कुरैशी नया राहुल सांकृत्‍यायन हैं। थाईलैंड को जी लिया

बिटिया खबर

: अपनी अंधी गली से बाहर नहीं निकले तो आपको दुनिया समझ में न आयेगी : आपकी विवशता है कि आप पृथ्वी से बाहर कदम नहीं रख सकते, लेकिन पृथ्‍वी की दुनियादारी को कितने लोग सम्पूर्णता में देख पाते हैं : छोटी बेटी साशा सौवीर अपनी एक सहेली शिखा के साथ कुछ दिन तक बैंकॉक रह चुकी :

कुमार सौवीर

लखनऊ : मैं न तो कुरैशी के पर्यटन-प्रेम को जानता हूं, और न ही उनके अध्‍ययन या भ्रमण को जानता हूं। विदेश के नाम पर तो मैं नेपाल कई बार गया हूं, लेकिन कभी भी न तो मैं बैंकॉक गया और न ही वहां के पटाया महानगर को जानता हूं। सच बात तो यही है कि न तो मैं कुरैशी के परिवार को जानता हूं, और न ही उनके समाज को। हां, पाली-मारवाड़ में तो काफी मार-धाड़ शैली की पत्रकारिता कर चुका हूं, जो गुजरात से बिलकुल सटा हुआ है। लेकिन मैं तो भरुच तो दूर, कभी गुजरात तक नहीं गया, जहां कुरैशी रहते हैं। मुझे न तो कुरैशी की पढाई के बारे में कोई जानकारी है लेकिन न ही उनके खानदान के बारे में कोई जानकारी। कुरैशी नाम को मैं केवल गैंग्‍स ऑफ वासेपुर की फिल्‍म के कथानक से जानता और पहचानता हूं। वैसे भी, कुरैशी-समुदाय को मांस-विक्रेता के तौर पर पहचाना जाता है। हा हा हा।
लेकिन लगता है कि मैं अब कुरैशी को समझ चुका हूं, ठीक उसी तरह मैं बैंकॉक और पटाया को भी समझने लगा हूं। मैं जान चुका हूं कि बैंकॉक के लोग कैसे हैं। हालांकि मेरी छोटी बेटी साशा सौवीर अपनी एक सहेली शिखा के साथ कुछ दिन तक बैंकॉक में अध्‍ययन के लिए रह चुकी है। उससे और उसके बाद अब कुरैशी ने हमें समझा दिया है कि वहां दुरुह आर्थिक और सामाजिक हालातों के बीच एक भयावह व्‍यापारिक रिश्‍तों के घालमेल के बावजूद वहां के लोग कैसे खुश और सामाजिक बने रह सकते हैं। यह मैं समझने लगा हूं, और चाहता हूं कि उस पूरे प्‍लैनचेट को वहां पहुंच कर उसको महसूस करुं। इतना तो जान ही चुका हूं कि बैंकॉक एक अबूझ तालमेल के झूले के बीच झूल रहा है। वहां के लोग विशाल हृदय के मालिक हैं, शांत और समझदार हैं, दूसरे और बाहरी लोगों को समझने की कोशिश भरसक करते हैं, यह जानते हुए कि वे खूब जानते हैं कि बैंकॉक के बारे में अधिकांश दुनिया और खास कर दक्षिणी एशिया के मध्‍यवर्गीय और नवधनाढ्य लोगों का नजरिया क्‍या है। बाहरी लोगों को मसाज जैसे निम्‍न सेवा क्षेत्र तक उतर कर उनको संतुष्‍ट करने तक में भी वे खुद को गर्वान्‍वित होते हैं। मैं समझ चुका हूं कि बैंकॉक में क्‍या है थाई संस्‍कृति और वहां पारिवारिक रिश्‍तों पर चढ़ी बाजार-मढ़ी चादर के भीतर उनके दिलों में धड़कते दिलों को बस यूं ही सरसरी तौर पर समझ पाना मुमकिन नहीं होगा।
लेकिन उससे भी ज्‍यादा समझ चुका हूं कुरैशी को। अब देखिये न कि मैं कुरैशी का पूरा नाम तक नहीं जानता। सिवाय इसके कि वे अधेड़ उम्र वाले व्‍यक्ति हैं, जिसका नाम है एएम कुरैशी। लेकिन नाम से पहले मैं कुरैशी की भावुकता, संवेदना, जिज्ञासा, समझदारी ही नहीं, बल्कि दूसरों के प्रति सजग नजरिया को कुछ-कुछ समझने लगा हूं।
इसके पहले आपको बता दूं कि पर्यटन और भ्रमण केवल घूमना-फिरना और मौज-मस्‍ती भर नहीं होती है। आप अपने काकून, बोतल, कुएं, गड्ढे यानी अपनी चादर से बाहर निकलने की कोशिश नहीं करेंगे तो आपको दुनिया समझ में नहीं आयेगी। आप केवल खुद तक ही सीमित रहा जाएंगे। जबकि अपने खोल से बाहर निकल कर आप दूसरों को समझने, बोलने, बतियाने की कोशिश करेंगे, तो आप दिमाग और दिल खुलेगा। आप समझने लगेंगे कि केवल आप ही सर्वोच्‍च नहीं हैं, केवल आपका ही धर्म, आपका व्‍यवहार, आपका समाज, आपका कदम, आपका लक्ष्‍य और आपकी जीवन शैली के साथ आपकी सोच, संवेदना और परस्‍पर समझदारी ही सब कुछ नहीं है। जब आप दूसरों को मिलेंगे ही नहीं, तो आप न तो अपने आप का मूल्‍यांकन कर पायेंगे और न ही दूसरों के गुणों को आत्‍मसात ही कर पायेंगे। महापंडित राहुल सांकृत्‍यायन ने तो इसी मसले पर एक लाजवाब किताब तक लिख डाली जिसका नाम है घुमक्‍कड़-शास्‍त्र।
लेकिन कुरैशी ने यह कोशिश को अमली जामे तक पहुंचाने की कोशिश की है। उन्‍होंने अब तक नौ किश्‍तों में अपनी बैंकॉक-यात्रा के अनुभवों को दर्ज किया है। कुरैशी कहते हैं कि :- आपकी यह विवशता है कि आप पृथ्वी नामक इस ग्रह से बाहर कदम नहीं रख सकते. हालांकि इस ग्रह की ही दुनियादारी को कहां सम्पूर्णता में देख पाते हैं हम? हालांकि अपने इस संस्‍मरण में कुरैशी ने कई अनावश्‍यक किस्‍सों को भी दर्ज कर लिया है जिसे आम बोलचाल में चूतियापंथी कहा जाता है। भोजन की कीमतों को लेकर भी कुरैशी ने कई जगहों पर पाठकों को उलझा दिया है। हां, शब्‍दों और अक्षरों के संयोजन में काफी दिक्‍कतें और चूकें हैं, लेकिन कुरैशी का मकसद अपनी बात को बखूबी दर्ज कराना ही रहता है।
आखिरी बात यह है कि मानव मनोविज्ञान में हर कोने तक छूने, खंगालने और उसका जवाब खोजने की पूरी सफलता भले ही कुरैशी न कर पाये हों, लेकिन उनका जेहनी नजरिया वाला पायदान आम आदमी से काफी ऊंचा और बुलंद जरूर है। बैंकॉक में वे केवल भ्रमण ही नहीं किया है, बल्कि जिन्‍दगी को जीने का हरचंद प्रयास किया है और सबसे बड़ी बात यह है कि अपने अनुभवों को उन्‍होंने केवल अपने दिल-दिमाग तक ही सीमित नहीं रखा है, बल्कि उस पर बाकायदा एक सीरीज भी लिख डाली है।
दोलत्‍ती डॉट कॉम कुरैशी के इन अनुभवों को श्रंखलाबद्ध तरीके से छापने जा रहा है।

आप कुरैशी से बात करना चाहें, तो उनका नम्‍बर नोट कीजिए:- 9979750050

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