चैत्र-नवरात्र: यूपी में नौकरशाही की त्रि-देवियां

बिटिया खबर

: अव्‍वल रौशन जैकब, ब्रिलियंट शुभ्रा सक्‍सेना, जबकि ईंट से ईंट तोड़ने वाली चंद्रकला के दिव्‍य-तत्‍व : कोई चालबाजी में बेमिसाल, कोई सकारात्‍मकता कार्यनिष्ठ। किसी पर आरोपों की झड़ी, किसी पर इतने आशीष-शुभकामनाएं, कि दुनिया चमत्‍कृत :

कुमार सौवीर

लखनऊ : बिना देवी के भी नवरात्र का अनुष्ठान संपन्न हो सकता है ? खासतौर पर तब जब देवी एक नहीं, अनेक हो। और उन सब में एक से बढ़कर एक गुणों या दुर्गुणों तक की खान भरी पड़ी हो। कोई बेईमानी पर आमादा हो, तो कोई दायित्‍वों का प्रतीक-बिम्‍ब बन जाए। कोई मेधावी है। लेकिन अव्वल हो जाती है कोई दूसरी। कोई चालबाजी में बेमिसाल है तो कोई सकारात्‍मकता वाला कार्यनिष्ठ। किसी पर आरोपों की झड़ी लग चुकी है, जबकि किसी पर इतने आशीष और शुभकामनाएं मिले हैं, कि दुनिया चमत्‍कृत हो जाए।
जी हां, आइये आज हम बात कर रहे हैं उन देवियों पर, जिनमें से कोई अव्वल हो गई तो कोई धूमकेतु की तरह चमक कर लापता हो गईं। इतना ही नहीं, कुछ ऐसी भी हैं जिन्होंने ईमानदारी का एक झंडा तो फहराया लेकिन उसके फौरन बाद यह हकीकत पूरी तरह नंगी हो गई यह ईमानदारी तो पूरी तरह पाखंड और झूठ भर ही थी। ऐसी देवी ने अपनी बेईमानी को बांटने के लिए कुछ ऐसे प्रदर्शन कर डाले जिससे उनके झूठ पर पर्दा पड़ा रहे, और उनकी वाहवाही चहुंओर होती रही। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। सचाई जल्‍दी ही सामने आ गयी।
तो आज नवरात्र का पहला दिन है। चैत्र नवरात्र। देवियों कही जाने वाली दैवीय गुणों से सम्‍पन्‍न स्त्रियों के दिन। लेकिन इस पर्व की आराधना करने की शुरुआत हमें किसी सरस्‍वती, लक्ष्‍मी या फिर पार्वती जैसी देवियों की नहीं है। आज तो हम उन देवियों पर चर्चा करेंगे, जो हमारे आसपास उगी हैं, पली हैं, और आसन लगाये हैं, धूनी रमाये जुटी हैं। बल्कि उत्तर प्रदेश की नौकरशाही में विभिन्न चित्रों और भावों व परिणामों की छवियों के तौर पर चरितार्थ हो रही हों। शुरुआत करेंगे उन तीन देवियों पर, जिन्होंने अपने-अपने विभिन्न व्यवहार और गुणों से उत्तर प्रदेश की नौकरशाही को बहुत गहरे तक प्रभावित किया। किसी ने अफसरशाही में उसकी गुणवत्‍ता तक पहुंचाने की कोशिश की, तो कोई दूसरी बीच में लटक गई। लेकिन गजब निकली तीसरी देवी। उसने तो बेईमानी का तो बाकायदा डंका ही बजा दिया। उद्दंडता के साथ। सरेआम। लेकिन झंडा फहराती ही रहीं कि वे ईमानदारी की प्रतिमूर्ति हैं।
जिन तीन दिव्य-देवियों को दोलत्‍ती ने अपने अध्ययन क्षेत्र में रखा है वह संयोग से यूपी के बुलंदशहर में जिलाधिकारी भी रह चुकी हैं। एक का नाम है बी चंद्रकला, दूसरी का नाम है शुभ्रा सक्सेना और तीसरा का नाम है रौशन जैकब। शुरू करते हैं बी चंद्रकला से। चंद्रकला ने यहां के नगर पालिका में एक दिन एक जबर्दस्‍त मजमा लगाया। उन्‍होंने यहां ईंट से ईंट बजाने एक नया प्रदर्शन शुरू कर दिया। कहावत के तौर पर नहीं, बल्कि साकार भाव में। यहां सड़क बन रही थी सीमेंट की ईंटों से। इंटरलॉकिंग व्‍यवस्‍था के तहत।
एक दिन अचानक चंद्रकला एक जगह पहुंची। नगर पालिका की अध्‍यक्ष समेत अनेक अधिकारियों को जुटाया। भीड़ जुटी, तो उन्‍होंने एक ईंट उठायी और दूसरे हाथ पर वाली ईंट को तोड़ दिया। बोलीं, यही तो बेईमानी हो रही है और सरकारी खजाने से यह अराजकता और लूट बर्दाश्‍त नहीं होगी। यह भी चेतावनी दी कि अगर आइंदा ऐसा किसी ने ऐसी कोई बेईमानी की, तो उसे जेल भेज दिया जाएगा। लेकिन भविष्य तो बाद की बात थी। चंद्रकला ने उस घटना की भी कोई एफआईआर दर्ज नहीं करायी। लेकिन इस घटना के बाद एक अजब सी चर्चा पूरे शहर ही नहीं बल्कि यूपी और आसपास के राज्यों फैल गयी कि यह एक नाटक था। कलेक्‍ट्रेट तक में लोगों में चर्चा होने लगी कि इस घटना के तत्‍काल बाद ही जिले में होने वाले किसी भी विकास कार्य में जिलाधिकारी का बनने वाला तीन फीसदी वाला कमीशन अब दो गुना होकर सीधे छह फीसदी हो गया है। जंगल की आग की तरह यह खबर फैल गयी कि बी चंद्रकला का यह अभियान का मकसद दरअसल धन-उगाही का एक नया प्रोडक्‍ट था। शहर में तैनात रहे एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी ने बताया उस घटना के बाद से ही पूरे जिले में बी चंद्रकला के कार्यकाल में जिलाधिकारी आवास में तक पहुंचने वाली कमीशन की रकम दोगुनी हो गई है।
आपको बता दें कि मथुरा में उद्यान विभाग की करीब चार सौ एकड़ सरकारी जमीन पर बरसों से काबिज और जय गुरुदेव के गुंड़ों की सेवा-टहल बीचंद्रकला करती रहती थीं। कहने की जरूरत नहीं कि वह दौर था समाजवादी पार्टी का, और रामवृक्ष नामक गुंडों को प्रश्रय दिये हुए थे तब के सिंचाई और लोकनिर्माण मिनिस्टर शिवपाल सिंह यादव। बाद में हाईकोर्ट के आदेश होने पर सरकार सक्रिय हुई और पुलिस ने उस पर एक्शन किया। उस जमीन को खाली कराया गया, लेकिन इस कार्रवाई में कुछ सरकारी अधिकारी भी जान से मारे गए।
दूसरे नंबर पर देवी का नाम है शुभ्रा सक्सेना। सन-09 में आईएएस टॉपर रह चुकी हैं शुभ्रा। बेहद जहीन। उनके साथ काम कर चुके कई गंभीर अधिकारी भी मानते हैं कि ब्रिलियंट हैं शुभ्रा सक्‍सेना। प्रशासनिक मामलों में किसी भी समस्‍या की नब्‍ज देखते ही मर्ज को जान-समझ लेने में जो महारत शुभ्रा सक्सेना के पास है, वह कोई दूसरा नहीं कर पाता। किसी भी समस्या को सुनते ही वे उसका पूरा मामला समझ जाती हैं और उस पर अधीनस्थ पर तत्काल कार्रवाई करने का निर्देश जारी कर देती हैं शुभ्रा सक्सेना। लेकिन निर्णाय लेने के बाद भी वह इस बारे में तनिक भी ध्‍यान नहीं दे पाती हैं कि उस प्रशासनिक समस्‍या पर जो निर्णय उन्‍होंने अपने अधीनस्‍थों को दिया है, वह अमली जामा हो पाया या नहीं। वे आदेश तो जारी कर देती हैं, लेकिन इस बारे में बाद में फिक्र करने की जरूरत नहीं समझती हैं कि उस काम में क्‍या-क्‍या अड़चन आयी और उसका समाधान कैसे किया गया।
नब्‍ज को देख कर मर्ज को पहचान लेने तक की उनकी खासियत भले ही शुभ्रा सक्‍सेना में हो, लेकिन उस मर्ज को दूर करने यानी समस्‍या का समाधान करने की जो अदम्‍य क्षमता रौशन जैकब में है वह किसी में भी नहीं। रौशन जैकब को ब्रिलियंट तो नहीं माना जाता। लेकिन ब्रिलियंट-नेस से भी कई कदम आगे खड़ी दिखाई पड़ती हैं रोशन जैकब। शासकीय समस्‍या को देखना, समझना और उसका समाधान तजबीज करने का गुण शुभ्रा सक्सेना में है, लेकिन समस्‍या की समझ, उसका समाधान और उसका अंजाम तक उतर जाने की अद्म्‍य क्षमता, दक्षता और गुण रखती हैं रोशन जैकब। जैकब अपने दायित्व को अंजाम तक पहुंचा देती हैं। लोग बताते हैं कि रौशन जैकब अपने अधीनस्थ अधिकारियों पर पूरा विश्वास करते हुए भी उनसे पर्याप्‍त सतर्कता भी रखती हैं।
रौशन जैकब के कामकाज के तौर-तरीके को केवल इसी तथ्य से पहचाना जा सकता है, जब बुलंदशहर में उन्होंने गोदाम पर छापा मारने की रणनीति बनाई थी। इसके लिए उन्होंने जिन अधिकारियों को काम पर लगाया था, उनके मोबाइल फोन अपनी कार में जब्‍त कर लिया था। इतना ही नहीं, उन्होंने संबंधित एसडीएम और सीओ को भी छापेमारी की खबर तब ही दी थी, जब छापामार टीम के लोग उस गोदाम तक पहुंच चुके थे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *