: गोंडा की हवालात में बंद व्यक्ति को पुलिस एनकाउंटर के नाम पर गोली मार दी : कोई भी सिपाही घायल नहीं हुए, बल्कि पुलिस ने पूरी नौटंकी की : कप्तान ने कान पकड़ा कि फर्जी एनकाउंटर न करेगा : कमाल दैनिक जागरण के रिपोर्टर और ब्यूरो चीफ का :
कुमार सौवीर
लखनऊ : गोंडा में चार बरस पहले एक पुलिस कप्तान हुआ करते थे उमेश कुमार सिंह । योगी-सरकार में पुलिसवालों को मिली छूट का मनमर्जी इस्तेमाल किया था उमेश कुमार सिंह ने। उनका तरीका था कि न कोर्ट न कचेहरी, न वकील। मौके पर ही न्याय। और न्याय भी ऐसा, कि जुर्म हो या फिर कोई दूसरा जुर्म हो, वे पकड़े गये व्यक्ति को सीधे पुलिस एनकाउंटर में तब्दील कर देते थे।
लेकिन एक छोटे से ग्रामीण पत्रकार ने एक ऐसा काम कर दिया कि कप्तान की बोलती ही बंद हो गयी। इस पत्रकार ने साहस उठाया और कलम लिख कर एक घटना को जस का तस अपने जिला प्रभारी को फारवर्ड कर दिया। ब्यूरो चीफ भी कोई-ऐसा वैसा नहीं था कि कहीं अपनी पत्नी के नाम पर एलआईसी की एजेंसी के लिए अफसरों को पॉलिसी बेचता रहे, या फिर खबर लगाने या दबाने अथवा उससे मोड़-तरोड़ करने के लिए मोटी रकम उगाहता रहे। वह खबर को खबर के तौर पर ही देखता था। इसलिए उसने अपने चिरपरिचित साहस का प्रदर्शन किया।
खबर आधा पन्ने में छपी, तो मचा हंगामा पूरे गोंडा में। चौकी प्रभारी पर तो खबर देखते ही हार्ट-अटैक होने लगा, वह चारोंखाने चित्त होकर चौकी पर ही धड़ाम हो गया। रिपोर्टर को हड़काने के लिए फोन किया मर्दानगी दिखाने वाले सीओ ने, और कप्तान ने ब्यूरो चीफ को देख लेने की धमकी दे दी। लेकिन तब तक लखनऊ तक में हंगामे की खबर पहुंच चुकी थी, इसलिए कप्तान ने कान पकड़ कर कसम खा ली कि चाहे कुछ भी हो जाए, लेकिन अब वह कहीं भी कोई फर्जी एनकाउंटर नहीं करेगा। दरअसल, इसके पहले उमेश कुमार सिंह ने अपनी छवि एक एनकाउंटर-स्पेशलिस्ट के तौर पर मशहूर कर रखी थी।
सीतापुर पुलिस: पहले पैर बांध दिया, फिर गोली मार दी
तो पूरा किस्सा सुन लीजिए। लेकिन इसके पहले यह समझ लीजिए कि लखनऊ के सचिवालयों और अफसरों के कमरों में बैठ कर खुद को बड़ा और वरिष्ठ पत्रकार कहलाने वाले लोगों में से अधिकांश लोग मूलत: दलाल होते हैं। खबर के नाम पर अफवाह फैलाते हैं, झूठ लिखते हैं। उनका मकसद केवल नेता, मंत्री और अफसर के साथ मिलीभगत कर मोटी उगाही करना ही होता है। समाज में अपना रुतबा ऊंचा करना ही होता है, ताकि कोई उन पर कोई उंगली न उठाये। अपने 42 बरस की पत्रकारिता में मैंने जितने पत्रकारों को देखा, पाया, सुना या समझा, उनमें से अधिकांश केवल इसी दलाली में लिप्त हैं। यही हालत होती है जिला स्तर में प्रभारी पद पर बैठे पत्रकारों की। ग्रामीण इलाकों में भी ऐसे पत्रकार होते हैं, लेकिन उनको खतरा केवल दारोगा, चौकी प्रभारी और बीडीओ से डर होता है। ऐसे में खबर कैसे लिखी जाए, यह संकट हमेशा बना ही रहता है। ऐसे में खबर केवल अफसरों की कही-सुनी ही बनती है।
लेकिन गोंडा में कर्नेलगंज रोड पर एक कस्बा के बालपुर की एक घटना बिलकुल अलग थी। चार बरस पहले बालपुर कस्बे की सड़क पर बैंक में अपनी रकम जमा करने गये एक व्यक्ति का थैला बाइकसवार दो लोगों ने खींचा और भागे। लेकिन यह देख रहे एक राहगीर ने साहस दिखाया और लुटेरों की बाइक पर पीछे लुटेरे की कॉलर दबोच कर उसे गिरा दिया। मचा हंगामा। पब्लिक ने लुटेरे को कूटा, पुलिस आयी और लुटेरे का पकड़ कर चौकी की हवालात में बंद कर दिया।
दैनिक जागरण के स्थानीय संवादसूत्र एसपी तिवारी को खबर मिली, तो वे चौकी पर गये। देखा कि लुटेरा खड़ा है हवालात में। एसपी तिवारी ने उसकी फोटो खींच ली, और पुलिसवालों से जानकारी हासिल कर मौके की ओर रवाना हुए। करीब आधे घंटे बाद बाजार में हंगामा खड़ा हो गया। पता चला कि सीओ की गाड़ी चौकी से होते हुए कर्नेलगंज की ओर गयी है और उसके पीछे-पीछे पुलिस अधीक्षक, अपर पुलिस अधीक्षक, इंस्पेक्टर समेत कई गाडि़यों में भारी पुलिस भी जा रही है। जिज्ञासा भड़की तो एसपी तिवारी ने भी अपनी बाइक पीछे लगा दी। करीब 12 किलोमीटर बढ़ने पर काफिला एक कच्ची सड़क पर उतर कर दौड़ा। एसपी तिवारी भी पीछे-पीछे। करीब दो किलोमीटर बाद एक बगिया के पास काफिला रुका। सीओ की गाड़ी से पुलिसवालों ने एक व्यक्ति को उतारा और कहा कि वह मौके से भाग जाए। लेकिन वह व्यक्ति काफी चालाक निकला, वह पास की एक खाई में कूद गया। अब पुलिसवाले हलकान। ऐसे किसी को गोली मार दें, समझ में ही नहीं आया। काफिला देख कर ग्रामीण भी दौड़े-दौड़े आने लगे थे। पुलिसवालों ने फैसला किया। निशाना लगाया। एक गोली उस आदमी की जांघ में धंसी तो दूसरी उसकी टांग पर। तब तक गांववालों की भीड़ जुट गयी। उसी घायल से निकल रहा खून बटोर कर एक सिपाही के पैर में लगा दिया गया। पुलिसवालों ने ऐलान कर दिया कि एक खूंख्वार बदमाश भाग रहा था, लेकिन पुलिसवालों ने उसे रोका, तो मुठभेड़ हुई, बदमाश ने फायरिंग की, पुलिस ने भी जवाब दिया और नतीजा यह हुआ कि यह बदमाश दबोच लिया गया।
यह ऐलान करने के बाद पुलिसवालों का काफिला घायल बताये गये सिपाही और घायल हो चुके व्यक्ति को बटोर कर सीधे कर्नेलगंज कम्युनिटी हेल्थ सेंटर की ओर रवाना हो गये। तब तक एसपी तिवारी भी खबर पाकर सीधे कर्नेलगंज की सीएचसी पर आ गये थे। तिवारी ने देखा कि घायल आदमी दर्द से तड़प रहा था, जबकि स्ट्रेचर पर लेटा और घायल बताया जा रहा सिपाही तथा उसके पास बैठा एक अन्य सिपाही अपने मोबाइल पर गेम खेल रहा था। तिवारी ने मामला समझा और घायलों समेत पूरे माहौल की फोटो खींच ली।
आखिर किसी संवादसूत्र की औकात ही क्या होती है। पुलिस की करतूत की कोई खबर लिख दे, तो पुलिस से दुश्मनी। मजबूरी में तारीफ ही लिखनी पड़ती है। इसका फायदा यह कि दारोगा-सिपाही पूरा सम्मान करते हैं। चौकी में जाने पर चाय-पानी मिल जाता है। किसी बाइक का चालान हो जाए तो उसे छुड़वा देते हैं। बस इतने में ही संवादसूत्र की इलाके में जयजयकार हो जाती है। मगर उल्टी खबर लिख दी, तो पुलिस का डंडा रिपोर्टर के पिछवाड़े में घुसने को बेताब हो जाता है।
लेकिन एसपी तिवारी ने खबर लिखने का फैसला किया। उन्होंने हवालात में मिली लुटेरे की फोटो तो पहले ही खींच ली थी, लेकिन घंटे बाद ही उसकी एनकाउंटर की गयी फोटो और घायल बताये गये पुलिसवाले की फोटो भी आ गयी। दोनों ही प्रमाण हाथ में थे, खबर मुकम्मिल हो गये। तिवारी अपनी बाइक से सीधे 14 किलोमीटर दूर गोंडा दैनिक जागरण के दफ्तर पहुंचे। ब्यूरो चीफ थे अजय सिंह। उनको बताया। कई और ब्यूरो चीफ इसमें डील करना शुरू कर देते हैं और या तो खबर छापते हैं या फिर डायल्यूट कर देते हैं। यानी कप्तान का वर्जन सबसे और सबसे ज्यादा होता है, बाद में फिलर के तौर पर दूसरा वर्जन। लो खत्म हो गयी बात। लेकिन अजय सिंह ने ऐसा नहीं किया। खबर को सम्भाला, संवारा और पहले पन्ने पर लिख मारा किया यह एनकाउंटर नहीं, बल्कि फर्जी पुलिस एनकाउंटर था। जो व्यक्ति एक घंटे पहले चौकी की हवालात में बंद था, उसे पुलिस कस्टडी से लेकर दस-बारह मील दूर ले जाकर जानबूझ कर मारा गया है। यह भी कि इस घटना में कोई भी सिपाही घायल नहीं हुए, बल्कि पुलिस ने पूरा नाटक और नौटंकी की है।
अगले दिन ही हंगामा खड़ा हो गया। चौकी प्रभारी को जम कर लताड़ा था सीओ ने कैसे फोटो खिंच गयी हवालात की। वह तो चौकी में ही चक्कर खाकर गिर पड़ा। सीओ ने एसपी तिवारी को हड़काया, तो तिवारी ने बताया कि आपने एक अपराध किया है। कप्तान ने ब्यूरो चीफ से गिड़गिड़ाते हुए गुजारिश की, लेकिन अगले दिनों तक दैनिक जागरण के तेवर बने ही रहे।
अजय सिंह पूरे दौरान साफ और स्पष्ट ही रहे कि हमारे अखबार के लिए खबर सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। हम खबरों का व्यवसाय करते तो हैं, लेकिन खबरों पर धंधा नहीं। नतीजा यह हुआ कि कप्तान उमेश कुमार सिंह ने तय किया कि वे आइंदा जब तक गोंडा में रहेंगे, एक भी एनकाउंटर नहीं करेंगे। बाद में सुधीर किसी जिले में तबादले में चले गये।
एसपी तिवारी आज भी बालपुर में रिपोर्टर हैं, जबकि अजय सिंह की तैनाती आजकल सुल्तानपुर हो चुकी है।