इतना भी दूध के धुले नहीं हैं प्रशांत भूषण ऐंड कंपनी

दोलत्ती

: जज की धमक न रही, तो धड़ाम होगी न्‍यायपालिका : सुप्रीम कोर्ट से बुली-गैंग का सफाया जरूरी : जजों को भी खुद के गिरहबान में झांकना होगा :

कुमार सौवीर

लखनऊ : अवमानना मामले में तीन जजों की बेंच की कवायद के खिलाफ प्रशांत भूषण ने लंगोट तो कस लिया, लेकिन इसका अंजाम शर्तिया खतरनाक ही होगा। चाहे कुछ भी हो, प्रशांत भूषण पर इस मामले में सजा सुनानी ही होगी। वरना न्‍यायपालिका का बना-बुना रसूख लम्‍बे वक्‍त तक बर्बाद होता ही रहेगा। अदालतों में अनुशासनहीनता चरम पर पहुंचेगी। मनमानी और धमकी ही नहीं, बल्कि परस्‍पर उठापटक का भी नजारा आम-ओ-खास तक पहुंच जाएगा। नतीजा होगा, लूट और मारपीट का अंतहीन चरम। बड़े-छोटे का फर्क बेमानी होगा। याचिकाएं और मुकदमे ताकत के बल पर निपटाये जाने लगेंगे। और उसका खामियाजा भुगतेगा आम मुअक्किल। कुल मिला कर एक भयावह सामाजिक अराजकता के दौर पर पहुंच जाएंगे हम सब।

सुप्रीम कोर्ट में आजकल जो कुछ भी हो रहा है, उसको लेकर वकीलों का एक धड़ा इस तरह की आशंकाओं से ग्रसित है। उन्‍हें डर है कि अगर इस मामले का तत्‍काल पटाक्षेप नहीं किया गया, तो इसका परिणाम अकल्‍पनीय रूप से डरावने हादसे की तरह हो सकता है। इस पूरे मामले में प्रशांत भूषण किसी हीरो की तरह सामने दिखाये पड़ रहे हैं। इसका जिम्‍मेदार परिस्थितियां हैं, अथवा प्रशांत भूषण की अपनी रणनीति, लेकिन इतना तो जरूर है कि मामला काफी संगीन बन चुका है और इसका समाधान खोजने-निपटाने में न्‍यायपालिका और विधि-जगत को काफी कुछ खोना पड़ेगा।
प्रशांत भूषण इस समय न्‍याय-योद्धा की भूमिका में आ चुके हैं। एक अडि़यल नहीं, बल्कि हक-ओ-हुकूक को लेकर महात्‍मा गांधी की तरह का ही अडिग सेनानी। माना जा रहा है कि प्रशांत भूषण के ऐसे कदमों से न्‍याय-विधि जगत में प्रशांत भूषण के बेमिसाल और निर्विवाद नेता के तौर पर दिखायी पड़ेंगे। लेकिन सूत्र बताते हैं कि इस मामले की हदें केवल ऐसी छोटे मैदान या तालाब तक ही नहीं है। बल्कि इसके मीलों दूर तक तक विस्‍तृत धरती है, जिसे आंक-नाप पाना आसान नहीं होगा। जो इस शोर-शराबा में नापा ही नहीं जा रहा है।

दोलत्‍ती सूत्र बताते हैं कि प्रशांत भूषण सुप्रीम कोर्ट के इन बड़े दिग्‍गज वकीलों में से एक हैं, जो सुप्रीम कोर्ट के भीतर होने वाले फैसलों में अक्‍सर अपनी टांग अड़ाते रहते हैं। बल्कि यूं कि कहें तो प्रशांत भूषण उस बड़े गिरोह के मुखिया हैं, जो जजों पर बुली किया करते हैं। ऐसे लोगों में प्रशांत भूषण के अलावा दुष्‍यंत दवे, मनु सिंघवी, कामिनी अग्रवाल, कपिल सिब्‍बल वगैरह कई बड़े दिग्‍गज वकील शामिल हैं। राम जेठमलानी तो ऐसे लोगों के पितामह रह चुके हैं। इनकी रणनीति होती है कि कैसे भी हो किसी नये जज को बुली कर उसे कंट्रोल कर लिया जाए। इन लोगों का परस्‍पर लाभ के लिए बाकायदा एक-दूसरे के साथ आर्थिक लाभ होता है, जो आखिरकार सत्‍ता तक जुड़ता रहता है। जजों को अपने पक्ष में मोड़ने-मोल्‍ड कर देने में महारत है इन वकीलों में। जजों के प्रति किसी बड़े सर्वोच्‍च पावर-ग्रुप की तरह यह लोग व्‍यवहार करते हैं और रणनीतियां बनाते रहते हैं। कभी डायस पर खड़े होकर, कभी पीठ पीछे, तो कभी जजों को प्रभावित कर देने की गोटियां चला कर इनका व्‍यवसाय लगातार मजबूत ही होता रहता है। हालत तो यहां तक थी कि मार्केण्‍डेय काटजू तक इन वकीलों को देखते ही जजमेंट दे दिया करते थे। गुजरात के राज्‍यसभा चुनाव में अहमद पटेल के वोटों की गणना में जिस तरह इसी प्रक्रिया अपनायी गयी थी, वह अपने आप में एक निहायत शर्मनाक रही है।

लेकिन हैरत की बात है कि इस बारे में लखनऊ के अधिकांश बड़े वकील बोलने से इनकार करते हैं। वजह यह कि सुप्रीम कोर्ट की ही तरह लखनऊ हाईकोर्ट में भी इन वकीलों का अपना-अपना प्रेशर बना हुआ है। मगर लखनऊ हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट आईबी सिंह स्‍वीकार करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में वकीलों का एक बड़ा काकस सक्रिय है, जो न्‍यायपालिका पर खासा दबाव बनाये रखता है। ऐसे लोगों की महारत केवल किसी मुकदमे में कानूनी नुक्‍ते तक ही सीमित नहीं होती है, बल्कि इसके लिए वे कई दीगर तरीकों को भी अपनाया करते हैं। हालांकि आईबी सिंह का कहना है कि प्रशांत भूषण का यह मामला उचित नहीं है।

लेकिन कुछ अन्‍य वकीलों की राय है कि जिस तरह दीगर मामलों पर प्रशांत भूषण ने जजों पर हमला करना शुरू कर दिया था, वह अराजकता की पराकाष्‍ठा ही मानी जाएगी। इन वकीलों का साफ कहना है कि अदालत सुप्रीम है, उसका भय लोगों में होना ही चाहिए। चाहे वह वकील ही क्‍यों न हो। ऐसी हालत में प्रशांत भूषण पर कड़ी कार्रवाई और तत्‍काल कार्रवाई होनी चाहिए, चाहिए रसूख बनाये रखा जाए। इन वकीलों का कहना है कि अगर प्रशांत भूषण को छोड़ दिया गया तो सुप्रीम कोर्ट में एक भयावह अराजकता का माहौल बन जाएगा। और उसका भुगतान पूरे समाज को करना होगा। उसके बाद तो ऐसे बुली-गैंग और ज्‍यादा मजबूत होगा। इतना ही नहीं, बुली-गैंगों की तादात भी कई-कई हो जाएगी। फिर सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा का निस्‍तारण नहीं, बल्कि बुली-राज ही चलेगा। डरावनी बेईमानी के तौर पर। जाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट के ऐसे बुली-गैंगों की गंगोत्री हाईकोर्ट, जिला अदालतों से होती तहसीलों तक भी पहुंच जाएगी।

और इसका निदान अगर कुछ है, तो वह है दण्‍ड यानी सजा। हर कीमत पर और अधिकतम सजा के तौर पर। ताकि ऐसे बुली-गैंग के हौसलों को तोड़ा जा सके। (क्रमश:)

अगले अंक में देखियेगा
सवाल है कि आखिर कैसे अंकुश लगे अराजक जजों पर

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *