारों के वे फोन नहीं उठाते थे, जनता से सीधा संवाद नहीं करते थे, शिकायत कर्ता से ही तल्खी से पेश आना उनका रवैय्या था उनके व्यबहार में लोकसेवक कम कॉलेक्टरगिरी ज्यादा चमकती थी यही वजह है कि वे पीलीभीत के लिए एकदम फिस्सडी साबित हुए।

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