दुनिया की श्रेष्ठतम महिला राजनीतिज्ञ रही हैं इन्दिरा गांधी

मेरा कोना

पाकिस्तान के एक लाख सैनिकों को भारत की जेल में दबोचा

: इन्दिरा गांधी न होतीं तो दूध-अन्न के लिए देश अब तक तड़पता : निराश निक्सन इन्दिरा गांधी को बिच, यानी कुतिया कहता था : सन-82 व 84 की याद कीजिए तो रोंगटे खड़े हो जाएंगे : शाहबानो, अयोध्या-काण्ड और राष्ट्रीय छीछालेदर का इतिहास :

कुमार सौवीर

भारतीय संदर्भ में देखा जाए तो पूरी दुनिया में अगर कोई लाजवाब राजनीतिज्ञ रहा है, तो वह थीं, बिला-शक, इन्दिरा गांधी। हां हां, मुझ पर गालियां-लानत भेजने के बाद जब थक जाएं तो सोचियेगा कि मैं क्या लिख-कह रहा हूं।

आप देख लीजिए ना, पन्ने उलट लीजिए इतिहास की। आप पायेंगे कि भूख और सम्मान के भारी संकट से जूझ रहे भारत की जनता को इन्दिरा गांधी ने ही दुनिया के सामने अपना सिर और छाती तान कर चलने का शऊर सिखाया था। मुझे याद है कि हर साल अप्रैल की शुरूआत तक पूरे देश में दुग्ध-उत्पादन पूरी तरह ठप हो जाता था। मिठाई की दूकानें सन्नाटे में आ जाती थीं। ऐसी दुकानों में अगर कोई सामान बनता था, वह केवल नारियल से बनी मिठाई ही हुआ करती थीं। तब चना-बेसन हेय समझा जाता था, लेकिन इन्दिरा गांधी के श्वेत-क्रान्ति यानी दूध-क्रान्ति ने भूखे-नन्हें बच्चों को कटोरा भर दूध पिलाने की कवायद छेड़ी थी। इसके पहले आस्ट्रेलिया और अमेरिका की पीएल-84 योजना के तहत दूध के पाउडर के बोरे हर सरकारी अस्पतालों में बांटे जाते थे। प्रयास केवल इन्दिरा गांधी का ही। हां, श्वेत-क्रान्ति के साथ ही साथ बजरंगबली यानी हनुमान जी की कृपा से ही बेसन के लड्डू मन्दिरों में चढ़ने शुरू हो गये और चना-बेसन की कीमतें आसमान पर चढ़ने लगीं।

अब यही हालत थी अन्न-संकट पर। पूरा देश भूख से बिलबिला रहा था। पीएल-84 के तहत जो गेहूं भारत में दान में भेजा जा रहा था, वह लाल-छोटा था और स्वाद-हीन भी। इन्दिरा जी ने ही हरित-क्रान्ति का बिगुल बजाया और जल्दी ही देश में अन्नक बेहिसाब उपजने लगा। यह दीगर बात है कि इन प्रयासों की रूपरेखा शास्त्री जी ने ही बनायी थी, लेकिन उसे साकार किया था इन्दिरा जी ने ही। वरना हम लोग अभी तक भूख और कुपोषण से ही बिलबिला रहते।

सन-61 और 65 के युद्ध में भारत को जबर्दस्त करारी शिकस्त मिली थी। पूरी दुनिया हम पर हेय दृष्टि से देखता था। हम असहाय और अकर्मण्य माने-समझे जाते थे। लेकिन इन्दिरा जी ने घुटने नहीं टेके, बल्कि देश को उठ खड़ा कर दिया। बांग्लादेश के मसले पर इन्दिरा का जो तेवर रहा, उसकी सानी पूरे इतिहास में भी नहीं है। उसके बाद का किस्सा शिमला-समझौता का था, जिसमें जुल्फिकार भुट्टो ने भारत पहुंच जाकर अपने घुटने टेक लिये थे और शर्मिंदगी से सिर झुकाये हुए भुट्टो ने भारत से समझौता किया और बदले में एक लाख बन्दी पाकिस्तानी सैनिकों को जेल से छुड़ाया।

आज राम-राम का गगनभेदी नारे लगा रहे लोगों को यह अहसास तक नहीं होगा कि बांग्लादेशी मासले पर जब इन्दिरा गांधी निपट रही थीं, उस वक्त अमेरिकी सरकार ने अपनी नौसेना का सातवां बेड़ा हिन्द महासागर की ओर रवाना कर दिया था। उस वक्त सातवां बेड़ा पूरी दुनिया में अपनी ताकत और किसी भी देश को नेस्तनाबूत करने को लेकर किसी हैवान-शैतान से ज्या़दा आतंक-मय माना जाता है। हिन्दे महासागर की ओर इस सातवां के बेडा की रवानगी से ही पूरी दुनिया दहल गयी थी, लेकिन भारत की धाक की कीमत पर इंदिरा गांधी ने कोई भी समझौता नहीं किया। उसी के बाद से इंदिरा के रवैये के चलते दुनिया भर में अमेरिका का सातवां बेड़ा बिलकुल मजाक-माखौल बन गया। अमेरिकी सरकार अपनी ही बगलों में झांकने लगी।

लेकिन इसके बाद इन्दिरा गांधी बिलकुल तानाशाह हो गयीं। इलाहाबाद हाईकोर्ट में राजनारायण के खिलाफ मुकदमा हारने के बाद उन्होंने इमर्जेंसी लगवा दिया। इतना ही नहीं, अपने हारे हुए मुकदमे के उस रे नामक जज को सुप्रीम कोर्ट का सर्वोच्च जज बनवा दिया और इस प्रक्रिया में न जाने कितने जजों की सीनियारिटी को लात मार दिया। इसी रे नामक जज ने तीन जहां वाली बेंच में इंदिरा गांधी के पक्ष में अपना इकलौती राय दी थी। नतीजा, कम से कम दो जजों ने इस्तीफा दे दिया था।

इसके बाद आइये सन-80 में बनी इन्दिरा गांधी की नयी सरकार पर। इंदिरा ने भिण्डरावाले को पाला, नतीजा भिण्डरावाला बेलगाम हो गया और उल्टे इन्दिरा गांधी पर ही भौंकने लगा। इन्दिरा गांधी ने जवाब देते हुए स्वर्णमन्दिर पर सेना भेज दी और भिण्डरावाला को मार डाला। लेकिन उसका असर उलटा हुआ। सेना में सिखों ने रिवोल्ट किया और फिर बाद में इन्दिरा गांधी के सिख अंगरक्षकों ने प्रधानमंत्री आवास पर ही इन्दिरा की गोली मार कर मार डाला।

इसके बाद आइये कांग्रेसियों के चरित्र पर। उधर इन्दिरा की हत्या से भड़के कांग्रेसियों ने देश के प्रमुखों पर सिखों पर बेहिसाब जुल्म ढाये। अगर इसी को शासन कहा जाता है तो यकीनन सर्वाधिक शर्मनाक था। इसके बाद मुसलमानों का तुष्टिकरण और उसके बाद जो बेईमानी-लूट-व्यभिचार का जो दौर शुरू हुआ वह उससे भी बेहूदा निकला। हां, हां, व्यभिचार। नवें दशक के बाद से इंदिरा गांधी की कांग्रेस में औरत भोग्या ही बन गयी। नजीर, आंध्रप्रदेश का राजभवन। इसके पहले सन-82 में छात्र कांग्रेसियों ने नागपुर सम्मेलन के लिए पूरी ट्रेन बुक करायी थी और जितनी लूट-बलात्कार हो सकती थी, हो गयी थी। देश में समानता की बात जोरों पर चल रही थी कि अचानक इन्हीं नवजात कांग्रेसियों ने इस अधिकार पर कुठाराघात कर दिया। नजीर बन गयीं शाहबानो, जो तलाक के मामले में अपना हम चाहती थी। सु्प्रीम कोर्ट ने इस पर शाहबानो के हक में फैसला कर दिया, लेकिन मुसलमानों को खुश करने के लिए राजीव गांधी और उनके नौटंकी-पार्टी ने शाहबानो-सरीखी सारी महिलाओं की आजादी का हर रास्ताध कत्ल कर दिया। इतना ही नहीं, बेर्इमानी और भ्रष्टाचार की जो दावानली बाढ़ कांग्रेस ने बहायी, उसने सारी नैतिकता और इंसानियत को हमेशा-हमेशा के लिए खत्म कर दिया।

शुचिता और स्वच्छता की गंगा को भी इन कांग्रेसियों ने गंदे नाले में ड़ुबो दिया। दो साल पहले दिल्ली के मावलंकर भवन में उदयन शर्मा पर आयोजित एक समारोह की मुझे खूब याद है, जब प्रसारण मंत्री अम्बिका सोनी ने भाषण दिया कि:- पत्रकारों से तो मैं बहुत डरती रही हूं। लेकिन यह सारे पत्रकार मेरे दोस्त हैं। दरअसल, यह लोग खूब ठोंकते हैं। इन लोगों ने तो मुझे भी कई-कई बार जमकर ठोंका, मगर उनकी हर ठुकाई से मेरा दिल खुश हो जाता रहा है। वैसे भी जब भी मेरे दोस्त मुझे ठोंकते हैं, तो मुझे बहुत मजा आता है।

खैर, अन्त में मैं इतना जरूर कहूंगा कि समझ के स्तर पर राहुल-सोनिया अभी भी लाजवाब हैं। यह न होते तो यह देश न जाने कब का बिलाय जाता। अब देखना यह है कि यह देश कब तक बिलाय जाता है। बस।

इति श्री इन्दिरा गांधी और कांग्रेस कथा।

भारतीय राजनीति कथा का तीसरा और अन्तिम अंक पढ़ने के लिए कृपया क्लिक करें:- खामोश, नरेन्द्र मोदी को आप कैसे हत्यारा कह सकते हैं

( दोपहर बाद तक इस सीरीज का तीसरा और आखिरी अंक आपके पास मौजूद हो जाएगा। तब तक कृपया प्रतीक्षा करें। )

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