कसमें, वादे, प्यार, वफा, सब बातें हैं बातों का क्या..
( गतांक से आगे ) लेकिन उनकी एक नई छवि बनायी सन-67 में बनी फिल्म उपकार ने। मनोज कुमार ने इस विकलांग और बेहाल शख्स की भूमिका के लिए प्राण को चुना और प्राण मंगल चाचा बन गये। उनके डॉयलॉग और इस गीत में प्राण की दार्शनिक शैली ने दर्शकों को बुरी तरह रूला डाला। दरअसल, इंदीवर ने यह कसमें, वादे, प्यार, वफा, सब बातें हैं बातों का क्या… मुखड़ा वाला गीत मन्ना डे से गवाया था। इंदीवर चाहते थे यह गीत मनोज कुमार पर फिल्माएं। लेकिन मनोज ने पारस को पहचान लिया और प्राण को यह जिम्मेदारी सौंप दी। इंदीवर इस पर भिड़े थे। मगर फिल्म आयी और इंदीवर दंडवत। उनका एक डॉयलॉग सुनिये:- राशन पे भाषण है, पर भाषण पे राशन नहीं। उस समय देश भुखमरी की हालत में था, और इस वाक्य से प्राण ने दर्शकों को झकझोर दिया। उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार दिया गया। इसके बाद फिर लाजवाब फिल्में दीं प्राण ने। सन-70 में आंसू बन गये फूल और सन-73 में बेईमान फिल्म के लिए प्राण को फिर यही पुरस्कार मिला। इसके बाद से तो उनके खाते में सैकड़ों सम्मान और पुरस्का्र जुड़ने लगे। जंगल में हैं मोर बड़े, शहर में हैं चोर बड़े….माइकल दारू पीके दंगा करता है गीत पर उनकी अदा खूब सराही गयी। किशोर कुमार की आवाज में प्राण खूब फबे। बेईमान में बोतल से सीधे शराब गटकने वाले माइकल की शैली और डायलॉग ने तो धूम ही मचा दिया कि गली-मोहल्ले में युवकों में माइकल उपनाम प्रचलित हो गया। ठीक वैसे, जैसे:- ओ सांईं, या फिर क्यों बरखुरदार।
सन 72 में प्राण की सर्वाधिक 9 फिल्में आयीं। परिचय, यह गुलिस्ताँ हमारा, विक्टोरिया नम्बर-203, जंगल में मंगल, रूप तेरा मस्ताना, एक बेचारा, सज़ा, बेईमान और आन बान थीं। लेकिन सबसे हिट रही विक्टोरिया नम्बर-203। इस फिल्म में प्राण ने फिर एक बार अपनी नयी शैली स्थापित कर दी। और उसके बाद तो प्राण हर बार फिल्म-जगत में नयी प्राण-वायु बन कर सामने आते रहे। अमिताभ बच्चन उस समय कड़े संघर्ष कर रहे थे। सौदागर जैसी फिल्में सिनेमाघरों की चौखट पर दर्शक नहीं आकर्षित कर पा रही थीं। कि अचानक प्राण के साथ बनी जंजीर ने अमिताभ को शीर्ष तक पहुंचा दिया, जहां उनकी ज्यादातर फिल्में सुपरहिट रहीं। लेकिन प्राण अपनी नयी-नयी शैली खोजने में जुटे रहे, जबकि अमिताभ बच्चन ने प्राण की जिजीविषा में अपनी सफलता खोजनी शुरू कर दी। सीढ़ी बनायी प्राण ने और उस पर परचम फहराया अमिताभ ने। मसलन, जंजीर का वह गीत:- यारी है ईमान मेरा, यार मेरी जिन्द्गी। इस फिल्म में शेरखान पठान की भूमिका में प्राण ने हल्की ही सही, लेकिन जो नयी नृत्य-शैली अपनायी, अमिताभ ने उसी को अपनाकर बाकी फिल्मों में अपनी धाक बनायी। डॉन में तो प्राण को अमिताभ बच्चन से ज्यादा मेहनाता मिला। इसके पहले तक नृत्य का दायित्व महिला किरदारों से ही कराया जाता था। और फिर नृत्य-भंगिमा ही क्यों, सहायक और चरित्र भूमिका में जो भाव प्राण ने खुद में फूंके, अमिताभ ने भी अपने साथ लागू कर दिया।
इंसान के तौर भी प्राण लाजवाब हैं। परदे पर दिखते बेरहम और खौफनाक भूमिका से उलट प्राण निजी जिंदगी में बेहद शरीफ, उदार, भावुक और संवेदनशील और सोने जैसा दिल रखते हैं। गुड्डी फिल्म में उनकी असलियत करीब से देखी जा सकती है। एसबीआई के एजीएम वीपी पांडेय का कहना है कि प्राण की अदाकारी बेमिसाल है। कहीं कभी दोहराव कहीं रहा। डॉयलॉग डिलीवरी के भंगिमा तो सीधे दर्शक को गहरे तक प्रभावित करती है। ।
हिन्दी सिनेमा की जमीन पुख्ता करने के बाद प्राण पिछले करीब 15 बरसो से आराम कर रहे हैं। कमजोरी और सांस की दिक्कत है। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने दस साल पहले एक और फिल्म कर ली। राष्ट्रपति ने उन्हें पद्म भूषण सम्मान दिया। यश मेहरा के पुत्र अमित मेहरा जंजीर की सिक्वेल बना रहे हैं जिसमें प्राण की भूमिका संजय दत्त करेंगे। तेलुगू में भी अब जंजीर बनेगी। मतलब यह कि अपने जीते ही प्राण अब हजारों साल जीते रहेंगे। ( समाप्त )
हिन्दी रजतपट के महा-अभिनेता प्राण पर आलेख की पहली किश्त को पढ़ने के लिए कृपया क्लिक करें:- मिजाजपुर्सी, यानी बर्खुरदार मलंग-चाचा प्राण