: अखिलेश ने बिल्ली की तरह झपट्टा मारा, सारे पत्रकार चूं तक नहीं बोल पा रहे : तुर्रम-खां पत्रकारों की मजाल तक नहीं कि इस जबर्दस्त झांपड़ का जवाब दे सके : सपा और सरकार के अंतर्कलह पर एक भी पत्रकार चर्चा नहीं कर रहा : कई चूहे तो इतना खा-पी चुके कि बाकायदा लोढ़ा-मूस हो गये- एक :
कुमार सौवीर
लखनऊ : आपने बड़ी डींगे-शेखी मारते चूहे को देखा है, जिसकी बेहिसाब उछल-कूद पर एक शातिर बिल्ली एक ही जोरदार झपट्टे में दबोच लेती है। फिर शुरू होता है चूहे और बिल्ली का रोचक किस्सा। जैसे ही चूहा बचने की कोशिश करता है, बिल्ली उस पर एक के बाद एक तमाचे रसीद करती है। आखिरकार पचीसों तमाचे खाने के बाद चूहा लस्त-पस्त हो जाता है और उसकी सारी क्षमता चुक जाती है, वह पूरा हार चुका है। उसके बाद बिल्ली उस चूहे को अपने पंजों से चकरघिन्नी की तरह घुमाता है, और फिर वह परास्त चूहा बिल्ली की किसी भी चेष्टा का तनिक भी प्रतिरोध नहीं कर पाता है।
यह एक सजीव किस्सा है, जिसमें बिल्ली बने हुए हैं यूपी सरकार के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव। और चूहा साबित हो गये हैं यूपी के दिग्गज पत्रकार। एक ही झटके में अखिलेश यादव ने इन सारे चूहों की जीवन के प्रति संघर्ष की ख्वाहिशों का अंत कर दिया। लेकिन हैरत की बात है कि सारे के सारे छत्तीस-मार चूहों ने चूं तक नहीं की। बल्कि बल्कि राजी-खुशी के साथ सब अखिलेश की बीन पर थिरकते ही दिख रहे हैं। कमाल की बात है न, इतिहास में ऐसा कभी भी नहीं हुआ-सुना गया।
मामला है इन चूहों के बिल का। सरकारी बिल, जिसे सरकार ने लोक-खजाने से बनाया और इन चूहों को अपने लिए रहने के लिए दिया था। मकसद था कि सरकार इन्हें मकान दे देगी तो सरकार की पार्टी के लिए यह चूहे उसके पक्ष में बीन बजाती रहे। इनमें से जिस चूहे ने सरकार की जितनी मक्खनबाजी की, सरकार ने उसके लिए सरकार के खर्चे से उसके बिल के लिए बड़ा से बड़ा सुविधाजनक बिल तैयार करा दिया। इनमें से कुछ चूहे तो पी-पिट कर लोढा़-नुमा ताजा-मोटा मूस बन गये। कुछ पर सरकार ने दाना-पानी फेंका, तो कुछ को चंद अफसरों ने। पुलिस के लोगों ने भी कुछ में राशन की हवा भर डाली।
ऐसे में ऐसे कुछ पत्रकार तो अब अपने बिल में ही नहीं समाते हैं। इसके लिए उनके बिल को सरकारी खर्चे में चियार कर बड़ा दिया गया। अब यह हमेशा-हमेशा के लिए उसी बिल में रहना-बसना चाहते हैं। कुछ तो इस बिल को अपनी पुश्तों तक के लिए सुरक्षित कर देने पर आमादा हैं। (क्रमश:)
आइये, लखनऊ में लोढ़ा-मूस बन चुके पत्रकारों की वास्तविकता और उनके मिशन-क्षमता को परखिये। ऐसे पत्रकार-चूहों की तादात अच्छी-खासी है, जो सरकारी बिल में घुसे हैं। लेकिन हाल ही अखिलेश यादव सरकार ने इन मूसों का उनके बिलों से निकाल बाहर करने के लिए हुक्मनामा जारी कर दिया है। लेकिन इन मूस-चूहों ने अपनी पूंछ न जाने कहां छिपा ली है। अब हम इसी मसले पर रिपोर्ट की श्रंखला शुरू कर रहे हैं। इसकी बाकी सीरीज को देखने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:- पत्रकार लोढ़ा-मूस हो गये